मोदी और शी की भेंटवार्ता की उपलब्धि

रूस के शहर कज़ान में तीन दिवसीय ब्रिक्स सम्मेलन में चाहे तीन दर्जन देशों ने एकजुट होकर समूचे अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम एवं विशेष तौर पर युद्धों में उलझे देशों के संबंध में स्थिति का जायज़ा लिया तथा आपस में मेल-मिलाप तथा व्यापारिक संबंध और बढ़ाने का वायदा भी किया। इसके साथ ही नई टैक्नालोजी सांझी करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी प्रकट की। इसमें रूस को भी एक मंच पर बहुत-से देशों के एकजुट होने से इसके लिए हौसला मिला, क्योंकि अमरीका, कनाडा एवं पश्चिमी यूरोप के देश यूक्रेन के साथ उलझे रूस को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का यत्न कर रहे हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी स्पष्टवादिता एवं बेबाकी का प्रमाण भी दिया तथा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर खुल कर विस्तारपूर्वक भारत का पक्ष पेश किया परन्तु इस सम्मेलन में भारत एवं चीन की बड़ी उपलब्धि, दोनों देशों के प्रमुखों का मिलना, लगभग 50 मिनट तक वार्ता करना एवं खास तौर पर दोनों देशों की सीमाओं पर जटिलताओं के बाद आपसी सहमति को और पक्का करने का यत्न कहा जा सकता है।
मोदी तथा शी जिनपिंग की ऐसी भेंटवार्ता 5 वर्ष की लम्बी अवधि के बाद सम्भव हो सकी है। इससे पहले अक्तूबर, 2019 को भारत के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम में दोनों नेताओं की रस्मी बातचीत हुई थी, परन्तु मई 2020 को लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुए रक्तिम टकराव के बाद आपसी खींचतान एवं कशमकश और भी बढ़ गई थी। अब रूस में ब्रिक्स बैठक से लगातार सैनिक एवं प्रशासनिक स्तर की दोनों देशों की आपसी उच्च बैठकों के बाद दोनों ने पैदा हुई बड़ी उलझन को सुलझा लिया है, जिसमें चीन पूर्वी लद्दाख की मानी गई वास्तविक सीमा रेखा को मान कर अप्रैल, 2020 वाली स्थिति को पहले की भांति बनाये रखने के लिए सहमत हो गया है, जिसके अनुसार भारतीय तथा चीनी सैनिक पहले की भांति निश्चित क्षेत्रों में गश्त कर सकेंगे। इसके उपरांत दोनों देशों के प्रमुखों के मध्य जिस तरह के अच्छे माहौल में अब बातचीत हुई है, उससे दोनों देशों के संबंधों में पुन सुधार आने की उम्मीद जाग उठी है।
श्री मोदी ने यह भी कहा कि वह वर्ष 2025 में चीन की अध्यक्षता में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के लिए पूरा-पूरा सहयोग देंगे। दोनों ही नेता इस बात के लिए सहमत हुए कि आपसी विश्वास बहाली के लिए वे लगातार उच्च प्रतिनधि मंडलों की बैठकें करते रहेंगे। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर दोहराया कि वह युद्ध का समर्थन नहीं करते, अपितु आपसी बातचीत करने को प्राथमिकता देते हैं। ऐसी नीति से ही आपसी व्यापार को बढ़ाया जा सकता है।
श्री मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि आतंकवाद पर दोहरी नीति नहीं अपनानी चाहिए। उन्होंने इस प्रकार चीन पर भी अंगुली उठाई, कि भारत की ओर से लगातार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों को जो उत्साह दिया जाता है, उसके विरुद्ध प्रस्ताव पेश किया गया परन्तु चीन उस पर भी पाकिस्तान का समर्थन करता रहा। हम इस बात के समर्थक हैं कि यदि दोनों देशों में अच्छे संबंध बनते हैं तो इसका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अच्छा प्रभाव देखने को मिलेगा। इसलिए दोनों ओर से जोड़ी जा रही ऐसी कड़ियों को टूटने नहीं दिया जाना चाहिए, अपितु इन्हें और मज़बूत किया जाना चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द