सोशल मीडिया की एक अफवाह से दंगों की आग में जल रहा ब्रिटेन !

सोशल मीडिया पर फैलाये गये एक झूठ के कारण इंग्लैंड में ऐसे भयंकर दंगे हो रहे हैं, जैसे कि इस देश में अब से 13 साल पहले देखे गये थे। दंगों में फार राइट (अति दक्षिणपंथी) गुट अप्रवासियों पर हमले कर रहे हैं व जगह-जगह आगज़नी, पथराव व तोड़फोड़ की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। सैंकड़ों की संख्या में मास्क-लगाये दंगइयों ने दक्षिण यॉर्कशायर के रोथरहैम में हॉलिडे-इन एक्सप्रेस होटल पर भी हमला बोला, जहां राजनीतिक शरण मांगने वाले व्यक्तियों को ठहराया गया था। फार राइट गुटों ने लिवरपूल, मानचेस्टर, ब्रिस्टल, ब्लैकपूल, हल आदि जगहों के अतिरिक्त उत्तरी आयरलैंड में भी पथराव किया, दुकानों को लूटा व आग लगायी। दंगइयों को नियंत्रित करने के प्रयास में अनेक पुलिसकर्मी घायल भी हुए हैं। दरअसल, उन सभी जगहों को निशाना बनाया गया है, जहां अप्रवासियों, विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप से संबंधित, की संख्या अच्छी समझी जाती है। पुलिस फेडरेशन ऑफ इंग्लैंड एंड वेल्स के टिफनी लिंच का कहना है, ‘हम देख रहे हैं कि दंगे अब सभी प्रमुख शहरों व टाउन्स में फैलते जा रहे हैं।’ 
पुलिस ने इंग्लिश डिफेंस लीग (जिसका संबंध फुटबॉल हुड़दंग से भी है) से संबंधित गुटों को हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। हिंसा को रोकने के लिए हज़ारों की संख्या में अतिरिक्त पुलिस तैनात की गई है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 147 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया था। इंग्लैंड में इतने भीषण दंगे इससे पहले 2011 की गर्मियों में देखे गये थे, जब उत्तरी लंदन में पुलिस ने एक मिश्रित-नस्ल के व्यक्ति की हत्या कर दी थी। इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम तट पर लिवरपूल के निकट साउथपोर्ट में 29 जुलाई, 2024 को टेलर स्विफ्ट थीम डांस पार्टी में एक 17 वर्षीय युवक ने चाकू से हमला किया था, जिसमें 6, 7 व 9 वर्ष की तीन बच्चियों की मौत हो गई थी व 10 अन्य व्यक्ति घायल हो गये थे। इस हमलावर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन ऑनलाइन यह अफवाह फैलायी गई कि डांस क्लास चाकूबाज़ी का हमलावर ‘एक मुस्लिम व अप्रवासी’ है। हालांकि इंग्लैंड में 18 वर्ष की आयु से कम के संदिग्ध का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है, लेकिन इस अफवाह व आशंकित हंगामे को रोकने के उद्देश्य से न्यायाधीश एंड्रयू मेनारी ने संदिग्ध का नाम सार्वजनिक करने का आदेश दे दिया। 
संदिग्ध वेल्स में जन्मा रवांडा पेरैंट्स का 17 वर्षीय पुत्र एक्सेल रूदाकुबाना है। उस पर तीन काउंट्स हत्या के और 10 काउंट्स हत्या के प्रयास के चार्ज लगाये गये हैं, लेकिन इसके बावजूद फार राइट ने डांस क्लास की अप्रिय व निंदनीय आपराधिक घटना को दूसरा रुख देते हुए अप्रवासियों को ही अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया, जिनका विरोध वे बहुत पहले से करते आये हैं। पुलिस का कहना है कि हिंसा सोशल मीडिया पर ‘हाई प्रोफाइल एकाउंट्स से शेयर व फैलायी गई गलत सूचना के कारण हुई’। फार राइट गुट ‘बहुत हो चुका’, ‘हमारे बच्चों को बचाओ’, ‘नावों को रोको’ आदि वाक्यांशों से अप्रवासियों के विरुद्ध अपने समर्थकों व अन्यों को भड़काने का प्रयास करते हैं। दरअसल, वर्तमान हिंसा की पृष्ठभूमि में फार राइट की अप्रवासी विरोधी विचारधारा है। 
इंग्लैंड में पांच सबसे बड़े उद्योगपतियों में से चार भारतीय मूल के हैं। अप्रवासी चाहे भारतीय उपमहाद्वीप से हों या अन्य जगहों से, वे इंग्लैंड में अपने पैर जमाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और अधिकतर मामलों में खुद को स्थापित करने में सफल भी हो जाते हैं। फार राइट को लगता है कि अप्रवासी उनके आर्थिक अधिकारों पर कब्ज़ा कर रहे हैं, जिससे उनके अपने लोगों को बहुत सी चीज़ों से वंचित होना पड़ रहा है। वैसे दुनिया भर में यही समस्या है कि आपूर्ति कम व मांग अधिक है, जिसको संतुलित करने के जो प्रयास होने चाहिएं, वे तो होते नहीं हैं बल्कि दोषारोपण का सिलसिला आरंभ हो जाता है कि इस-उस की वजह से ऐसा हो रहा है और इनके बिना सब ठीक हो जायेगा। इस किस्म की संकीर्ण सोच की राजनीति सॉफ्ट टारगेट्स की तलाश करती है, उन्हें निशाना बनाती है, जिससे हिंसा भड़कती है। इससे कुछ त्वरित राजनीतिक लाभ तो होता है, लेकिन मूल समस्या का कभी समाधान नहीं होता है। इंग्लैंड में भी फार राइट दंगा करके अपने देश की सम्पत्ति का ही नुकसान कर रहे हैं। अगर उनको लगता है कि उनकी हिंसा से इंग्लैंड अप्रवासी मुक्त हो जायेगा तो यह उनकी भूल है। 
इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान अप्रवासियों का है, विशेषकर भारतीय मूल के अप्रवासियों का। बहरहाल, इंग्लैंड में लगभग एक सप्ताह से अधिक के दंगों के धुएं में भी एक बात एकदम स्पष्ट देखी जा सकती है। हाल के आम चुनाव में भले ही फार राइट को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा हो, लेकिन हंगामा व हिंसा करने की उसकी क्षमता बे-रोकटोक जारी है। उसे अपनी हरकतों को अंजाम देने के लिए बस एक ट्रिगर की प्रतीक्षा रहती है, जो इस बार डांस क्लास की घटना से मिल गया। पीड़ितों के परिवारों के आंसू रुके भी न थे कि उनके इर्द-गिर्द हिंसा व आगज़नी आरंभ हो गई, जोकि मेनचेस्टर से लंदन तक फैल गई। सड़कों की शांति भंग करने के लिए सोशल मीडिया पर जिस तरह से गलत सूचना फैलायी गई, उससे दुर्भाग्य से भारत भी अच्छी तरह से परिचित है। ऐसे ही शरारत भरे एसएमएस अभियान ने 2012 में उत्तर-पूर्व के समुदायों को बेंग्लुरु से पलायन के लिए मजबूर कर दिया था। 
इससे आगे देखें तो समस्या यह है कि सब कुछ 20वीं शताब्दी की तरह ही हो रहा है। इंग्लैंड में आरोपी की पहचान को सार्वजनिक करने में कई दिन लगे। उस दौरान गलत सूचना जंगल में आग की तरह फैलती रही। फिर इससे भी मदद नहीं मिलती है कि सोशल मीडिया कम्पनियां जैसे एक्स हिंसा भड़काने वाली पोस्ट्स को हटाने में आनाकानी करती हैं। निगेल फारगे की अप्रवासी विरोधी पार्टी ने इंग्लैंड के आम चुनाव में भले ही सिर्फ 5 सीटें जीती हों, लेकिन उसे पूरे देश में 14 प्रतिशत मत मिले। इस सप्ताह उन्होंने, अपनी आदत के अनुसार, अफवाह को यह कहकर फिर हवा दी कि ‘हम तक सच्चाई नहीं पहुंचने दी जा रही है’। उनकी भड़काऊ बातों से फार राइट के साथ नव-नाज़ी, इस्लामोफोब, हुड़दंगी फुटबॉल फैंस व अन्य नफरती गुट अप्रवासियों के विरुद्ध एकजुट हो गये, जिससे असल पीड़ितों को तो भुला दिया गया और नये पीड़ितों की लम्बी लाइन लग गई। फार राइट की हरकतें दुनिया भर में एक जैसी ही हैं। जब तक इन्हें नियंत्रित करने के लिए विश्व समुदाय एकजुट होकर नहीं सोचेगा, तब तक पीड़ितों की सूची लम्बी होती रहेगी।