ब्रिक्स की सार्थकता

रूस के कज़ान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन कई पक्षों से महत्त्वपूर्ण भी है तथा इसकी व्यापक चर्चा भी है। यह सम्मेलन उस समय हुआ है, जब एक तरफ रूस तथा यूक्रेन में विगत लम्बी अवधि से युद्ध छिड़ा हुआ है तथा दूसरी तरफ इज़रायल एवं हमास के बीच ़खतरनाक युद्ध चल रहा है और उसमें ईरान सहित कई अरब देश भी शामिल हो गये हैं। अमरीका एवं ज्यादातर पश्चिमी देश नाटो संधि में बंधे हुये हैं। उनकी मज़बूत शक्ति को विश्व भर में माना जाता है। दूसरी तरफ ब्रिक्स में शामिल देशों का भी बड़ा प्रभाव माना जाने लगा है। वर्ष 2009 में इसके प्रथम सदस्यों में रूस, भारत, चीन, ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। अब इसमें ईरान, मिस्र, इथोपिया, यूनाइटिड अरब अमीरात तथा सऊदी अरब भी शामिल हो गये हैं। इनके अतिरिक्त तुर्की, अज़रबाइजान एवं मलेशिया आदि भी सदस्य बनने के इच्छुक हैं। 
इसके पहले उद्देश्यों में विश्व में शांति, सुरक्षा, विकास एवं भाईचारे को उत्साहित करना था परन्तु इसने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका के प्रभाव को कम करने का भी यत्न किया है, क्योंकि विगत लम्बी अवधि से ये सभी देश इस बात के लिए यत्नशील रहे हैं कि किसी भी तरह वे अमरीकी डॉलर के स्थान पर आपस में व्यापार करते हुए अपने सिक्के का उपयोग करें। इसके साथ यह तीन दिवसीय सम्मेलन भारत के लिए इस कारण भी महत्त्वपूर्ण है कि इससे पहले चीन एवं भारत ने विगत साढ़े चार वर्ष से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र के गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के रक्तिम टकराव के बाद लद्दाख के कई अन्य सीमांत क्षेत्रों में दोनों देश 2020 से पहले जैसे हालात स्थापित करने के लिए सहमत हो गये हैं। इस घटनाक्रम के बाद ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भेंट अधिक अर्थपूर्ण हो गई है। चीन ने 1962 में सीमांत मामले पर भारत के साथ युद्ध छेड़ा था। विगत 62 वर्ष से आपसी व्यापार के होते हुए भी दोनों देशों के संबंध सामान्य जैसे नहीं हो सके थे। आगामी समय में भी इनके सुधरने के संबंध में कोई निश्चित रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु यदि दोनों देश ब्रिक्स जैसे संगठन का अहम हिस्सा रहते हुए आपस में भेंटवार्ता का सिलसिला जारी रखते हैं, तो इनके आपस में संबंध और सुधरने की उम्मीद की जा सकती है।
इसके लिए चीन को अपनी नीतियों में बदलाव करने की बड़ी ज़रूरत होगी क्योंकि आज उसकी विस्तारवादी नीतियों से दक्षिणी चीन सागर के उसके पड़ोसी दर्जनों ही देश परेशान हैं, जिस कारण इस क्षेत्र में अक्सर तनाव बना रहता है। इसीलिए चीन के मुकाबले में कुछ ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बन गये हैं  जो उसकी बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए यत्नशील रहते हैं तथा इसके लिए पूरी तरह तैयारी भी कर रहे हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में भारत एवं चीन के प्रमुखों की भेंट जहां दोनों देशों के संबंधों में सुधार कर सकती है, वहीं भविष्य में भी दोनों का आपसी सम्पर्क एशिया के क्षेत्र के लिए एक अच्छा सन्देश सिद्ध हो सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द