अब बारी हरियाणा की

अढ़ाई वर्ष की अवधि में पंजाब को ‘रंगला’ बनाने के किए दावों एवं वायदों से प्रदेश की सत्ता में आई भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसे हर पक्ष से पूरी तरह कमज़ोर करके रख दिया है। दावे गुब्बारों की भांति उड़ गए हैं तथा वायदों की हवा निकल चुकी है। आर्थिक पक्ष से पंजाब आज ‘रंगला’ की बजाये ‘कंगला’ दिखाई देने लगा है। प्रदेश में हुए लोकसभा चुनावों में 13-0 का दावा करने वाले मुख्यमंत्री के हिस्से 3 सीटें ही पड़ी थीं। विगत दिवस हुए जालन्धर पश्चिम विधानसभा का उप-चुनाव सरकारी तंत्र, पुलिस तंत्र तथा धन तंत्र के सहारे मुख्यमंत्री ने कैसे जीता है, उसका विवरण पूरी तरह लोगों के सामने है। एक उप-चुनाव जीतने के लिए मान सरकार द्वारा जो हथकंडे इस्तेमाल किए गए, वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए नमोशीजनक कहे जा सकते हैं। चुनावों के दौरान जो परम्पराएं इस पार्टी ने स्थापित कर दी हैं, उनका खमियाज़ा पंजाब आगामी दिनों में भी भुगतता रहेगा।
अब आगामी अक्तूबर में हो रहे हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए भगवंत मान ने अपने दिल्ली के दो साथियों को बिठा कर यह घोषणा की है कि उनकी पार्टी अकेले ही यह चुनाव लड़ेगी। 20 जुलाई को हरियाणा वासियों को अरविन्द केजरीवाल की ओर से गारंटियां दी जाएंगी। ये उसी तरह की गारंटियां होंगी, जो पहले पंजाब को दी गई थीं। घरों को मुफ्त बिजली देने के फैसले पर क्रियान्वयन से बिजली निगम के बर्तन खड़कने शुरू हो गए हैं, सरकारी खज़ाना खाली ही नहीं हो रहा, अपितु इस अवधि में सत्तारूढ़ पार्टी ने पंजाब पर ऋण का इतना बोझ और लाद दिया है कि प्रदेश की कमर टूटनी शुरू हो गई है। अब मुख्यमंत्री तथा उनके साथियों की ओर से हरियाणा वासियों के साथ भी ऐसे ही वायदों की झड़ी लगाई जाएगी, ऐसे ही वायदे  उन्होंने समय-समय पर गुजरात एवं गोवा राज्यों के चुनावों के दौरान भी किए थे। हर ढंग-तरीका अपना कर पंजाब के अरबों रुपये इन चुनावों पर खर्च कर दिए थे तथा इन चुनावों में पार्टी की नमोशीजनक हार ही हुई थी। कांग्रेस के साथ इस पार्टी के पड़े प्रेम के झूलों की रस्सियां टूट चुकी हैं। दिल्ली के कांग्रेसियों को यह शिकवा है कि यदि वह पिछले लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ते तो वह जीत सकते थे परन्तु आम आदमी पार्टी की भागीदार के कारण वह मुकाबले में कहीं नहीं ठहरे। चुनावों से पहले ही दिल्ली इकाई के कांग्रेस अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली ने अपने ज्यादातर साथियों सहित पार्टी से त्याग-पत्र इस कारण दिया था कि वह समझते थे कि पार्टी ने आम आदमी पार्टी के साथ समझौता करके एक बार फिर बड़ी भूल की है। इन परिणामों के बाद तो दोनों पार्टियों का समझौता टूट भी गया है।
पिछले 2024 के लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में कांग्रेस के साथ मिल कर लड़े थे। 10 में से कांग्रेस 9 सीटों पर लड़ी थी और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को कुरुक्षेत्र से खड़ा किया गया था। ‘आप’ का यह उम्मीदवार बुरी तरह हार गया था। हरियाणा के कांग्रेसियों को अब तक भी यह प्रतीत होता है कि यदि वह यह सीट भी अपने दम पर लड़ते तो उनकी जीत सुनिश्चित थी। वर्ष 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली बड़ी सफलता के दृष्टिगत हरियाणा के भी ज्यादातर प्रसिद्ध नेता इसमें शामिल हो गए थे, परन्तु धीरे-धीरे इसकी कमज़ोर स्थिति को देखते हुए इससे किनारा कर गए थे। निराश होकर पार्टी छोड़ने वाले इन वरिष्ठ नेताओं में पूर्व वित्त मंत्री निर्मल सिंह, पूर्व सांसद तथा हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे डा. अशोक तंवर, पूर्व मंत्री विजेन्द्र उर्फ बिल्लू कादियान, पूर्व मंत्री एवं डिप्टी स्पीकर रहे डा. वासुदेव शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री सचिन राज कुमार वाल्मीकि, पूर्व विधायक रमेश गुप्ता सहित अन्य अनेक ही वरिष्ठ नेताओं ने इससे किनारा कर लिया है। इस पार्टी का हरियाणा में कोई संगठन नहीं है। न ही इसके पास चुनाव जीतने के लिए कोई दमदार उम्मीदवार ही बचे हैं। ऐसे हालात में मुख्यमंत्री द्वारा सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की की गई घोषणा के परिणाम किस तरह के निकलेंगे, इस संबंध में किसी के मन में कोई सन्देह नहीं है। इस समय हरियाणा में इस पार्टी का कोई भी विधायक नहीं है। यह बात देखना दिलचस्प होगा कि ज़ीरो से शुरू हुआ इस पार्टी का यह चुनावी स़फर कौन-से किनारे लगने वाला है। पंजाब के मुख्यमंत्री इस समय के दौरान दोनों राज्यों के मध्य लम्बी अवधि से चलते आ रहे विवादों को लेकर दो-धारी तलवार पर चलते दिखाई देंगे तथा निकट भविष्य में वह अपना ऐसा स़फर किस तरह तथा कितना पूरा करेंगे, यह देखना भी दिलचस्पी से खाली नहीं होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द