भारत का दृढ़ रवैया

चीन एवं भारत के मध्य संवेदनशील सीमांत मामले पर एक बार फिर समझौता होना इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय पूर्वी लद्दाख के कई सीमांत क्षेत्रों में दोनों देशों के सैनिक भारी संख्या में  एक-दूसरे के समक्ष खड़े हैं। लगभग पिछले साढ़े चार वर्ष से वहां सख्त टकराव की स्थिति बनी हुई है, जिसका अब हल होने से जहां आपसी तनाव कम होगा, वहीं शेष बचे मामलों के बावजूद दोनों में पुन: अच्छा मेल-मिलाप आरम्भ होने की उम्मीद की जा सकती है। वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर हमला करके उसके एक बड़े भू-भाग पर कब्ज़ा कर लिया था। उसी समय से ही दोनों देशों में किसी न किसी रूप में आपसी तनाव चलता आ रहा है। चाहे समय-समय पर दोनों देशों के प्रमुखों सहित प्रत्येक स्तर के अधिकारी दोनों देशों के दौरे भी करते रहे हैं तथा व्यापारिक तौर पर भी एक-दूसरे के साथ जुड़े रहे हैं।
भारत से चीन की 3488 किलोमीटर सीमा लगती है, जिसके कई भागों में अक्सर चीनी सैनिक घुसपैठ करते रहे हैं तथा भारत के ज्यादातर क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के यत्न भी करते रहे हैं। चाहे दोनों देशों में एक नियन्त्रण रेखा तो स्थापित कर ली गई थी, परन्तु चीन ने अभी तक भी भारत के ज्यादातर क्षेत्रों पर अपना दावा नहीं छोड़ा। दोनों देशों के सैनिक सीमा पर गश्त करते रहते हैं, जहां अक्सर आपसी टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसी ही स्थिति 15 जून, 2020 में पैदा हुई थी, जब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों की आपसी झड़प हो गई थी, जिसमें भारत के एक कर्नल सहित 20 सैनिक शहीद हुये थे। चीन ने अपने मारे गये सैनिकों की संख्या नहीं बताई थी। इसके बाद दोनों ही देश अपनी-अपनी ओर सैनिक जमावड़ा करते रहे थे। उन्होंने एक-दूसरे के सामने अपने आधुनिक हथियार भी तैनात कर दिये थे, परन्तु इसके साथ ही दोनों देशों ने सैनिक एवं कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी रखी थी। भारत इस बात पर बज़िद रहा कि हालात को सामान्य की भांति बनाने के लिए पूर्वी लद्दाख के विवादित क्षेत्रों में मई, 2020 से पहले की स्थिति को बहाल किया जाना ज़रूरी है परन्तु चीन इन क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताता रहा है, जो भारत को कदाचित भी स्वीकार नहीं था। इस लम्बी बातचीत में पहले पैंगांग झील के उत्तरी तथा दक्षिण भागों से सेना हटाई गई। उसके उपरांत घोगरा तथा हार्ट स्प्रिंग से भी सैनिकों को हटा लिया गया परन्तु इससे भी भारत की तसल्ली नहीं हुई थी।
अब साढ़े 4 वर्ष की अवधि के बाद पूर्वी लद्दाख के दो सीमांत क्षेत्रों देपसांग एवं डेमचौक से भी सैनिक हटाने के संबंध में समझौता पूर्ण कर लिया गया है। पहले इसकी जानकारी भारत के विदेश सचिव एवं उसके बाद विदेश मंत्री की ओर से भी दी गई है। अब चीन के विदेश मंत्रालय ने भी यह सूचना प्रसारित कर दी है। नि:संदेह भारत ने यह सफलता बहुत धैर्य किन्तु अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति दिखा कर ही प्राप्त की है। इससे पहले भी भूटान के साथ लगती चीन की सीमा पर ऐसा ही टकराव पैदा हुआ था। वर्ष 2017 में चीन की सेना भूटान एवं भारत की सीमाओं के भीतर डोकलाम तक पहुंच गई थी, जिस कारण भारत ने भी वहां अपने सैनिक तैनात कर दिये थे। 72 दिन तक आमने-सामने दोनों देशों के सैनिक तैनात रहे थे परन्तु अंतत: चीन ने भारत के सख्त रवैये के दृष्टिगत वहां से अपने सैनिक हटा लिए थे।
नि:संदेह आज चीन को यह अहसास हो चुका है कि भारत उसके  समक्ष निडरता के साथ खड़ा हो सकता है। चीन की नीयत अपने छोटे पड़ोसी देशों   को धमकाने की बनी रही है। वह दक्षिण चीन के समुद्र के बड़े भाग पर भी अपना हक जता रहा है, जो आज हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक बड़ा ़खतरा बन चुका है। इसीलिए उसके विरुद्ध आज कई देशों ने एकजुट होकर संगठन बना लिए हैं। इस सन्दर्भ में ही ‘क्वाड’ के नाम पर चीन के समुद्री ़खतरे को देखते  हुए अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान एवं भारत का संगठन अस्तित्व में आया है, जिसने संयुक्त रूप में चीन की इस विस्तारवादी नीति को रोकने का प्रण कर लिया है। भारत की ओर से अपनाये गये रवैया एवं दिखाई गई दृढ़ता से चीन को कुछ नकेल ज़रूर पड़ी है परन्तु अभी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि वह अपनी विस्तारवादी नीति से किनारा कर लेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द