अकाली नेताओं के लिए सोचने का समय

आज जहां प्रदेश पंजाब डावांडोल होता दिखाई दे रहा है, वहीं पंजाब की सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल जो अब कई गुटों में बंट चुकी है, की नाव भी डावांडोल होती दिखाई दे रही है। इसकी स्थिरता ही इसे किसी निर्धारित किनारे या लक्ष्य हासिल करने में सहायक हो सकती है, परन्तु डावांडोल होती वाली नाव का भविष्य अनिश्चित ही होता है। ऐसे स़फर की उपलब्धि भी निराशाजनक ही होती है। इस स्थिति में मंज़िल और भी दूर दिखाई देना शुरू हो जाती है। विगत लम्बी अवधि से इसी आलम में गुज़र रहे अकाली दल का भविष्य चिन्ताजनक दिखाई देने लग पड़ा है। इसकी कतारों में अशांति तथा खलबली मची दिखाई देती है। पिछले लगभग अढ़ाई वर्ष से प्रदेश में आम आदमी पार्टी के प्रशासन ने लोगों को बुरी तरह निराश करके रख दिया है। पंजाब को सिर तक कज़र् में डुबो दिया है। नशों का प्रचलन व्याप्त है। हर तरह के अपराधों का दौर लगातार बढ़ता जा रहा है। जन-साधारण सरकार की कारगुज़ारी से निराश भी हैं तथा नाराज़ भी हैं।
इसी बीच प्रदेश की कांग्रेस पार्टी ने पुन: अपनी खोई हुई छवि एवं प्रभाव को बनाना शुरू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी भी पर तौलती प्रतीत होती है परन्तु अकाली कतारें निराशा में डूबी दिखाई देती हैं। इसके नेता दिशाहीनता में भटकते दिखाई दे रहे हैं। पदों का मोह सिर पर चढ़ कर बोलता दिखाई दे रहा है। कौम के हितों की बजाय अपने हित भारी हो रहे हैं। लम्बी और गहरी सोच के स्थान पर सतही सोच प्रबल हो रही है। विगत दिवस दो स्थानों पर कान्फ्रैंसें हुईं। रक्खड़ पुन्नेया के अवसर पर अकाली दल तथा डिब्रूगढ़ (असम) में नज़रबंद खडूर साहिब से नव-निर्वाचित सांसद अमृतपाल सिंह के साथियों तथा समर्थकों ने भी वहां अपनी एकत्रता का आयोजन किया था। यह जन-समूह संख्या के पक्ष से प्रभावशाली था तथा जोश के पक्ष से भी दृढ़ता का प्रभाव देने वाला था। अकाली दल की कान्फ्रैंस में नेताओं को पंजाब से संबंधित पुराने मामलों की याद आई। चंडीगढ़ और प्रदेश से बाहर रह गये पंजाबी भाषी क्षेत्रों का कान्फ्रैंस में ज़िक्र आया। नेताओं ने बंदी सिंहों की रिहाई की बातें भी कीं तथा ऐसा ही कुछ और भी अकाली नेताओं के भाषणों से सामने आया। इसके दूसरे दिन ज़िला संगरूर के गांव लौंगोवाल में भी दो कान्फ्रैंस की गईं—एक सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाले अकाली दल तथा दूसरी शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर के नाम पर एकत्रित हुए नेताओं की। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने यहां भी बंदी सिंहों की रिहाई की बात की। पंथ की मज़बूती की बात की। पंजाब के मामलों की बात की तथा डेरा सिरसा प्रमुख की गतिविधियों की आलोचना की। दूसरी तरफ सुधार लहर के नाम पर अकालियों की ओर से किया जनसमूह भी बड़ा तथा प्रभावशाली था। इसमें नेताओं ने अकाली दल की गिरती हुई छवि को पुन: ऊंचा उठाने के लिए लोगों में अपनी विश्वसनीयता बहाल करने की बात की तथा मर्यादा, सिद्धांतों, संस्थाओं तथा परम्पराओं की मज़बूती के लिए यत्नशील होने की गुहार लगाई।
विगत लम्बी अवधि से कभी बेहद प्रभावशाली रही इस पार्टी का अब लगातार क्षरण होता जा रहा है। ज्यादातर सिद्धांतों को मानने वाले तथा समर्पित भावना से काम करने वाले कार्यकर्ता तथा नेता इसे छोड़ते जा रहे हैं। सरकार की निराशाजनक कारगुज़ारी के बावजूद भी अकाली कतारों का क्षरण होता जा रहा है। इस की भावनात्मक शक्ति कम होती जा रही है। आज यदि सिख समुदाय के बड़ा भाग और जन-साधारण कभी पंजाब एवं कौम के हितों के लिए संघर्षशील रही पार्टी से मुंह मोड़ रहे हैं तो गम्भीरता से इसके कारणों संबंधी सोचने, समझने की ज़रूरत है तथा सुधार करने के लिए भी क्रियात्मक कदम उठाने का समय भी आ गया है। यदि अब इस नाव के मल्लाहों ने इसकी गति को स्थिर करने का यत्न न किया तो इसका डूबना निश्चित है, जिसके बाद पुन: उभार भी अनिश्चित होता नज़र आएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द