युद्ध के दौर में भारत-रूस संबंध

पिछले दो वर्ष से रूस का यूक्रेन के साथ युद्ध चल रहा है। यह युद्ध तबाही के नये मंजर दिखा रहा है। ऐसे मुसीबतजदा दिनों में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की दो दिवसीय यात्रा की। भारत के स्वतंत्र होने के बाद से ही रूस के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। (तब सोवियत संघ था, तबसे) लेनिन जैसे नेताओं की दिशा में रूस ने प्रगति के नये आयाम देखे और निरन्तर विकास करते लम्बे समय तक विश्व की एक महाशक्ति के रूप में उभरा। बड़े देश अमरीका तक इसकी प्रगति से हैरान रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने अनेक समस्याएं प्रगति का रास्ता रोके खड़ी थीं। रूस ने कभी भी मैत्री भाव पर आंच नहीं आने दी। भारत के उन्नत होने में सहयोगी भाव से सदा मदद की। जब कम्युनिस्ट चीन ने भारत पर युद्ध थोपा तब भी सोवियत संघ ने (जिसमें कम्युनिस्ट सरकार शासन चला रही थी, भारत की अवहेलना नहीं की)। गोर्वाच्योव के समय सोवित संघ में दरारें आ गईं लेकिन भारत के साथ रिश्ते सदा मजबूत रहे। वे रिश्ते आज तक बने हुए हैं। 
भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते संबंध 1947 से ही जारी रहे हैं। एक निश्चित समय में अमरीका पाकिस्तान की खूब मदद कर रहा था। भारत के हितों को दर-किनार करते हुए। अमरीकी हथियार पाकर पाकिस्तान का जोश और भी बढ़ गया। भारत को धमकियां देता रहा। युद्ध तक भी ले गया। लेकिन संकटकाल में सोवियत संघ भारत की सदा मदद के लिए आगे आता रहा। और तो और वहां के प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन जो पिछले अढ़ाई दशकों से रूस के शासन की बागडोर सम्भाले हुए हैं, भारत के साथ सदा एक दोस्त की तरह खड़े रहे हैं। ऐसे संबंधों के कारण दोनों देशों के शीर्ष नेताओं का  सालाना मिलनी का सिलसिला कायम रहा। पुतिन पिछली बार दिसम्बर 2021 में भारत आये थे। फिर युद्धकालीन जटिल परिस्थितियों और घटती वैश्विक घटनाओं के बीच इस मिलन के सिलसिले में बाधा बनी रही। अब यह मुलाकातों का 22वां संस्करण है।
रूस में यह युद्धकालीन परिस्थितियों के दिन हैं। अमरीका तथा यूरोपियन यूनियन के दर्जनों देशों ने यूक्रेन का साथ दिया। आधुनिक तकनीक के हथियारों से हर तरह से यूक्रेन की मदद की। रूस को केवल चीन का सहारा मिला। भारत में यह आशंका दिखाई जा रही थी कि चीन के भारत के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं। चीन विकट समय में रूस की मदद भी कर रहा है। कहीं रूस इन बदली परिस्थितियों में भारत के साथ मैत्री भाव में फर्क न आने दे, परन्तु अब तक ऐसा नहीं हुआ। यूक्रेन के साथ युद्ध में भारत ने संतुलन बनाये रखा। अमरीका की परवाह न करते हुए रूस से तेल खरीदा जिसमें भारत का ही लाभ था। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत ने किसी शांतिपूर्ण हल का तर्क प्रस्तुत किया। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी यही कहा। 
स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू रूस की क्रांति से प्रभावित थे। उन्हें समाजवादी विचारधारा भी पसंद थी। इससे समाज का ध्यान मज़दूरों और किसानों की मूल तकलीफों की तरफ गया। सोवियत संघ के महान लेखकों का साहित्य भारत में खूब पढ़ा गया। आज भी लोग म. गोर्की, तोल्स्तोय को प्रेम से पढ़ते हैं और अपने समाज की बावत अच्छे शब्दों में व्याख्या करते हैं। इंदिरा गांधी ने भी रूस के साथ संबंध बनाये रखे। तब से आज तक भारत में सत्ता परिवर्तन भी हुए लेकिन रूस के साथ मैत्री ज्यों की त्यो बनी रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा में सहयोग का नया इतिहास लिखने के लिए 28 समझौतों को अमल में लाया जा रहा है। इनमें ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग, खुराक संबंधी समझौता, खनिज पदार्थ तथा कच्चे माल में सहयोग, स्वास्थ्य और दवाइयों के क्षेत्र में सहयोग, आधारभूत ढांचे जैसे रेलवे, स्टील, विज्ञान तथा टैक्नालोजी को मिलकर आगे बढ़ाना तथा इसके साथ ही अंतरिक्ष की खोज में एक साथ चलना तथा पर्यटन एवं शैक्षणिक क्षेत्र के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में दोनों देशों का आपसी सहयोग की योजनाओं पर काम होना लगभग निश्चित है।