धान के मंडीकरण की समस्याएं दूर करवाए केंद्र सरकार

पंजाब को अनेक संकटों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इस समय धान की खरीद का संकट सबसे अधिक गम्भीर रूप ले चुका है। पहली अक्तूबर से भाव रस्मी तौर पर पंजाब सरकार ने धान की खरीद शरू कर दी थी लेकिन आढ़तियों और शैलर मालिकों की कई तरह की समस्याओं के कारण और राज्य के गोदामों में पहले से खरीदी गेहूं और चावल पड़े होने के कारण धान की नयी आ रही फसल के लिए स्थान न होने के कारण खरीद का काम बहुत तेज़ी से आगे नहीं बढ़ सका। प्रदेश की मंडियों में 22 अक्तूबर तक 35.71 लाख मीट्रिक टन धान पहुंचा है और जिसमें से 32.29 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई है। उठान अब तक सिर्फ 6.66 लाख मीट्रिक टन का ही हुआ है। राज्य की मंडियों में अब धान की आमद बहुत तेज़ होती जा रही है। 22 अक्तूबर को एक ही दिन 4.84 लाख मीट्रिक टन धान पहुंचा था। इस वर्ष राज्य में कुल 185 लाख मीट्रिक टन धान पैदा होने की संभावना है। केंद्र सरकार ने पंजाब से 124 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य निश्चित किया है। इससे स्पष्ट है कि धान के मंडीकरण का काम अभी राज्य में शुरुआती चरण में ही है। यहां वर्णनीय है कि धान एफ.सी.आई. के लिए पंजाब की खरीद एजेंसियों पंजाब स्टेट वेयरहाऊसिंग कार्पोरेशन, मार्कफैड और फूड ग्रेन आदि द्वारा खरीदा जाता है। कुछ खरीद एफ.सी.आई. द्वारा सीधी भी की जाती है। धान की खरीद के उपरांत पंजाब सरकार के शैलर मालिकों के साथ हुए समझौते मुताबिक शैलर मालिक खरीदे हुए धान को अपने गोदामों में उतरवा लेते हैं और फिर उनकी छड़ाई की जाती है। इसके बाद एफ.सी.आई. माल गाड़ियों द्वारा तैयार चावल उठवाकर देश के अन्य ज़रूरत वाले क्षेत्रों में भेज देता है। इसी प्रकार गेहूं की भी खरीद होती है और वह भी बाद में एफ.सी.आई. उठवा कर अन्य स्थान पर भेजता है। पिछले कई दशकों से यह सिस्टम अपनी कम-ज्यादा कमियों-कमजोरियों के बावजूद प्रभावी ढंग से काम करता आ रहा है परन्तु इस बार धान की खरीद संबंधी बड़ी समस्या के बारे में विपक्षी दल और किसान संगठनों का आरोप है कि राज्य स्तर पर पंजाब सरकार द्वारा किए जाने वाले काम जिनमें बारदाने की खरीद, आढ़तियों और शैलर मालिकों के साथ ज़रूरी तालमेल और मंडियों में माल उठाने के लिए ट्रांस्पोर्ट का प्रबंध आदि राज्य सरकार द्वारा समय पर पूरे नहीं किये गये। इसके अलावा यह भी आरोप है कि राज्य सरकार केंद्रीय खाद्य मंत्री के साथ निरंतर तालमेल करके राज्य में पहले पड़ी गेहूं और चावल उठाने में भी असफल रही, जिसके कारण धान की खरीद संबंधी ऐसा बड़ा संकट पैदा हो गया है। दूसरी तरफ पंजाब सरकार का दावा है कि उसके द्वारा अपनी सभी ज़िम्मेदारियां सही ढंग के साथ पूरी की गई हैं। केंद्र सरकार ही किसानों से किसान आंदोलन के कारण नाराज़ होने के कारण इस संबंधी मुश्किलें खड़ी कर रही है। अब पंजाब सरकार द्वारा इस संबंधी काफी सक्रियता दिखाई जा रही है। पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दिल्ली में जाकर केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के साथ इस संबंधी एक बैठक की थी। उन्होंने देश के गृह मंत्री अमित शाह को भी इस मामले में तुरंत दखल देकर धान की खरीद का मामला हल करवाने के लिए कहा है।
परन्तु यह मुद्दा अभी सुलझा नज़र नहीं आ रहा। इसका कारण यह है कि पंजाब की मंडियों में दिन-ब-दिन धान की आमद बढ़ती जा रही है। उसके मुताबिक न तो तेज़ी के साथ खरीद हो रही है और न ही खरीदा माल मंडियों में से उठाया जा रहा है। इसी कारण मंडियों में बिकने के लिए आ रहे और पहले खरीदे हुए धान के अंबार लगते जा रहे हैं। दूसरी तरफ अलग-अलग किसान संगठनों द्वारा इस मुद्दे को लेकर आंदोलन शुरू कर दिये गये हैं। भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) द्वारा राज्य के अनेक टोल प्लाज़ा फ्री करवा दिये गये हैं। कुछ और संगठनों द्वारा पिछले दिनों सड़कें भी रोकी गई थीं। कुछ किसान संगठनों द्वारा फगवाड़ा की शूगर मिल के निटक जीटी रोड़ के चौक पर अनिश्चित काल के लिए धरना लगा दिया गया है, जिसके कारण राज्य के ज्यादातर हिस्सों में यातायात बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। राज्य के जिन लोगों ने अपने ज़रूरी काम के लिए लुधियाना की ओर जाना है, यहां तक कि जिन लोगों ने चंडीगढ़ की और भी जाना है, उनको भी बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। गत दिनों फगवाड़ा धरना मार्ग वाले किसान संगठनों ने धन्नोवाली के निकट  बाईपास पर धरना लगा दिया था, जिसके कारण जालन्धर से चंडीगढ़ जाने वाले वाहनों के लिए भी बहुत मुश्किलें खड़ी हो गई थीं। आज की जिंदगी बहुत गतिशीलता वाली है। लोगों को अपने अनेक कामों के लिए देश-विदेश जाना पड़ता है। कई मरीज़ों ने दवाइयां लेने या अपने आप को लुधियाना या पी.जी.आई. के अस्पतालों में दिखाने के लिए जाना होता है। कई लोगों ने अपनी फ्लाइटें पकड़नी होती है। कई विद्यार्थियों ने अपने कालेजों, यूनिवर्सिटियों तक जाना होता है लेकिन यातायात में बार-बार परेशानी आने के कारण उनको बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सड़कों पर लम्बे जाम लग जाते हैं। 2020 में पहले किसान आंदोलन से समय से ही इस तरह का घटनाक्रम पंजाब में लगातार चलता आ रहा है। शम्भू तथा खनौरी की हरियाणा के साथ लगती सीमा पर भी संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-रजानीतिक) तथा किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी द्वारा फरवरी से ही स्थायी धरने लगाए गए हैं। दूसरी ओर इस बहाने हरियाणा सरकार ने इन सड़कों की स्थायी तौर पर नाकाबंदी की हुई है। फरवरी में किसानों तथा हरियाणा सरकार के सुरक्षा बलों के बीच तीव्र टकराव भी हुआ था, जिस कारण बहुत-से किसान घायल हो गए थे और कई किसानों का जानी नुकसान भी हुआ था। शम्भू तथा खनौरी आदि सीमाओं को खुलवाने का मामला पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा है और सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के मामले हल करने तथा शम्भू एवं खनौरी आदि सीमा खुलवाने के लिए एक समिति भी गठित की हुई है। यह मामला कब सुलझता है, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु पंजाब से हरियाणा या दिल्ली की ओर जाने वाले लोग प्रतिदिन मुसीबतों का सामना कर रहे हैं और उन्हें दिल्ली जाने के लिए बेहद खराब तथा छोटे रास्तों से होकर तथा अधिक समय गंवा कर दिल्ली पहुंचना पड़ता है। इस कारण राज्य के लोगों में जहां हरियाणा तथा केन्द्र सरकार के खिलाफ रोष बढ़ रहा है, वहीं किसानों के खिलाफ भी लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। राज्य के उद्योगपतियों, व्यापारियों तथा आम जन के बड़े भाग का यह विचार है कि किसानों को अपनी मांगों तथा मामलों के समाधान के लिए बार-बार रेल एवं सड़क यातायात ठप्प करने के बजाय अब अन्य ढंग-तरीके ढूंढने चाहिएं, क्योंकि वर्तमान में बार-बार यातायात में विघ्न पड़ने से उद्योगपतियों, व्यापारियों एवं आम लोगों को न पूरा होने वाला नुकसान हो रहा है।
परन्तु दूसरी ओर किसानों का पक्ष है कि राज्य सरकार या केन्द्र सरकार जब उनके मामले निपटाने के लिए कोई ठोस पहलकदमी नहीं करतीं तभी उन्हें रास्ते रोकने के लिए मजबूर होना पड़ता है। नि:संदेह किसानों का संकट भी बड़ा गम्भीर है। छह मास तक गर्मी-सर्दी का सामना करके तथा कज़र् उठा कर अधिक पूंजी निवेश करने के बाद जब किसान फसल तैयार करके मंडी में ले जाते हैं और आगे उनकी फसल की खरीद नहीं होती या उन्हें पूरा मूल्य नहीं मिलता तो उनके लिए भी एक प्रकार से अस्तित्व का सवाल पैदा हो जाता है। समूचे तौर पर इससे पंजाब का जनजीवन और पंजाब की आर्थिकता भी बुरी तरह प्रभावित होती हैं।
जहां तक इस समय धान की खरीद के संकट का संबंध है, उस बारे हमारी बड़ी स्पष्य राय है कि केन्द्र सरकार मालगाड़ियों के माध्यम से तथा विशेष तौर पर व्यापक स्तर पर ट्रक लगवा कर तेज़ी से पंजाब में पहले से पड़ी गेहूं व चावल उठवाने का कार्य करे, ताकि नई फसल की सम्भाल के लिए आवश्यक गोदामों का प्रबंध किया जा सके। इस संबंध में पंजाब सरकार तथा केन्द्र सरकार को आपस में भी सहयोग करना चाहिए और राज्य की विपक्षी पार्टियों द्वारा भी केन्द्र सरकार पर इस संबंधी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए। इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार, केन्द्र सरकार या राज्य के विपक्ष की ओर से राजनीति करते हुए एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालने की कोशिश करने से इस मामले का समाधान नहीं होगा। इस समय सभी राजनीतिक मसलहतों को हाशिये पर रख धान की निर्विघ्न खरीद के लिए दरपेश आती सभी कठिनाइयों के तुरंत दूर करने की ज़रूरत है। यदि आगामी दिनों में यह मामला हल नहीं होता तो इससे राज्य में एक प्रकार से अराजकता वाला माहौल बन सकता है और अमन-कानून की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। 
केन्द्र सरकार को यह याद रखना चाहिए कि 1966-67 में जब हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी, उस समय से ही निरन्तर पंजाब द्वारा देश की खाद्य ज़रूरतें पूरी करने के लिए केन्द्रीय खाद्यान भंडारों में बड़ा योगदान डाला जाता रहा है। इसलिए पंजाब के किसान विशेष व्यवहार के अधिकारी हैं और उनकी फसलों के मंडीकरण में पेश आती समस्याओं को दूर करना केन्द्र की बड़ी ज़िम्मेदारी है। यदि देश को इस समय गेहूं तथा धान की अधिक ज़रूरत नहीं है तो पंजाब को काश्त के लिए वैकल्पिक फसलें देना तथा उनकी उचित मूल्य पर खरीद सुनिश्चित बनाना भी केन्द्र सरकार का काम है, परन्तु यह काम तो आगामी समय में होंगे परन्तु तत्काल आवश्यकता यह है कि धान की खरीद में आने वाली सभी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर दूर करके पंजाब तथा पंजाब के किसानों को राहत दी जाए।  


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