सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता होना चाहिए बजट का लक्ष्य 

नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई को पेश होने जा रहा है। अर्थव्यवस्था की बुनियाद अभी भी मजबूत है, लेकिन संकटग्रस्तता के दायरे में बेरोज़गारी की बड़ी समस्या शामिल है, जिसमें शिक्षित युवा और महिलाएं सबसे ज्यादा संकट महसूस कर रही हैं। अरबपतियों की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई है जबकि श्रमिकों और ग्रामीण गरीबों की वास्तविक मजदूरी में गिरावट आयी है। संक्षेप में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार के दस साल के शासन में हुए आर्थिक विकास में सामाजिक न्याय की कमी और असमानताओं में बढ़ोतरी हुई है। संसदीय लोकतंत्र में किसी भी सरकार के लिए लोकसभा चुनाव जीतने के बाद का पहला बजट वंचितों के जीवन स्तर को सुधारने के उद्देश्य से नीतिगत दिशा को सही करने का बड़ा अवसर देता है। 
इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख चुनौतियां हैं— बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन और निम्न आय वर्ग के लोगों की आय में सुधार। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विभिन्न हितधारकों के साथ बजट-पूर्व परामर्श समाप्त कर लिया है और सभी बैठकों में अतिरिक्त संसाधन जुटाने का सवाल उठा। कहीं भी देश के तेजी से बढ़ते अतिधनाढ्यों को अर्थव्यवस्था में समानता बहाल करने के लिए अतिरिक्त बोझ साझा करने के लिए बाध्य करने पर कोई गम्भीर बात नहीं हुई।
अतिधनाढ्यों पर कर लगाने के प्रस्ताव पर वैश्विक स्तर पर चर्चा हुई है। इस साल 18 और 19 नवम्बर को ब्राज़ील में होने वाले अगले जी-20 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा होने क प्रस्ताव है। ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका दोनों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो जी-20 के पिछले अध्यक्ष थे, ने इस प्रस्ताव पर चुप्पी साध रखी है। हालांकि वह नवम्बर में होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और उन्हें इस प्रस्ताव पर भारत की स्थिति के बारे में बात करनी है, जो भारतीय समाज में बहुत तेज़ी से फैल रही असमानता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
अतिधनाढ़्यों या अरबपतियों पर कर क्या है, जिसकी बात कांग्रेस कर रही है। भारत में आतिधनाढ्य लोगों का 10 खरब डॉलर का विवाह उद्योग है। इनमें उद्योगपति, खिलाड़ी, फिल्मी हस्तियांए तथा बड़े राजनेता शामिल हैं। उनकी शादी के खर्च की जांच की जानी चाहिए और एक सीमा से अधिक कर लगाया जाना चाहिए। एक अनुमान के अनुसार भारत में अरबपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इन पर दो प्रतिशत कर से 1.5 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। यह राशि श्रमिक केन्द्रित परियोजनाओं में रोज़गार सृजन सहित अन्य विकास कार्यक्रमों पर खर्च की जा सकती है। 
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. प्रणब बर्धन द्वारा किये गये विश्लेषण के अनुसार सरकार द्वारा सम्पन्न लोगों को दी जाने वाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी को कम करके अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न किये जा सकते हैं। भारत में विरासत और सम्पत्ति कर शून्य है और अमरीका की तुलना में पूंजीगत लाभ कर बहुत कम है। कर प्रणाली अभी भी अमीरों की ओर झुकी हुई है। उदाहरण के लिए कोविड महामारी के संदर्भ में मोदी सरकार ने एक ही झटके में कॉर्पोरेट टैक्स की दर कम कर दी और सरकारी खजाने को 18.4 खरब रुपये का नुकसान हुआ। 
कोविड काल में उद्योगपति और अमीर हो गये जबकि श्रमिकों और कर्मचारियों की नौकरियां चली गयीं और उन्हें भीषण गरीबी का सामना करना पड़ा। डॉ. बर्धन का अनुमान है कि 10 खरब रुपये के कोष से भारत में 200 लाख नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत सहित वैश्विक स्तर पर कम्पनियों द्वारा कर चोरी पर हाल के अध्ययनों को अवश्य पढ़ा होगा। एडवोकेसी ग्रुप टैक्स जस्टिस नेटवर्क द्वारा 2023 के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर के देश टैक्स हेवन के कारण अगले दशक में कर राजस्व में 48 खरब डॉलर तक का नुकसान उठा सकते हैं। इन आश्रयों को वैश्विक कम्पनियों के साथ-साथ भारत के कई अमीरों द्वारा संरक्षण दिया जाता है। इस साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ कर वेधशाला की एक रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया भर के अरबपतियों पर प्रभावी कर दरें उनकी सम्पत्ति के 0 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत के बराबर हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि महामारी के वर्षों के दौरान गरीबों व आमजन का काफी नुकसान हुआ, परन्तु बड़ी कम्पनियों के मुनाफे और अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में वृद्धि हुई। भारत में अतिधनाढ्यों पर विशेष कर लगाना चिर-प्रतीक्षित है। इस साल जनवरी में जारी नवीनतम ऑक्सफैम रिपोर्ट सहित सभी हालिया रिपोर्टें दिखाती हैं कि असमानता लगातार बढ़ रही है। महामारी और महामारी के बाद के वर्षों में सामाजिक सुरक्षा के बिना गरीब लोगों को दयनीय जीवन जीने की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अमीरों की आय में वृद्धि हुई है। असमानता के बढ़ने का भारत में विशेष प्रभाव है, क्योंकि आम नागरिकों को पश्चिम और लैटिन अमरीका और अन्य विकासशील देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से संरक्षित नहीं किया जाता है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत सिर्फ पांच हाथों में औद्योगिक संकेन्द्रण की बढ़ती समस्या का सामना कर रहा है और अरबपतियों, निजी इक्विटीफंडों और क्रोनी कैपिटलिस्टों को समृद्ध कर रहा है जिससे लोगों में अभूतपूर्व स्तर की असमानताएं और गरीबी बढ़ रही है।  विश्व स्तर पर 2020 से अब तक सबसे अमीर पांच लोगों ने अपनी सम्पत्ति दोगुनी कर ली है, लेकिन इसी अवधि के दौरान लगभग पांच अरब लोग गरीब हो गये हैं। कठिनाई और भूख रोज़मर्रा की सच्चाई है और मौजूदा दर पर गरीबी को खत्म करने में 230 साल लगेंगे। भारत में निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र अब 236 अरब अमरीकी डॉलर का है और तेज़ी से बढ़ रहा है। विश्व बैंक की निजी क्षेत्र की शाखा अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफ सी) ने देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल श्रृंखलाओं में सीधे तौर पर आधे अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिनके मालिक कुछ सबसे अमीर अरबपति हैं। 
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में मतदाताओं ने भाजपा की 63 सीटों को कम करके भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों को एक बड़ा झटका दिया। यह देखना होगा कि सत्तारूढ़ दल, विशेष रूप से प्रधानमंत्री ने कोई सबक सीखा है या नहीं और बजट प्रस्तावों के माध्यम से सरकार की आर्थिक नीतियों में कोई सुधार किया है या नहीं। (संवाद)
 

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