उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा, वजह सेहत या सियासत ?

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई, 2025 को आरम्भ हुआ, उससे पहले तक ऐसे कोई संकेत नहीं थे कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं बल्कि उन्होंने मानसून सत्र के पहले पूरे दिन राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया। इसलिए सोमवार की शाम को जब उन्होंने स्वास्थ्य के आधार पर अपने इस्तीफे की घोषणा की तो सियासी गलियारे में यह हलचल हो गई कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि ‘मैडीकल’ कारण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने अपने पद से तुरंत प्रभाव से इस्तीफा दे दिया? क्या उनके त्यागपत्र के पीछे कोई राजनीतिक या अन्य वजह है? या वास्तव में स्वास्थ्य चिंताएं ही हैं, जैसा कि वह स्वयं कह रहे हैं? बहरहाल, ‘मैडीकल कारणों व अपनी सेहत को वरीयता देने’ का हवाला देते हुए धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत उनका इस्तीफा तुरंत प्रभाव से लागू होता है। अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभालने वाले धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में यह भी लिखा, ‘भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति और अप्रत्याशित घातांकीय विकास को देखना व उसमें हिस्सा लेना मेरे लिए सम्मान की बात रही है। इस परिवर्तनीय युग में काम करना वास्तव में सम्मानजनक था।’ 
धनखड़ के इस्तीफा देने से 60 दिन की खिड़की खुल गई है, जिस दौरान नये उपराष्ट्रपति को चुना जाना है। इस बीच राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह, जिनकी नियुक्ति अगस्त 2022 में हुई थी, उच्च सदन के सभापति का अस्थायी रूप से कार्यभार संभालेंगे। अपने कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देने वाले धनखड़ तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के आकस्मिक निधन (3 मई 1969) के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे, लेकिन उन्होंने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए 2 जुलाई, 1969 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था। वह अपना कार्यकाल पूरा न करने वाले पहले उपराष्ट्रपति बने। उनके बाद बीच कार्यकाल में उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने 21 जुलाई 2007 को अपने पद से इस्तीफा दिया, क्योंकि वह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की प्रत्याशी प्रतिभा पाटिल से राष्ट्रपति का चुनाव हार गये थे। शेखावत के इस्तीफे के बाद 21 दिन तक उपराष्ट्रपति का पद खाली रहा, मुहम्मद हामिद अंसारी के इस पद पर चुने जाने से पहले। इन तीनों ने जुलाई माह में ही क्यों इस्तीफा दिया? यह सोचने की बात है। ध्यान रहे कि आर वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा और के.आर. नारायण ने भी उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के बाद। आधिकारिक तौर पर ‘मैडीकल ग्राउंड्स’ के आधार पर इस्तीफा देने वाले धनखड़ पहले उपराष्ट्रपति हैं। कृष्णकांत एकमात्र उपराष्ट्रपति रहे जिनका पद पर रहते हुए निधन हुआ। उनका निधन 27 जुलाई, 2002 को हुआ था। 
धनखड़ ने मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया था और सदन के पांच नये सदस्यों को शपथ भी दिलायी थी। हालांकि एम्स, दिल्ली में हाल ही में 74 वर्षीय धनखड़ ने एंजियोप्लास्टी करायी थी, इसलिए बहुत मुमकिन है कि वह वास्तव में अपनी सेहत को वरीयता देना चाहते हों, वैसे भी सदन का संचालन काफी तनावपूर्ण होता है, लेकिन उनके अचानक इस्तीफे ने दोनों सरकार व विपक्ष को आश्चर्य में डाल दिया है। यहां एक बात का ज़िक्र करना आवश्यक है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश (जेपी) नड्डा ने मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में बोलते हुए एक बहुत ही अजीब बात कही, जो सदन के प्रोटोकॉल के विरुद्ध तो थी ही, लेकिन उसमें अहंकार व तानाशाही की गंध भी आ रही थी। उन्होंने कहा कि जो कुछ वह कह रहे हैं, केवल वह ही सदन की रिकॉर्डिंग में जायेगा और कुछ नहीं जायेगा। आमतौर से धनखड़ बहुत वोकल रहते हैं, लेकिन नड्डा के इस बयान पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। गौरतलब है कि सदन की रिकॉर्डिंग में क्या रहेगा और क्या नहीं रहेगा, यह तय करने का अधिकार राज्यसभा में सभापति का और लोकसभा में स्पीकर का होता है। सदस्य केवल उनसे आग्रह कर सकते हैं कि फलां फलां बात को सदन की रिकॉर्डिंग में शामिल न किया जाये। यह सही है कि विपक्ष हमेशा यह आरोप लगाता है कि धनखड़ भाजपा का पक्ष लेते हैं, ऐसे कार्य करते हैं जैसे उसके कार्यकर्ता हों और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने यही काम किया, जिसके ईनाम में उन्हें उपराष्ट्रपति का पद दिया गया। विपक्ष का यह भी आरोप है कि धनखड़ न्यायपालिका की आलोचना भी इन्हीं कारणों से करते हैं। विपक्ष के इन आरोपों का यहां न खंडन है और न समर्थन क्योंकि लोकतंत्र में कानून के दायरे में रहते हुए हर किसी को बोलने व आलोचना करने का अधिकार है। लेकिन सवाल यह है कि नड्डा जब धनखड़ के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे थे, तो धनखड़ खामोश क्यों रहे? 
धनखड़ बहुत भावुक व्यक्ति हैं। ज्ञात रहे कि मोदी सरकार 2.0 के आखिरी शीतकालीन सत्र में जब राज्यसभा व लोकसभा के 78 सांसदों को निलम्बित कर दिया गया था तो यह सभी सांसद संसद भवन की सीढ़ियों पर बैठकर निलम्बन का विरोध कर रहे थे। तभी अचानक से तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी खड़े होकर धनखड़ की सदन संचालन के तरीके की मिमिक्री करने लगे, जिसका वीडियो बनाते हुए राहुल गांधी हंस रहे थे। इस पर धनखड़ ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी तो सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कहीं नडड के विवादित बयान से आहात होकर धनखड़ ने भावुकता में आकर तो इस्तीफा नहीं दे दिया? बहरहाल, राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ का कार्यकाल काफी हंगामों से भरा रहा। अनेक अवसरों पर विपक्ष और धनखड़ के बीच गंभीर टकराव हुए और एक बार तो विपक्ष उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भी लाया। 
स्वतंत्र भारत में यह पहली बार था कि उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का प्रयास किया गया। प्रस्ताव को बाद में, जैसा कि उम्मीद थी, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने ठुकरा दिया था। धनखड़ और जया बच्चन व संजय सिंह से हुए उनके विवाद सर्विदित हैं। विपक्ष ने जब सदन के भीतर व बाहर धनखड़ का विरोध किया था, तो धनखड़ ने उसे पूरी जाट बिरादरी के ‘अपमान’ से जोड़ने का प्रयास किया था। खैर, धनखड़ का इस्तीफा उस दिन हुआ जिस दिन राज्यसभा में आश्चर्यजनक घटनाएं हुईं। विपक्ष ने न्यायाधीश यशवंत वर्मा, जिनके सरकारी आवास के स्टोर से अधजले करंसी नोटों का ज़खीरा बरामद हुआ था, को हटाने का नोटिस दिया था, जिसका धनखड़ ने सदन में ज़िक्र किया। सरकार ने न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ ऐसा ही नोटिस लोकसभा में भी दिया था और वह भी विपक्ष को अपने साथ लेते हुए। फिर विपक्ष ने राज्यसभा में अलग से नोटिस क्यों दिया? 
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने सबको चौंका दिया है। चूंकि राजनीति में जो दिखायी देता है वह अक्सर होता नहीं, इसलिए अटकलों का बाज़ार गर्म है कि चौधरी देवीलाल के सेक्युलर स्कूल के छात्र धनखड़ को भाजपा के अतिवादी वातावरण में घुटन महसूस होने लगी थी, बावजूद इसके कि उन्होंने विपक्ष के अनुसार भाजपा का काफी ‘अनुचित पक्ष’ लिया, लेकिन यह भी हो सकता है कि धनखड़ वास्तव में अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हों या पद त्यागने का उन्हें कहीं ‘ऊपर से आदेश’ मिला हो।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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