गेहूं की अधिक उपज लेने के लिए कुछ सिफारिशें

वैसे तो समय पर बोई जाने वाली गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की बिजाई का उचित समय नवम्बर का पहला पखवाड़ा है, परन्तु अगेती किस्में डब्ल्यू.एच.-1105, एच.डी.-3226, एच.डी.-2967 आदि जो पकने को अपेक्षाकृत अधिक समय लेती हैं, की बिजाई आजकल अक्तूबर में करने की सिफारिश की गई है। सम्भव है कि इस वर्ष गेहूं की बिजाई कुछ देर से की जाए। देर से बिजाई होने से उत्पादन कम होता है। गेहूं पंजाब तथा भारत की रबी की मुख्य फसल है। गेहूं भारत के 19 राज्यों में पैदा होती है, जिनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश योगदान देने वाले मुख्य राज्य हैं।
पिछले कुछ वर्षों में तो किसान इन दिनों में ही गेहूं की बिजाई संबंधी योजनाबंदी कर लेते थे और किस्मों का चयन करके अधिकतर किसान योग्य किस्म के बीज का प्रबंध कर लेते थे, परन्तु इस वर्ष धान के मंडीकरण में समस्याएं आने के कारण इस संबंधी देर हो गई है। किस्म का योग्य चयन उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। इस वर्ष गेहूं की किस्मों की भरमार है, जिस कारण किसान असमंजस में हैं कि वे कौन-सी किस्म चुनें। पी.ए.यू., आई.ए.आर.आई., आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. तथा एच.ए.यू. द्वारा विकसित की गई किस्मों में से ही किसान चयन करते हैं। पी.बी.डब्ल्यू.-826, डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371, डी.बी.डब्ल्यू.-372, डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-187, एच.डी.-3386, एच.डी.-3406 तथा डब्ल्यू.एच.-1105 आदि अधिक उत्पादन देने वाली कुछ किस्में हैं, जो किसानों की पसंद बनीं। किसान अपनी ज़मीन तथा पिछली आज़माइशों के आधार पर किस्म का चयन करते हैं। प्रगतिशील किसान एक से अधिक किस्म का चयन करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इससे जोखिम कम हो जाता है। यदि एक किस्म को बीमारी आ जाए तो दूसरी किस्म का बचाव होने की सम्भावना होती है। फसलों का बढ़िया प्रबंधन, जैसे समय पर बिजाई, बीज की मात्रा, समय पर रासायनिक खाद डालना, सिंचाई करना तथा नदीनों पर समय पर काबू पाना आदि उत्पादन बढ़ाने में सहायक होते हैं। खर्च कम करने के लिए ज़ीरो टिल तकनीक (बिना ज़मीन जोते बिजाई) की सिफारिश की गई है, परन्तु यदि खेत में नदीनों की अधिक समस्या न हो। ज़ीरो टिल तकनीक से समय की बचत होती है, वायुमंडल का प्रदूषण कम होता है, गुल्ली डंडे की समस्या कम आती है और सिंचाई के पानी की भी बचत होती है, परन्तु तीन वर्ष लगातार ज़ीरो टिल से फसल की बिजाई करने के बाद ज़मीन को जोतना पड़ता है। इससे भविष्य में बहु-नदीनों तथा चूहों के बढ़ने से पैदा होने वाली समस्या से निजात मिलती है। हैपी सीडर के साथ भी बिजाई करने से खर्च कम आता है। यह मशीन धान की पराली को गेहूं के डालियों के बीच सिलसिलेवार मलच के रूप में बिछाने के बाद दबाव देती है। अवशेष को आग लगाने से बचाने के लिए हैपी सीडर तथा सुपरसीडर का इस्तेमाल क्रियाशील है। 
अधिक उत्पादन लेने के लिए सामान्य समय 1 से 15 नवम्बर के दौरान बिजाई करने की सिफारिश की गई है। अच्छे उत्पादन के लिए ज़मीन की सेहत को बरकरार रखना ज़रूरी होता है। इसके लिए खाद का उचित इस्तेमाल करना चाहिए। सामान्य ज़मीन में यूरिया 110 किलो, डी.ए.पी. 55 किलो या सुपरफास्फेट 155 किलो डालने की सिफारिश की गई है। पोटाश तत्व की कमी वाली ज़मीन में 20 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालना चाहिए। गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ तथा शहीद भगत सिंह नगर ज़िलों में म्यूरेट ऑफ पोटाश की खुराक की मात्रा दोगुणा कर देनी चाहिए। किसानों को नीम-लिप्त यूरिया इस्तेमाल करना चाहिए। यदि गेहूं की बिजाई देरी से की जाए तो उसे समय पर बोई गई गेहूं से 25 प्रतिशत नाइट्रोजन कम देनी चाहिए। खरीफ की फसलों के मुकाबले गेहूं की फसल फास्फोरस खाद अधिक मांगती है। गेहूं के लिए डी.ए.पी. खाद के उपयोग का विशेष महत्व है। डी.ए.पी. खाद बिजाई के समय ही इस्तेमाल की जाती है। इस वर्ष जो डी.ए.पी. की कमी आई है, उससे गेहूं का उत्पादन एवं बिजाई प्रभावित होने की सम्भावना है। किसान तो तीन-तीन, चार-चार थैले 50 किलो का एक थैला+5 किलो की बजाय गेहूं में डी.ए.पी. डाल रहे हैं, जिस कारण डी.ए.पी. की ज़रूरत तथा खपत और भी बढ़ जाती है। लगभग 5.5 लाख मीट्रिक टन  डी.ए.पी. की रबी में ज़रूरत है। अब तक इसकी उपलब्धता बहुत कम है। चुनावों से पहले तो हरियाणा में डी.ए.पी. अधिक मात्रा में आती रही, जिसमें से कुछ भाग पंजाब में आ जाता था, जिसे कुछ बड़े-बड़े किसानों ने लाकर स्टोर कर लिया। अब स्थिति पंजाब में तो और भी गम्भीर हो गई है। यदि डी.ए.पी. की कमी पर काबू न पाया गया और केन्द्र ने पंजाब की मांग पूरी न की तो इससे किसानों की आर्थिक हालत उत्पादन कम होने के कारण और खराब हो जाएगी तथा गेहूं का उत्पादन कम होने से केन्द्रीय अनाज भण्डार में इसकी आपूर्ति कम होगी। 
गुल्ली डंडा कई स्थानों पर 50 प्रतिशत तक उत्पादन को प्रभावित करता है, जिस पर किसानों को प्रभावशाली नदीन नाशक का चयन करके और इसका छिड़काव सही विधि एवं समय पर करके काबू पा लेना चाहिए।