बांग्लादेश का संकट भारत के सामने नई चुनौतियां

बांग्लादेश में फैली गड़बड़ के मद्देनज़र प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देकर अपना देश छोड़ना दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में बहुत बड़ी राजनीतिक घटना है। फिलहाल वह भारत में हैं। यहां वह कितना समय ठहरेंगी और फिर आगे कहां जाएंगी, इस बारे में अभी अनिश्चितता बनी हुई है। भारत के लिए भी पड़ोसी देश में हुआ यह घटनाक्रम बहुत चिंताजनक है। शेख हसीना विगत 15 वर्षों से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं। इस वर्ष जनवरी में हुए चुनावों में वह चौथी बार प्रधानमंत्री बनी थीं। हसीना का जीवन बहुत दुखद, कष्ट भरपूर और बहुत अनोखा रहा है। वह बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान की बेटी हैं। मुजीब-उर-रहमान ने साल 1971 में भारत की मदद से उस समय पूर्वी पाकिस्तान को आज़ाद देश बांग्लादेश में बदल दिया था। पाकिस्तान दो टुकड़े हो गया था। शेख मुजीब-उर-रहमान जिनको ‘बंग-बंधु’ भी कहा जाता था, ने नये देश की सत्ता उसके पाकिस्तान से आज़ाद होने के बाद 1971 में संभाली थी लेकिन कुछ सेना अधिकारियों ने षड्यन्त्र करके अगस्त 1975 में प्रधानमंत्री मुजीब-उर-रहमान सहित उनकी पत्नी और उनकी तीन बेटियों की सरकारी घर में ही गोलियां मार कर हत्या कर दी थी। शेख हसीना और उनकी छोटी बहन शेख रिहाना उस समय विदेश में थीं। इसलिए वे दोनों बच गई थीं।
हसीना का भारत के साथ हमेशा ही विशेष लगाव रहा है। अपने निर्वासन के 6 वर्ष भी उन्होंने भारत में ही व्यतीत किए थे। वह 1981 में बांग्लादेश पहुंची थीं। वह 1996 के चुनावों में अपने स्व. पिता द्वारा बनाई पार्टी अवामी लीग की हुई जीत के बाद वह प्रधानमंत्री बनी थीं। वर्ष 2001 में वह चुनाव हार गई थीं लेकिन इसके बाद वर्ष 2008 में वह दोबारा सत्ता में आ गई थीं। उसके बाद वह लगातार देश की प्रधानमंत्री बनी रहीं। राजनीतिक तौर पर अवामी लीग का मुकाबला कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के साथ-साथ बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी के साथ रहा है। हसीना को हमेशा उनके सख्त स्वभाव के कारण जाना जाता रहा है। देश के हालात को देखते हुए भी उसने प्रशासन पर सख्त पकड़ बना कर रखी थी। लम्बे समय तक उनके द्वारा अपनाई गई ऐसी नीतियों के कारण उनको ‘आयरन लेडी’ और ‘तानाशाह’ भी कहा जाता रहा है। इसी कारण उनकी देश-विदेश में सख्त आलोचना भी होती रही है। उनकी ऐसी ही सख्ती अन्य विपक्षी दलों के प्रति भी बनी रही। यही कारण था कि जनवरी में हुए चुनावों में बांग्लादेश के बहुत से विपक्षी दलों ने इनका बायकाट कर दिया था। शेख हसीना ने बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने की नीति अपनाई थी। इसको विरोधियों द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती देने पर कोर्ट ने भी इस आरक्षण का समर्थन किया था लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के साथ देश में तनाव पैदा हो गया था। चाहे पहले शेख हसीना इस आरक्षण की बहाली पर बज़िद रहीं परन्तु इस आरक्षण के खिलाफ युवा  विद्यार्थियों द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन के देश भर में आग की भांति फैलने के बाद वह कुछ नर्म पड़ीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आरक्षण में कटौती कर दी थी, परन्तु उस समय तक युवा विद्यार्थियों का यह आन्दोलन विशाल रूप ले चुका था और वहां की विपक्षी राजनीतिक पार्टियों द्वारा दिए गये प्रोत्साहन ने इस आन्दोलन को शेख हसीना से त्याग-पत्र की मांग में बदल दिया था। 
बांग्लादेश अपने अस्तित्व से लेकर लगातार राजनीतिक हलचल में से गुज़र रहा है। समय-समय पर सैन्य जनरलों ने इस पर कब्ज़ा किये रखा। इन सैन्य तानाशाहों में बंग-बंधु मुजीब-उर-रहमान का हत्यारा खोंडाकर मुश्ताक अहमद भी शामिल था, परन्तु उसके जल्द ही बाद में सैन्य जनरल ज़िया-उर-रहमान ने कमान सम्भाल ली और मार्शल-लॉ लगा कर राष्ट्रपति बन गया। ज़िया-उर-रहमान को वर्ष 1981 में कत्ल कर दिया गया था। उसके बाद बनी सरकारों पर बड़ी सीमा तक सेना का ही कब्ज़ा रहा। वर्ष 1983 में सैन्य जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद ने सत्ता सम्भाली जो 1990 तक देश का शासक बना रहा। इस समय में इस देश की समस्याएं लगातार बढ़ती गईं। गरीबी तथा बेरोज़गारी ने एक प्रकार से इसकी कमर तोड़ दी। आज 17 करोड़ की आबादी में से लगभग साढ़े तीन करोड़ युवा बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। ये समस्याएं लगातार यहां के प्रशासकों के लिए बड़ी सिरदर्दी बनी रही हैं। 
शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश के हालात और भी गड़बड़ वाले तथा अनिश्चित हुए प्रतीत होते हैं। चाहे वहां के सैन्य जनरल वकार-उज़-ज़मान ने यह घोषणा की है कि शीघ्र ही अन्य राजनीतिक पार्टियों से विचार-विमर्श से अंतरिम सरकार बनाई जाएगी, परन्तु उन्होंने इसके लिए अवामी लीग को निमंत्रण नहीं दिया। ऐसी स्थिति में देश में सख्त गृह युद्ध भी शुरू हो सकता है। शेख हसीना भारत की सदैव समर्थक रही हैं। दोनों देशों के बीच व्यापक स्तर पर व्यापार चलता रहा है। अब तक भारत ने इसके प्रत्येक पक्ष से निर्माण के लिए करोड़ों रुपये की राशि वहां लगाई है। हसीना के सत्ता से बाहर होने से इस देश में कट्टरपंथी पार्टियों के उभार से इन्कार नहीं किया जा सकता, जो भारत के लिए एक बड़ी चुनौती सिद्ध होगी। भारत की चिन्ता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि इसके अपने पड़ोसी पाकिस्तान तथा चीन के साथ भी संबंध अच्छे नहीं हैं। म्यांमार में सैन्य शासन है और श्रीलंका भी अभी तक बड़ी अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है। भारत को पड़ोसियों की भिन्न-भिन्न प्रकार की चुनौतियों संबंधी जहां अधिक सचेत होकर चलने की ज़रूरत होगी, वहीं इसे नये हालात में अपनी विदेश नीति पर भी पुन: दृष्टिपात करना होगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द