भाषणों से नहीं, सामाजिक क्रांति से खत्म होगा नशा

पंजाब के किसी न किसी गांव, शहर में एक दिन भी ऐसा नहीं रहता जब नशे के शिकार युवक की मृत्यु न होती हो। पीड़ित परिवार के लोग एक ही बात कहते हैं कि सरेआम गांव में नशा बिकता है, कोई सुनत ही नहीं। राजनीतिक पार्टियों के लिए यह आरोप-प्रत्यारोप का विषय बन जाता है। बहुत वर्ष पहले अकाली-भाजपा सरकार के समय कहा जाता था कि नशा बहुत बढ़ गया है। फिर चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने चार सप्ताह में नशा मुक्त कर देने की बात कहकर वोट लिए थे। स्वयं कैप्टन अमरिंदर भी शायद जानते होंगे कि चार सप्ताह में नशा मुक्त पंजाब हो ही नहीं सकता, परन्तु चुनाव अभियान में यह बात कह दी। वे बेचारे परिवार जिनके बच्चे नशों के कारण दुनिया से चले गए या नशों से ग्रस्त थे, उन्होंने आशा की किरण देख कर उनको वोट दे गए। सरकार बनी, पांच वर्ष चली पर नहीं समाप्त हुआ नशा। विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (आप) ने भी नशा खत्म करने को लेकर बड़े-बड़े दावे किये थे। अब यही चुनौती ‘आप’ की सरकार के सामने है। सच बात तो यह है कि राजनीतिक संरक्षण के बिना नशा बिकना कठिन लगता है। विभिन्न पार्टियों के नेताओं के भाषण, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप नशे को समाप्त नहीं कर सकते। यह जो बीमारी घर-घर, गांव-गांव तक पहुंच चुकी है, उसका इलाज करने का प्रयास तो राजनेता नहीं कर रहे।
जेलों में भी नशा पहुंचने या मिलने की समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। नेताओं पर भी कभी-कभी ड्रग तस्करों से मिलीभगत होने का आरोप लगता है। इसलिए अब नशे को समाप्त करने के लिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता लाने की आवश्यकता है। 
आज केवल पंजाब में ही नहीं, हिमाचल में भी नशों से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। हिमाचल पुलिस ने नशे के खिलाफ  व्यापक स्तर पर अभियान चलाया, लेकिन नशे के सौदागर भी तस्करी के लिए नए-नए ढंग अपनाते रहे। पिछले दो महीनों में शिमला पुलिस ने सबसे अधिक नशा तस्कर दबोचे। जनवरी माह में एनडीपीएस के 29 और फरवरी माह में 54 मामले दर्ज किए गए तथा पूरे प्रदेश में इसी एक्ट के अंतर्गत बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल स्पीति, नूरपुर, शिमला, सिरमौर, सोलन और उना में सैकड़ों केस पकड़े और अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा गया। अब प्रश्न यह नहीं कि हिमाचल के पंजाब से लगते ज़िले अधिक और दूरस्थ ज़िले भी प्रभावित हो गए। पंजाब तो प्रभावित है ही। 
नशे के खिलाफ वर्षों से भाषण, उपदेश देने का क्रम चला आ रहा है, लेकिन यह बुराई समाप्त नहीं हो रही। इसका खात्मा न पुलिस, न राजनेता और न ही सरकारें कर पा रही हैं। जो जनता वोट देकर सरकार बनाती है, अब उसे ही आगे आना होगा। वैसे ही जैसे गुलामी के बंधन तोड़े थे। जैसे कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण के लिए पूरा समाज एकजुट हुआ था। जैसे हरित क्रांति आम जन ही लाए थे। श्वेत क्रांति के लिए आम जनता ही आगे आई थी। आज ‘एक पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ’ भी सरकारें नहीं कर रहीं, आम जनता ही कर रही है। जैसे जनता का लगाया एक-एक पेड़ भविष्य के लिए सुरक्षित पर्यावरण की गारंटी है, वैसे ही आम जनता को नशे के खात्मे के लिए आगे आना होगा।