भाजपा समझ गई है राहुल गांधी के नये अवतार को

किसी लोकतांत्रिक देश में कोई नेता कैसा है, यह महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि महत्वपूर्ण यह होता है कि जनता उसे किस नज़र से देखती है। इस सच से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि राहुल गांधी राजनीतिक रूप से कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं और उनकी आवाज़ ही कांग्रेस की आवाज़ है। वो कांग्रेस के किसी पद पर हों या न हों लेकिन पार्टी उनके ही इशारे पर चलती है। यह बहुत अच्छा हुआ कि उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद स्वीकार कर लिया अन्यथा जिसे भी कांग्रेस विपक्ष का नेता बनाती, वो नाममात्र का नेता होता। ऐसा पहली बार है कि राहुल गांधी ने एक संवैधानिक पद को स्वीकार किया है। अब उन्हें एक कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल हो गया है। 
विपक्ष का नेता होने के कारण उनके कंधे पर बड़ी जिम्मेदारियां आ गई हैं, उन्हें इसका अहसास है या नहीं, यह आने वाला वक्त बताएगा। अभी तक ऐसा ही समझा जा रहा है कि राहुल गांधी भाजपा के खिलाफ लड़ने वाले हैं लेकिन यह पूरा सच नहीं है। राहुल गांधी के लिए विपक्ष के नेता का पद ग्रहण करने का मतलब है कि अब उन्हें लोकसभा में सिर्फ कांग्रेस का नेतृत्व नहीं करना है बल्कि पूरे विपक्ष का नेतृत्व करना है। कांग्रेस में उनके नेतृत्व को लेकर कोई सवाल नहीं है लेकिन क्या दूसरे विपक्षी दलों को भी उनके नेतृत्व में चलना मंजूर होगा, यह बहुत बड़ा सवाल है और इसका जवाब किसी के पास नहीं है। 
 लोकसभा चुनाव में भाजपा इसी मुगालते में रही कि राहुल गांधी मोदी के सामने कहीं नहीं टिकते लेकिन राहुल गांधी ने यूपी में चुपचाप जो रणनीति अपनाई, उसके कारण ही भाजपा बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई। मोदी के चार सौ पार के नारे से ऐसा लगा कि विपक्ष पस्त हो गया है लेकिन इसका विपरीत असर यह हुआ कि भाजपा के कार्यकर्ता और नेता ही सुस्त हो गए। राहुल और अखिलेश ने चार सौ पार के नारे को संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के विमर्श से जोड़ दिया। मोदी और कुछ भाजपा नेताओं ने इस विमर्श को तोड़ने की भरसक कोशिश की लेकिन राहुल और अखिलेश ने अपने कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपनी बात जनता में बहुत दूर तक पहुंचा दी जहां तक भाजपा नहीं पहुंच सकी। राहुल गांधी ने 8500 रुपए हर महिला को प्रतिमाह देने का वादा किया तो लगा कि पिछली बार किए गए 6000 रुपये प्रतिमाह देने के वादे की तरह इस बार भी यह वादा फुस्स हो जाएगा। किन्तु राहुल गांधी ने वादा पूरा करने का प्रमाणपत्र जारी करके एक बड़े वर्ग को भरोसा दे दिया। राहुल गांधी को पप्पू समझने वाली भाजपा उनकी इस चाल को समझ नहीं पाई किन्तु राहुल गांधी ने अपनी रणनीति से बता दिया कि आगे की राजनीति भाजपा के लिए इतनी आसान होने वाली नहीं है। राहुल अपनी रणनीति का इस्तेमाल देश के दूसरे चुनावों में भी कर सकते हैं। भाजपा उनकी रणनीति देख चुकी है, अत: हो सकता है कि वो अगली बार कोई नई रणनीति लेकर सामने आये।
जाति जनगणना का मुद्दा राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के बाद भी लगातार एक लम्बी रणनीति के तहत उठा रहे हैं ताकि भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को खत्म किया जा सके। भाजपा के लिए उन्होंने दोनों तरफ गड्ढा खोद दिया है। वो जाति जनगणना करवाती है तो मुश्किल होगी और अगर नहीं करवाती है तो भी मुश्किल होगी। वास्तव में राहुल गांधी समझ गए हैं कि अगले चुनाव में भी कांग्रेस सत्ता में आने वाली नहीं है, इसलिए वो ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जिन्हें उनके लिए पूरा करना संभव नहीं होगा। उन्हें पता है कि जब केंद्र में सत्ता नहीं मिलनी है तो कोई भी वादा कर लो, पूरा करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अगर भाजपा सत्ता से बाहर जाती है, तब भी कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकती। वो गठबंधन के सहारे ही सत्ता में आएगी।
भाजपा के लिए समस्या यह है कि वो सत्ता में है और आगे भी सत्ता में रहने वाली है, इसलिए राहुल गांधी की रणनीति उसे सत्ता के दौरान भारी पड़ने वाली है। राहुल देशहित की सभी योजनाओं में मीन मेख निकालते रहते हैं ताकि जनता में उनके प्रति संदेह उत्पन्न हो। राहुल सामाजिक समानता की बात करते हैं जैसे उनके सत्ता में आते ही सब बराबर हो जाएंगे। राहुल ऐसे बात करते हैं जैसे उनके पास देश की सभी समस्याओं का हल है। जैसे ही वो सत्ता में आएंगे, देश की सभी समस्याएं छूमंतर हो जाएंगी। उनके दावों के कारण जहां कांग्रेस का समर्थन देश में बढ़ रहा है, वहीं दावे हवा हवाई होने के कारण भाजपा के समर्थन में ज्यादा अंतर भी नहीं आ रहा है। राहुल के हमले से भाजपा इस बार बेखबर थी इसलिए उन्हें उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली है लेकिन अगली बार ऐसा होने वाला नहीं है। राहुल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन उसे सत्ता से बाहर करना अभी भी उनके बूते से बाहर नज़र आता है।
राहुल का नया अवतार भाजपा से ज्यादा विपक्ष की दूसरी पार्टियों के लिए खतरा बन गया है और इस खतरे को ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और केजरीवाल जैसे नेता भांप चुके हैं। राहुल गांधी मुस्लिम वोट बैंक को दोबारा कांग्रेस की तरफ लाने की कोशिश में जुट गए हैं। इन चुनावों का गहराई से विश्लेषण करें तो समझ आ जाएगा कि मुस्लिम समाज कांग्रेस की ओर लौट रहा है। इसके अलावा राहुल जाति जनगणना के माध्यम से पिछड़ा और दलित वर्ग के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्षी दलों के कान खड़े हो गए हैं क्योंकि अगर कांग्रेस को इसमें सफलता मिलती है तो इसकी कीमत विपक्षी दल ही चुकाएंगे। मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से विपक्षी दलों के हिस्से से जाएगा और  पिछड़ा-दलित वर्ग के वोट भी हाथ से निकल सकते हैं। 
संसद में राहुल गांधी को विपक्षी दलों का पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है क्योंकि कांग्रेस की रणनीति उन्हें समझ आ गई है। विपक्षी दल राहुल गांधी का राजनीतिक कद और नहीं बढ़ाना चाहते। वास्तव में कांग्रेस की ताकत जितनी ज्यादा बढ़ेगी, विपक्षी दलों की ताकत उतनी कम होती जाएगी। मुस्लिम समाज ऐसी पार्टी चाहता है जो भाजपा को टक्कर दे सके। कांग्रेस की ताकत बढ़ती है तो मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से कांग्रेस के खाते में जुड़ जाएगा। अगर ऐसा होता है तो अन्य विपक्षी दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। यही कारण है कि विपक्ष राहुल गांधी के साथ है और साथ नहीं भी है। तथापि भाजपा राहुल गांधी को अब गंभीरता से लेने लगी है क्योंकि वो समझ चुकी है कि राहुल गांधी केवल भविष्य की राजनीति कर रहे हैं, उन्हें सत्ता पाने की जल्दी नहीं है। अंत: वो देश की जनता को ऐसे सपने दिखा रहे हैं जिनको पूरा नहीं किया जा सकता।