जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव मोदी सरकार के लिए बड़ी परीक्षा

जम्मू-कश्मीर में आदर्श आचार संहिता लागू है। साथ ही भारत के संविधान की धारा 370 भी निरस्त है। फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को कोई शिकायत नहीं है। दोनों खुश हैं कि आखिरकार 90 सदस्यीय जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चुनाव होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 16 अगस्त को नई दिल्ली में इस फैसले की घोषणा की और श्रीनगर में इसके असर को महसूस किया गया।
बेशक सभी भाजपा नेताओं की तरह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने के लिए मोदी को प्रशंसा मिलेगी। लोग भूल जाते हैं कि मोदी धारा 370 को हटाने के लिए मुख्य प्रस्तावक थे। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जिनके कारण जम्मू-कश्मीर विभाजित हुआ और चुनाव 10 साल बाद पहली बार हो रहे हैं। 
मोदी के प्रतिनिधि 2019 के मध्य से जम्मू-कश्मीर पर शासन कर रहे हैं और यह एक खुशहाल शासन नहीं रहा है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां राजनेता फंसे हुए हैं और आम लोग दुष्प्रचार से घिरे हुए हैं। क्या कश्मीरी इन चुनावों पर भरोसा करते हैं? कश्मीरियों का एक बड़ा हिस्सा इंतज़ार ही इंतज़ार कर रहा है और वे भी मैदानी इलाकों के मुसलमानों से कोई अलग नहीं होंगे।
कम से कम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे सीधे तौर पर कहा है, फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी करते हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कभी भी स्वयं को पाक साफ प्रस्तुत नहीं कर सकते। मोदी और शाह अब मानते हैं कि उन्होंने अब्दुल्ला और मुफ्ती को काबू में कर लिया है। जम्मू-कश्मीर में ऐसी गलतफहमियां आम बात रही हैं।
एक बार मोदी और शाह को दिल्ली से भगा दिया जाये, जिसके लिए भाजपा को 2029 में हराना होगा, धारा 370 फिर से कानून की किताब में शामिल हो जायेगी और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख फिर से एक हो जायेंगे। तब तक हर छोटी-छोटी बात मायने रखती है और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का स्वागत है। मोदी और शाह अल्पकालिक के लिए सभी प्रशंसाएं ले सकते हैं। दीर्घकालिक उन्हें पसंद नहीं आयेगा।
भाजपा को पहले से ही अपने आसन्न विनाश की भनक लग चुकी है। एक और धक्का और पूरी इमारत झुक और गिर जायेगी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव तीन चरणों में होंगे, जिनकी शुरुआत 18 सितम्बर से होगी। मतगणना 4 अक्तूबर को होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करने के एक दिन बाद तारीखों की घोषणा की।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के पास प्रधानमंत्री मोदी की ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की मांग पर कहने के लिए कुछ नहीं था। उन्होंने मोदी से सवाल पूछने का काम मीडिया पर छोड़ दिया। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गयी। राजीव कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग ‘समावेशी और सुलभ चुनावों के लिए प्रतिबद्ध है।’ 
चुनाव का पहला चरण 18 सितम्बर को, दूसरा 25 सितम्बर को और तीसरा और अंतिम चरण 1 अक्तूबर, 2024 को होगा, जो 2 अक्तूबर को गांधी जयंती से एक दिन पहले है, जब केंद्र शासित प्रदेश के लगभग 87 लाख मतदाता अपने वोट डाल चुके होंगे। यह होगा लोकतंत्र की जीत! फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सीईसी राजीव द्मद्दमार को जितना धन्यवाद दें कम है। दोनों ही वंश एक दशक से अधिक समय से सत्ता से बाहर हैं। 
पिछली बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव मई 2014 में हुए थे। तब से जम्मू-कश्मीर के मतदाता केंद्र शासित प्रदेश के अधीन हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के लोग खुश हैं। सीईसी राजीव कुमार भी खुश हैं। कुमार कहते हैं कि 10 सालों में जम्मू-कश्मीर में हालात काफी बेहतर हुए हैं, खास तौर पर धारा 370 के निरस्त होने के बाद। कुमार कहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों ने ‘लोकतंत्र की परतों’ को मजबूत किया है और जम्मू-कश्मीर के लोग उत्साह से भरे हुए हैं।
राजीव कुमार ने भाजपा नेता की तरह बोलते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें इस बात का सुबूत हैं कि ‘लोग न केवल बदलाव चाहते थे बल्कि उस बदलाव का हिस्सा बनकर अपनी आवाज भी उठाना चाहते थे।’
राजीव कुमार ने जो संदेश दिया वह यह था कि ‘जम्मू-कश्मीर के लोगों ने बुलेट के बजाय बैलेट को चुना।’ कुमार दर्शकों को आकर्षित करने के लिए जाने जाते हैं और वे कई चुनाव आयुक्तों से अलग नहीं हैं जो पवनचक्कियों पर झुकते हैं। मतदाताओं की उच्च भागीदारी की उम्मीद है। कुमार ‘पूर्ण निष्पक्षता’ और समान अवसर का भी वायदा करते हैं। इसके बावजूद ये चुनाव सुरक्षा बलों पर अभूतपूर्व आतंकवादी हमलों की छाया में आयोजित किये जायेंगे। ऐसा माना जाता है कि जम्मू के वन क्षेत्रों में घुसपैठ करने वाले ‘आतंकवादी’ पाकिस्तानी सेना के कमांडो हैं। इनमें से कुछ को निष्प्रभावी कर दिया गया है, लेकिन सभी को नहीं। राजनेताओं को सुरक्षा प्रदान की जायेगी लेकिन क्या मतदाता बंदूकों की छाया में अधिकाधिक संख्या में मतदान करेंगे? (संवाद)