सन्तान के लिए अहोई पर मां रखती है निर्जला उपवास !

अहोई अष्टमी पर विशेष
अहोई अष्टमी का उपवास इस बार 24 अक्तूबर को सुबह 1:20 से शुरू हो रहा है और इसका समापन 25 अक्तूबर की सुबह 1:55 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार यह उपवास 24 अक्तूबर गुरुवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन सभी माताएं, माता पार्वती और अहोई माता की पूजा कर अपने लिए संतान-सुख की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी के दिन ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कई शुभ योग बनते हैं, जो इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से साध्य योग और अमृत सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, जो भक्तों के लिए विशेष लाभकारी माना जा रहा है। इसके अलावा स्वार्थ सिद्धि योग और गुरु पुष्य योग का सहयोग भी इस दिन मौजूद है, जो पूजा और आराधना को और भी फलदायी बनाते हैं। इन शुभ योगों के कारण माताएं और भक्त इस दिन की पूजा को अत्यधिक श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं, ताकि वे अपने परिवार के लिए सुख, समृद्धि की प्राप्ति कर सकें। 
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करना अत्यन्त शुभ माना जाता है। माता अपने बच्चों के लिए अहोई माता की मूर्ति या चित्र के सामने दीया जलाकर धूप-दीप अर्पित करती हैं। इस पूजा के दौरान संतान की कुशलता और दीर्घायु की प्रार्थना की जाती है। माताएं अहोई माता से आशीर्वाद मांगती हैं कि उनकी संतान हर विपत्ति से सुरक्षित रहे और खुशहाल जीवन व्यतीत करे। संतान की सुरक्षा और सुखी जीवन के लिए रखे जाने वाला अहोई अष्टमी उपवास पर इस बार 5 शुभ संयोग बन रहे है। इस दिन गुरु पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, साध्य योग, अमृत सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का सुंदर संयोग संतान के लिए कल्याणकारी है। गुरु पुष्य योग में सोना, मकान, वाहन आदि की खरीदारी कर सकते हैं, वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए कार्य सफल सिद्ध होते हैं। 
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करने से उनकी कृपा से संतान सुरक्षित रहती है और उनका जीवन सुखमय होता है। यह उपवास सूर्योदय से लेकर तारों के निकलने तक रखा जाता है। इस उपवास में अन्न, जल, फल आदि का सेवन नहीं करते हैं। इस वजह से यह निर्जला व्रत होता है। तारों को देखकर व्रत को पूरा करते हैं और पारण किया जाता है। इस व्रत में शाम को पूजा स्थान पर अहोई माता की 8 कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। उसमें फिर रंग भरते हैं। उसके पास ही सेई या साही और उसके बच्चों के भी चित्र बनाते हैं। यदि ये चित्र नहीं बना सकते, तो मार्किट से अहोई माता की तस्वीर लेकर पूजा स्थान पर रख सकते हैं। अहोई माता को 8 पूड़ी, 8 मालपुए, दूध, चावल का भोग लगाते हैं। अहोई अष्टमी की कथा सुनते समय व्रती को गेहूं के 7 दाने रखने चाहिएं। कथा सुनने के बाद गेहूं के इन दानों को अहोई माता के चरणों में अर्पित करते हैं। अहोई अष्टमी पर माताएं अपनी संतान के नाम से गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अनाज, मिठाई और अन्य उपयोगी वस्तुएं दान करती हैं। 
माना जाता है कि इस दिन दिया गया दान संतान के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लेकर आता है। संतान की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए दान करना शुभ फलदायी होता है। तारों के सामने दीया जलाने से भी माता अहोई प्रसन्न होती हैं और संतान को आशीर्वाद देती हैं। यह पूजा संतान के जीवन में खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक प्रभावी उपाय माना जाता है। इस व्रत को अत्यंत कठिन और शक्तिशाली माना जाता है, क्योंकि दिनभर पानी नहीं पीया जाता है। यह व्रत संतान के जीवन में आने वाली हर विपत्ति को दूर करने का उपाय माना जाता है। जिसे माताएं खुशी-खुशी पूरा करती हैं।