महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा फिर गर्माया

कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में एक जूनियर प्रशिक्षु डाक्टर से सामूहिक दुष्कर्म के बाद, उसकी निर्मम हत्या की घटना ने एक ओर जहां देश के जन-साधारण को एक बार फिर चौंकाया है, वहीं देश के बड़े सरकारी अस्पतालों की दुरावस्था, कुप्रबन्धन और असुरक्षित माहौल की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। तिस पर बाद में उसी अस्पताल पर राज्य पुलिस बल की मौजूदगी में हज़ारों लोगों की भीड़ द्वारा लाठी-डंडों से लैस होकर व्यापक स्तर पर किया गया हमला और तोड़-फोड़ भी प्रदेश प्रशासन की असफलता का ही एक बड़ा प्रमाण प्रतीत होती है। स्थितियों की भीषणता का अनुमान इस एक बात से भी लगाया जा सकता है कि कोलकाता उच्च न्यायालय ने इस आक्रामक प्रहार की घटना को प्रदेश सरकार की सामूहिक विफलता करार देते हुए पूरे पुलिस तंत्र और राज्य प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा किया है। उच्च अदालत द्वारा अस्पताल को बंद कर देने की टिप्पणी देश भर के जन-साधारण की इस संबंधी पीड़ाओं को स्वर देने के लिए काफी है। प्रशिक्षु डाक्टर की हत्या के मामले को बेशक कोलकाता उच्च न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया है, किन्तु इस मामले को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ओर से राजनीतिक निजी लाभ हेतु इस्तेमाल किये जाने की कोशिशें भी नि:संदेह इस मामले में होने वाले न्याय को प्रभावित कर सकती हैं। इस हमले के दौरान अस्पताल के एक बड़े भाग और खास तौर पर दुष्कर्म-हत्या किये जाने वाले कक्ष की व्यापक रूप से की गई तोड़-फोड़ नि:संदेह कई प्रकार के संदेहों को जन्म देती है। बेशक समाज और कानून से वाबस्ता एक वर्ग के इस आरोप में दम है कि राजनीतिक दबाव में सुबूतों को खत्म करने की कोशिश की गई है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने भी अपने रोष-प्रदर्शन में इस बात का संकेत किया है।
देश का यह दुर्भाग्य है कि दुष्कर्म जैसी घटनाओं के विरुद्ध फांसी के प्रावधान की दण्ड व्यवस्था के बावजूद देश में महिलाओं के विरुद्ध न केवल आपराधिक आंकड़े बढ़े हैं, अपितु दुष्कर्म और दुष्कर्म-हत्या जैसी घटनाओं में भी कोई कमी आई दिखाई नहीं दी है। यूं तो देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध और दुष्कर्म जैसी घटनाएं सदियों से होती आ रही हैं किन्तु देश की राजधानी दिल्ली में दिसम्बर-2012 में एक डाक्टर युवती के साथ 6 लोगों द्वारा अतीव बर्बरता और क्रूरता के साथ किये गये दुष्कर्म और फिर हत्या वाले निर्भया कांड ने पूरे देश को स्तब्ध करके रख दिया था। इस एक घटना के बाद ही ऐसे निर्मम अपराध के लिए मृत्यु-दण्ड जैसा कड़ा प्रावधान किया गया था, किन्तु इतना कुछ होने के बावजूद ऐसी घटनाओं की  पुनरावृत्ति को रोका नहीं जा सका। कोलकाता वाली घटना के बाद कुछ ही दिनों के भीतर उत्तराखंड के रुद्रपुर के एक निजी अस्पताल की नर्स के साथ हुए दुष्कर्म और फिर अपराधी द्वारा निर्ममता से पीड़िता के सिर को भारी पत्थर से कुचल कर उसकी हत्या किये जाने की ़खबर दिलों को दहला देने के लिए काफी है। प. बंगाल महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को लेकर विगत काफी समय से चर्चित रहा है। अकेले वर्ष 2022 में वहां महिलाओं के विरुद्ध दुष्कर्म की 1111 घटनाएं दर्ज हुई थीं।
कोलकाता की इस ताज़ा घटना ने जहां एक ओर प्रदेश सरकार और देश के सम्पूर्ण राजनीतिक तंत्र पर विफलता जैसे प्रश्न-चिन्ह लगाये हैं, वहीं अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था और उनके असुरक्षित वातावरण के प्रति मैडीकल कर्मचारियों में उत्पन्न हुआ रोष एवं आक्रोश भी चौंकाने वाला है। अव्यवस्था और कुप्रबन्धन के अतिरिक्त महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को लेकर देश के सरकारी अस्पताल चिरकाल से काफी कुख्यात रहे हैं। महिला मरीज़ों और महिला स्टाफ के साथ शारीरिक शोषण के आंकड़े पिछले कुछ वर्षों में आम अपराधों से चार गुणा बढ़े हैं। अस्पतालों में महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों की एक बड़ी घटना वर्ष 1973 में मुम्बई के एक अस्पताल में हुई थी जहां एक सफाई कर्मचारी की मार-पीट और दुष्कर्म किये जाने के बाद एक स्टाफ नर्स इतना आहत हुई कि वह लगातार चार दशक कौमा में ही जीवित रही। उसकी मृत्यु 2015 में हुई थी। कोलकाता की इस ताज़ा घटना के विरोध में बेशक देश भर के डाक्टर रोष प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने चौबीस घंटे तक देश भर में मैडीकल सेवाएं ठप्प करके हड़ताल भी की है। उन्होंने अस्पतालों में जन-सुरक्षा को लेकर नया सुरक्षा कानून बनाये जाने, ड्यूटी-समय के प्रबन्धन और समुचित संशोधनों की मांग की है। सामाजिक धरातल पर भी इस समय देश भर में सन  2012 जैसी जागरूकता उत्पन्न हुई है, किन्तु हम समझते हैं, कि इस अति मानवीय संवेदना से जुड़े मामले को लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। कोलकाता उच्च अदालत की फटकार के बाद प्रदेश की ममता सरकार को अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी को कबूल करते हुए केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सभी वांछित साक्ष्य उपलब्ध कराने में सहायक होना चाहिए, न कि जवाबी प्रदर्शनों में समय व्यर्थ गंवाना चाहिएं। वहीं विपक्षी दलों को भी अकारण निजी हित साधने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। शक्ति-प्रदर्शन हेतु कराये जाने वाले हमलों एवं रोष-प्रदर्शनों से न्याय के दूर होते जाने की आशंका है। इस सन्दर्भ में पीड़ित एवं मृतक डाक्टर के अभिभावकों की भावनाओं को भी समझा जाना चाहिए, और अकारण ब्यानबाज़ी से संकोच किया जाना चाहिए। चूंकि मामला अब कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्देशक हाथों में है, अत: दोषियों को कटघरे में खड़ा करने और मृतका को न्याय दिलाने हेतु न्यायालय और केन्द्रीय जांच ब्यूरो एजेंसी को यथा-सम्भव सहयोग प्रदान किये जाने की हरचन्द कोशिश की जानी चाहिए।

#महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा फिर गर्माया