आपका नाम क्या है?

इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? जी नहीं बेरोज़गारी नहीं है। इसे तो हमने रियायती अनाज बांटने की परम्परा से चिरन्तन बना कर निपटा दिया है। जी नहीं महंगाई नहीं है। उसे तो हमने सूचकांकों में शामिल वस्तुओं के महत्त्व को घटा- बढ़ा कर निपटा दिया है। जी नहीं भ्रष्टाचार नहीं। उसे तो हमने सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ताच्युत नेताओं के भ्रष्टाचार को बेनकाब करके निपटा दिया है। चाहे वे अपनी गिरफ्तारी के बाद हम पर राजनीतिक बदलाखोरी का आरोप लगा कर शहादत का कितना ही बड़ा जाम पीते रहें।
इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि आपका नाम क्या है? इसकी जानकारी सबको रहनी चाहिए। चाहे इसके लिए आप अपने मकान या दुकान के बाहर अपना नाम लिख कर बड़ा नाम पट्ट लगवाएं। या खुद ही अपना अभिनंदन करके उसकी खबर अखबार में छपवाएं।
देखिये, देश को आज़ाद हुए इतने बरस हो गये। पचहत्तर बरस गुज़र जाने का अमृत महोत्सव हमने मना लिया। अब आज़ादी का पूरा शतक  वर्ष जब गुज़र जाएगा, तो हम अपना विकसित देशों में सर्वोपरि हो जाने का उत्सव भी मना लेंगे। आह! इन बरसों में कितनी तरक्की कर ली हमने। वह भी पिछले एक दशक में। दुनिया की दसवीं आर्थिक शक्ति थे। देखते ही देखते पांचवीं आर्थिक शक्ति बन गये। दो तीन बरस गुजर जाने दो, दुनिया की तीसरी बड़ी शक्ति बन जाएंगे। आज़ादी का शतकीय वर्ष बनाएंगे तो दुनिया की पहले नम्बर की आर्थिक शक्ति बन जाएंगे। फिर दुनिया भर का गुरुदेव कहलाएंगे। इसके लिए अपनी हज़ारों साल पुरानी संस्कृति की तलाश हमने शुरू कर दी है। उसकी गरिमा का बखान कैसे करें? वह शब्द अतीत है। उसकी तो केवल चरण रज ली जा सकती है, लेकिन चरण रज प्राप्त करना इधर बहुत ़खतरनाक हो गया है, बन्धु! भीड़ बन कर एक दूसरे के साथ धक्का-मुक्की करते हुए इसे प्राप्त करने के लिए भागोगे, तो एक दूसरे के नीचे आ कर कुचले जाओगे। यूं हताहत होने का रिकार्ड बनाओगे। जिसे परमात्मा बना उसके पीछे भागे थे, उसे लुप्त हो जाने के लिए विवश कर दोगे। उसका नाम चाहे ज़िम्मेदारों की सूची में न हो, या उसे जांच-पड़ताल के लिए बुलाना भी किसी के बस में न हो, तो भी नदारद हो जाएगा वह। हां, अपने बयानों में मर गये लोगों के बारे में वह हमदर्दी प्रकट करता रहेगा। भीड़ एक दूसरे के पैरों के नीचे आकर मरी। जो मरे उनका भी कोई नाम नहीं था: उन्हें केवल श्रद्धालु कह दिया गया। जो ज़िम्मेदार थे वे भी आयोजक या मौके का प्रशासन कहता ज़ीरो एफ.आई.आर. दर्ज होने के साथ निपट गए। जिसका नाम था, जो आपके दुख, रोग, चिन्ताएं मिटाने के लिए निकला था, उसकी ओर कोई देख सके इतना साहस भला किसमें है। उसके हुक्म या उसके इशारे पर बिना नाम की एक बड़ी भीड़ नाचती है न। उसे वोट बैंक क्यों कहते हो? बैंक नहीं उनकी थाती है। जिसे चाहे भेंट कर दें। रंक से राजा बना दें। सत्ता की कुर्सी दिलवा दें। भला ऐसे व्यक्ति की तो चरण वन्दना होती है। उसे कोई कटघरे में खड़ा कर सके, इतनी सामर्थ्य दिन-रात राजनीति का सांप और सीढ़ी का खेल खेलने वाले महानुभावों में कहां? जी हां, असल समस्या तो एक भीड़ से, एक जाति से, एक वर्ग से एक पहचाना हुआ नाम हो जाने की है। जिस अतीत की तलाश में दिन-रात लगे हो, उसमें ऐसे नाम कमाये थे लोगों ने अपनी मेहनत से। राष्ट्र के लिए अपने बलिदान से। इन सबके नाम तो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। बड़ा कठिन रास्ता है यह। भला ऐसे इतिहास, साहित्य या संस्कृति के पन्नों का शिलालेखों पर अपना नाम कौन दर्ज करवाए?
क्यों न इसकी जगह इस अन्धे युग की एक नई संस्कृति बनाएं। इसका नाम है शार्टकट संस्कृति जिसमें मेहनत, आदर्श और न्योछावर हो जाने का पाठ नहीं पढ़ाया जाता, बल्कि हथेली पर सरसों जमाने के तरीके सिखाएं जाते हैं। यहां दल बदलने और पांसा पलटने के सर्व-स्वीकार्य तरीके से नये युग की रचना होती है। यह युग आपकी और आपके परिवार की सुध लेने का वचन देता है, तो स्वर्णिम युग है। इसका प्रतीक चिन्ह है गिरगिट। आप इसके ध्वज तले दिन में अपने समर्पण के इतने रंग बदल सकते हैं, कि खुद गिरगिट भी शरमा जाए। यहां कोई किसी को ‘आया राम गया राम’ कह कर किसी का अपमान नहीं करता, बल्कि इसे ज़माने के साथ चलना कहा जाता है। यहां भाषा लुप्त हो कर नारों में तबदील हो गई है, और इस देश काल में रहते लोग सफल हुए बिना इस सफलता का उत्सव मनाते हैं। इसे आंकड़ा उत्सव कहते हैं, क्योंकि यहां आंकड़ा फैक्टरियां बिना आधार के मिथ्या आंकड़ों का निर्माण करती हैं, ताकि आपके उत्सव मनाने के कोलाहल को सच्चा कर सके।
युग बदल गया और आप अभी भी अपना नाम तलाश रहे हैं। अनुकम्पा की बरसात हो रही है। इस बरसात में नहाते हुए लोग उपकृत होते हैं, लाभार्थी होते हैं। इन लोगों के कोई अलग-अलग नाम नहीं होते। नामों के गट्ठर होते हैं, जिन पर ‘सब चलता है’ की संस्कृति के संदेशवाहक मसीहा अपने सर्वाधिकार सुरक्षित करते हैं। फिर इनके वजूद पर अपनी-अपनी मर्जी के लेबल चिपकाते हैं। आज के युग में इसे टकसाली या सिक्काबन्द हो जाना कहते हैं, गुरु, और यही तुम्हारी पहचान है, नया नाम है।