पुन: ‘आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट’ बनाने हेतु यत्न आरम्भ किए जाएं
विगत दिवस तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में एक दिन और एक रात रुकने का अवसर मिला। जो बातें वहां प्रबंध के बारे तथा चल रहे विवादों के बारे सुनने को मिलीं, उनका ज़िक्र करना तो उचित नहीं, परन्तु एक एहसास अवश्य हुआ कि सिख नेतृत्व ने आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट की मांग को ठंडे बस्ते में डाल कर सिख कौम का बहुत बड़ा नुकसान किया है। नि:संदेह अब आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनवाना आसान नहीं, परन्तु अभी भी यह असम्भव भी नहीं। इसे फैडरल (संघात्मक) तर्ज का आल इंडिया एक्ट बनाया जा सकता है। बेशक फिलहाल अकाली नेतृत्व आपसी लड़ाई में उलझा हुआ है, परन्तु यह लड़ाई सदा तो जारी नहीं रहेगी। फिर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तो अपना काम कर ही रही है। वह भी तो इसे आगे बढ़ा सकती है। हमारी जानकारी के अनुसार आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट का प्रारूप 2 या 3 बार बन चुका है। अंतिम प्रारूप शायद जस्टिस के.एस. टिवाणा के नेतृत्व वाले 7 सदस्यीय पैनल ने बनाया था। इस पैनल में मौजूदा शिरोमणि कमेटी के प्रधान तथा तत्कालीन शिरोमणि कमेटी के प्रधान भी सदस्य थे। यह ठीक है कि यह प्रारूप अब शायद वर्तमान हालात के अनुसार पूरी तरह अनुकूल न बैठता हो, क्योंकि इस बीच गुरुद्वारा प्रबंध में बहुत कुछ बदल चुका है, परन्तु इसमें वर्तमान हालात पर दृष्टिपात करके तथा आवश्यक संशोधन करके सिख कौम को एक लड़ी में पिरोने के लिए एक ‘आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट’ की आज भी आवश्यकता है। शिरोमणि कमेटी को चाहिए कि इस प्रारूप को सार्वजनिक करके सिखों की अलग-अलग संस्थाओं, सम्प्रदायों, गुरुद्वारा कमेटियों, सिंह सभाओं तथा अन्य सिख धार्मिक शख्सियतों एवं विद्वानों की राय लेकर आज की ज़रूरत के मुताबिक आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनवाने के लिए फिर से नई शुरुआत करे।
उल्लेखनीय है कि इस प्रारूप में श्री अकाल तख्त साहिब तथा अन्य तख्त साहिबान के जत्थेदारों की नियुक्ति तथा हटाने के विधि-विधान संबंधी भी सुझाव दिए गए हैं। हमारी जानकारी के अनुसार इस प्रारूप में कहा गया है कि जत्थेदार बनने के इच्छुक तथा स्वयं को इस पद के योग्य समझने वाले व्यक्ति वक्त आने पर इस पद के लिए निश्चित समय में अपने संक्षिप्त जीवन-परिचय एवं उपलब्धियों का लेखा-जोखा पेश करें। ये इच्छुक 15-15 दिन गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब में कथा करें ताकि सब को उनकी सिख इतिहास,गुरुबाणी की समझ बारे पता चल सके। इस दौरान सभी सिखों तथा सिख संस्थाओं को खुला निमंत्रण दिया जाए जो उनके बारे में अपने विचार एवं सुझाव पेश करें। इसके उपरांत बहुमत की सलाह की रौशनी में शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी जत्थेदारों की नियुक्ति करे। हमारी जानकारी के अनुसार इस प्रारूप के अन्तर्गत जत्थेदार को हटाने के लिए शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी समर्थ नहीं होगी और न ही प्रधान, अपितु यदि जत्थेदार से धर्म के प्रति कोई ना-काबिल-ए-बर्दाश्त गलती होती है तो उन्हें हटाने के लिए शिरोमणि कमेटी के जनरल हाऊस का दो-दिहाई बहुमत होना ज़रूरी होगा। यह स्थिति जत्थेदार को निर्भयता से काम करने के लिए काफी छूट दे सकती है, परन्तु यदि आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बन जाए तो सिर्फ शिरोमणि कमेटी ही नहीं, अपितु उस से जुड़ी अन्य कमेटियों के दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत पड़ेगी और इनकी ओर से बहुसम्मति से ही जत्थेदार को हटाया जा सकेगा। यह स्थिति जत्थेदार साहिबान को एक आज़ाद शख्सियत के रूप में कार्य करने के समर्थ बना सकेगी।
आओ मिल कर एकता की मशालें रौशन करें,
दो ही दिन में ऩफरतों का खात्मा हो जाएगा।
(आलम निज़ामी)
सुखबीर सिंह बादल की सक्रियता
अकाली दल तथा बागी नेताओं द्वारा अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ श्री अकाल तख्त साहिब पर दी गई शिकायत के बाद सुखबीर सिंह बादल के श्री अकाल तख्त साहिब के समक्ष किए गये बिना शर्त समर्पण का मामला अभी लटक रहा है। यह अच्छी बात है कि श्री अकाल तख्त साहिब ने इस मामले में फैसला देने के पहले लगभग तीन सप्ताह का समय दिया है ताकि सिख या सिख संस्थाएं अपने सुझाव दे सकें और वह वक्त की कसौटी पर परख कर ऐसा फैसला दे सकने के समर्थ हों, जो संगत के बिड़े हिस्से को स्वीकार हो।
परन्तु इस बीच सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल बहुत तेज़-कदमी के साथ चलता दिखाई दे रहा है जबकि उनकी विरोधी शिरोमणि अकाली सुधार लहर बहुत धीरे-धीरे चल रही है। वे इतने दिनों में सिर्फ प्रीज़ीडियम ही घोषित कर सके हैं। एक पार्टी के रूप में उनकी गतिविधियां नाममात्र हैं। अगले कुछ महीनों में पंजाब की चार विधानसभा सीटों के उप-चुनाव में भी अकाली दल बचाओ लहर के हिस्सा लेने की सम्भावनाएं अभी दिखाई नहीं दे रहीं जबकि अकाली दल (बादल) पूरा ज़ोर लगा कर लड़ने की तैयारी कर रहा है। पार्टी का एक हिस्सा तो सुखबीर सिंह बादल को खुद ही गिद्दड़बाहा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कह रहा है, परन्तु पार्टी का एक बड़ा गुट इसके पक्ष में नहीं, क्योंकि यदि सुखबीर सिंह बादल जीत भी जाएं तो कोई बड़ा लाभ होता दिखाई नहीं दे रहा, परन्तु हार जाने पर नुकसान अधिक हो सकता है।
खैर, बात कर रहे थे सुखबीर सिंह बादल की अगली रणनीति की। बेशक श्री अकाल तख्त साहिब का फैसला सबसे बड़ी बात होगी, परन्तु राजनीतिक तौर पर जिस प्रकार सुखबीर सिंह बादल की ओर से वर्किंग कमेटी में कुछ नये सदस्य शामिल करके पुनर्गठन किया गया, फिर कोर कमेटी बनाई गई और अब पार्टी का संसदीय बोर्ड भी बनाया गया है, उससे उनकी सक्रियता और दृढ़ता की झलक मिलती है। उनकी ओर से नवम्बर में डैलीगेट अधिवेशन करने की घोषणा भी बहुत-सी सम्भावनाओं को जन्म दे रही है।
पंजाबी सांसद पहली बार सक्रिय
यह खुशी की बात है कि देर से ही सही, परन्तु इस बार बजट सत्र में पंजाबी सांसद काफी सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। राज्यसभा तथा लोकसभा में पंजाब के मामले उठाए जा रहे हैं, विशेषकर बिक्रमजीत सिंह साहनी, बीबा हरसिमरत कौर बादल, सतनाम सिंह संधू, अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग, सुखजिन्दर सिंह रंधावा, डा. अमर सिंह, मनीष तिवारी, मालविन्दर सिंह कंग, राघव चड्ढा तथा कुछ अन्य सांसद भी पंजाब की समस्याओं तथा मांगों को उठाने में काफी अग्रणी दिखाई दे रहे हैं, परन्तु अभी भी कुछ पंजाबी सांसद खुल कर बोलते दिखाई नहीं दिए। खैर यह अच्छा शगुन है, परन्तु काफी नहीं। इन सभी 20 सांसदों (एक जेल में हैं) को पंजाब की मांगों तथा समस्याओं के समाधान के लिए पार्टी कतार से ऊपर उठ कर पंजाब के लिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाना चाहिए तथा सभी को उस पर पहरा भी देना चाहिए, क्योंकि पंजाब की रात सिर्फ अंधेरी ही नहीं, ठंडी यख भी है। चिराग शर्मा के शब्दों में :
यह रात सिर्फ अंधेरी नहीं है, सर्द भी है,
दीया बना लिया, शाबाश, अब अलाव जलाओ।
-मो.92168-60000