चीन छोड़ने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमंत्रित करे भारत 

ऐसे समय में जब एक के बाद एक विदेशी कम्पनियां दमन के विरोध में चीन छोड़ रही हैं, भारत सरकार इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देश में परिचालन शुरू करने के लिए आमंत्रित करने के बजाय, चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर नये सिरे से विचार कर रही है। माना जाता है कि भारत ने चीनी नागरिकों पर वीज़ा प्रतिबंधों में ढील देने का फैसला किया है। चीन के प्रति भारत के रवैये में अचानक बदलाव जो रणनीतिक रूप से उसका सबसे खतरनाक दुश्मन है, समझ से परे है।  भारत चीन के साथ भारी व्यापार घाटा चलाता है जो पिछले कई वर्षों से देश में रोज़गारहीन आर्थिक विकास के पीछे एक प्रमुख कारण है। चीन से कम प्रतिबंधित एफडीआई भारत के पूंजीगत खाते के घाटे को बढ़ायेगा जबकि चीनी युवाओं के लिए अधिक रोज़गार पैदा करेगा, भारत के युवाओं के लिए नहीं। 
तार्किक रूप से भारत सरकार को चीन छोड़ने वाली या वहां अपना परिचालन कम करने वाली विदेशी कम्पनियों को अत्यधिक आकर्षक निवेश प्रोत्साहन देकर भारत में उद्यम स्थापित करने के लिए खुले हाथों से आमंत्रित करना चाहिए। इससे देश को चीन से आयात में भारी कटौती करने और निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी जिसे आंशिक रूप से नकद प्रोत्साहन और कम कर दर प्रस्तावों से जोड़ा जा सकता है।  चीन में परिचालन कम करने वाली बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में डेल टेक्नोलॉजीज, एचपी, इंटेल, सैमसंग, एलजी, सोनी, स्टेनली ब्लैक एंड डेकर, प्यूमा, शार्प आदि विश्व प्रसिद्ध कम्पनियां हैं। एप्पलइंक ने चीन से बाहर निकलने की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। फॉक्सकॉन ने भी इसका अनुसरण किया। इसके कारण एप्पल और फॉक्सकॉन से जुड़े स्थानीय व्यवसायों का व्यवस्थित रूप से परित्याग हो गया है और चीन में बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है। फॉक्सकॉन, जिसने 1,00,000 से अधिक लोगों को रोज़गार देने में मदद की,  ने अब अपना परिचालन वियतनाम में स्थानांतरित कर दिया है। 
सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स दक्षिण कोरिया की एक बड़ी कम्पनी जिसका 74 देशों में बिक्री नेटवर्क है और जिसमें 2,70,000 से ज़्यादा लोग काम करते हैं, चीन से मुंह मोड़ रही है। हाल ही में इस व्यापारिक समूह ने घोषणा की कि वह दक्षिण कोरिया में पांच चिप फैक्टरियां बनाने के लिए 230 अरब डॉलर का निवेश करेगी। कम्पनी ने चीन में अपनी स्मार्टफोन फैक्टरियां बंद कर दी थीं, जिससे वह शहर जहां उसका मुख्यालय था, एक भूतहा शहर बन गया। सैमसंग ने अगस्त 2022 में अपने आखिरी चीनी पीसी (पर्सनल कम्प्यूटर) प्लांट में उत्पादन बंद कर दिया और परिचालन को वियतनाम में स्थानांतरित कर दिया। 
यह बहुत आश्चर्य की बात है कि स्थानीय रोज़गार के अवसरों और आर्थिक विकास में व्यापक सुधार के लिए विनिर्माण क्षेत्र में बड़े निवेश की तलाश कर रही भारत सरकार चीन से ऐसी विशाल विदेशी फर्मों के बाहर निकलने और एशिया में कहीं और स्थानांतरित होने या अपने मूल स्थानों पर वापस लौटने पर मूक दर्शक की भूमिका निभा रही है।  यह और भी अधिक आश्चर्य की बात है कि भारत ने चीन की मदद की है और मौजूदा चीनी कम्पनियों के संदिग्ध व्यवहारों से निपटने के अपने बेहद अजीब अनुभव को नज़रअंदाज़ करते हुए विनिर्माण और सेवा संचालन में निवेश आमंत्रित किया है, जिसमें फंडट्रांसफर और वीजा की समाप्ति के बाद चीनी कर्मचारियों के अवैध प्रवास के संबंध में भारत का अनुभव शामिल है।
भारत के बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण ने एक आश्चर्यजनक सुझाव दिया है कि भारत चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करके और ‘चीन प्लस वन’ रणनीति के माध्यम से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करके निर्यात को बढ़ावा दे सकता है।  भारत में काम कर रही चीनी कम्पनियों से भारत के निर्यात को बढ़ावा देने की उम्मीद करना हास्यास्पद है, जब वे अपने देश से ऐसा करने में विफल हो रही हैं। आर्थिक सर्वेक्षण ने उल्लेख किया कि चीन से एफडीआई पर ध्यान केंद्रित करना अमरीका को भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अधिक आशाजनक लगता है, जैसा कि पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने अतीत में किया था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि चीन भारत का शीर्ष आयात साझेदार है और चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ रहा है। चूंकि अमरीका और यूरोप अपनी तात्कालिक आपूर्ति चीन से हटा रहे हैं, इसलिए चीनी कम्पनियों द्वारा भारत में निवेश करना और फिर इन बाज़ारों में उत्पादों का निर्यात करना अधिक प्रभावी है। चीन से आयात करना, न्यूनतम मूल्य जोड़ना और फिर उन्हें फिर से निर्यात करना।
सर्वेक्षण इस तथ्य को पहचानने में विफल रहता है कि वैश्विक निर्यात खुद ही सिकुड़ रहा है जबकि भारत का आयात बढ़ रहा है, ज्यादातर चीन से। उपभोग के लिए पारम्परिक वस्तुओं की वैश्विक मांग, विशेष रूप से पश्चिम में घट रही है। 
विश्व व्यापार संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर उच्च ऊर्जा कीमतों और मुद्रास्फीति के प्रभाव के कारण 2023 में वैश्विक व्यापार की मात्रा 1.2 प्रतिशत घट गयी। दिलचस्प बात यह है कि 2023-24 में चीन को भारत का निर्यात केवल 16.65 अरब डॉलर रहा जबकि आयात 101.75 अरब डॉलर का था जिससे भारत को 85 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा हुआ।  इसके विपरीत पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का अमरीका के साथ 36.74 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष था। अमरीका उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है।
 चीन से होने वाला भारी आयात भारत की बढ़ती बेरोज़गारी और व्यापार घाटे की मौजूदा स्थिति के लिए ज्यादातर ज़िम्मेदार है। चीन से औद्योगिक निवेश इसके पूंजी खाता घाटे को और बढ़ायेगा। अब समय आ गया है कि भारत अपने लोगों के लिए रोज़गार सृजन करने और आयात पर निर्भरता में भारी कटौती करने हेतु बड़े पैमाने पर ग्रीनफील्ड निवेश आकर्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन प्रदान करे। (संवाद)

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