मॉनसून की हवाओं के साथ उपजा बाढ़ों का कहर

चालू मौसम में मॉनसून के बादलों ने एक ओर जहां देश के अधिकतर भागों में निरन्तर पानी बरसा कर मौसम विभाग द्वारा की गई अधिक पानी बरसने  की भविष्यवाणियों को सही साबित किया है, वहीं देश के कई हिस्सों में बाढ़ों का एक ऐसा कहर बरपा किया है, कि इससे होने वाली क्षति को पूरा करने में बरसों का समय लग सकता है। विशेषतया देश के पर्वतीय प्रांतों यथा हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में मौजूदा भारी बरसातों ने व्यापक स्तर पर विनाश ढाया है। तीनों प्रदेशों में पुलों और सड़कों के बह जाने, पहाड़ों पर भू-स्खलन होने और खड्डों में पानी भर जाने से अनेक मौतें होने के समाचारों ने भी जन-साधारण को दहलाया है। सड़कों, रेल-मार्गों और हवाई मार्ग से यात्राएं और आवागमन प्रभावित हुआ है। हिमाचल प्रदेश में दूर-दूर तक हुई वर्षा ने जहां नदी-नालों पर बने पुलों को नुक्सान पहुंचाया है, वहीं प्रदेश से उतरे नदी-नालों ने पंजाब में भी बड़े स्तर पर हानि पहुंचाई है। उत्तराखंड में भी मौजूदा मौसम की वर्षा के कारण खड्डों में पानी भर जाने से बड़े स्तर पर हुए नुक्सान की दिल दहला देने वाली तस्वीरें देखी जा सकती हैं। हिमाचल के ज़िला मण्डी व चम्बा में यह दूसरी बार है जब वहां फटे बादलों ने भारी विनाश ढाया है। प्रदेश में अब तक मौजूदा मॉनसून के कहर में लगभग एक सौ प्राणियों के प्राण लील लिये गये हैं। प्रदेश के तीन से अधिक ट्रांस्फार्मर बन्द हो जाने से वहां बिजली उत्पादन और विद्युत उपभोग का बड़ा संकट पैदा हुआ। हमीरपुर में एक महिला बादल फटने से बह गई। चम्बा और मण्डी में कई पुल बह गये। सराज में एक बैंक की इमारत ढह जाने से ग्राहकों के लॉकरों में रखे लाखों के गहने मलबे में दब गये।
उत्तराखंड में भी अनेक पुल और सड़कें वर्षा से उपजी बाढ़ों में बह जाने के समाचार हैं। भारी वर्षा के कारण प्रदेश में बद्रीनाथ सहित अनेक दैव-यात्राएं प्रभावित हुई हैं। जम्मू-कश्मीर में अनेक स्थानों पर बादल फटने की घटनाओं में अनेक पुल और सड़कें बह गईं। प्रदेश की लगभग 300 सड़कें आवागमन के लिए बन्द कर दी गईं। माता वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर भी बादल फटने से जहां एक यात्री की मृत्यु हो गई, वहीं इस क्षेत्र की हैलीकाप्टर सेवाएं भी प्रभावित हुईं। जम्मू प्रभाग के साम्बा, कठूआ, उधमपुर और रियासी में अभी भी भू-स्खलन और अतिरिक्त भारी वर्षा की चेतावनी जारी की गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि देश के राजधानी क्षेत्र और हरियाणा में भारी-भरकम वर्षा से उपजे विनाश के पद-चिन्ह देखे जा सकते हैं। किस्सा-कोताह यह कि मौजूदा मॉनसून की वर्षा ने सम्पूर्ण उत्तर भारत और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बेशक धरती की तपिश को शीतल और प्यास को तृप्त किया है, परन्तु इसी वर्षा ने इन क्षेत्रों में विनाश के जो पग-चिन्ह स्थापित किये हैं, उनकी पीड़ा को ये क्षेत्र बड़ी देर तक महसूस करते रहेंगे। 
पंजाब में भी मौजूदा मॉनसून में हुई भारी वर्षा के कारण यद्यपि कोई अधिक और भयावह नुक्सान तो नहीं हुआ, किन्तु विगत तीन सप्ताह में हुई भारी वर्षा ने चहुं ओर भारी जल-थल अवश्य किया है। प्रत्येक वर्षा वाले दिन पंजाब के प्राय: प्रत्येक गली-बाज़ार में पानी भर जाता है। अभी आज एक दिन के कुछ ही घंटों में बरसी भारी बरसात ने शहरों और गांवों में भारी जल-थल कर दिया। नि:संदेह मौजूदा वर्षा ने पूरे प्रांत को भिगोया है। धान की बुआई का मौसम समाप्त हो जाने के कारण पंजाब और हरियाणा के कृषि क्षेत्रों के लिए यह वर्षा लाभदायक और सुखकर भी हो सकती है, किन्तु सरकार द्वारा सीवरेज और रेन-होल्स की समय पर सफाई न किये जाने से थोड़ी-सी वर्षा होने पर ही सड़कों-गलियों में पानी भर जाता है। कई क्षेत्रों में पानी घरों और दुकानों के भीतर भी घुस जाता है। बेशक वर्षा के मौसम से पूर्व ही शहरी नगर निगम प्रशासन और गांवों में लोगों की ओर से नहरों और सीवरेज की सफाई हेतु चेताया जाता रहा, किन्तु प्रशासन के कानों पर कभी एक जूं तक नहीं रेंगी, और नतीजा यह कि अब तक जितने भी दिन वर्षा हुई, शहरों की सड़कों, गलियों-बाज़ारों में पानी भर जाता रहा है। इससे बड़ी परेशानी होती है।
नि:संदेह मॉनसून की हवाओं का आवागमन सृष्टि के संचालन हेतु बहुत आवश्यक है, किन्तु ये हवाएं जब अतिशय में बरसती हैं, तो इनसे बाढ़ें उपजती हैं जो भारी विनाश ढाती हैं। इस अतिशयता और विनाश से बचने का एकमात्र उपाय ऐसे साधनों को विकसित करना है जिनसे एक  ओर जहां वर्षा के इस पानी को भविष्य के उपयोग के लिए सुरक्षित किया जा सके, वहीं नदी-नहरों में उफनते पानी को थाम पाने में सक्षमता हासिल करना भी ज़रूरी है। बेशक यह एक प्राकृतिक आपदा है किन्तु इससे बचने का उपाय करना भी सरकार और प्रशासन का दायित्व है। हम समझते हैं कि इन राष्ट्र-व्यापी और प्रदेश-स्तरीय प्रबन्धों हेतु एक राष्ट्रीय नीति और प्रदेश स्तरीय नीतियों में तालमेल का होना भी उतना ही लाज़िमी है। वर्षा अधिक होगी, तो नुक्सान भी अधिक होगा, किन्तु इस नुक्सान से बचने के उपाय समय-पूर्व कर लेना ही प्रशासनिक दक्षता को सिद्ध करता है। 

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