अपनी नदियों के पानी के अधिकार की रक्षा करे पंजाब

आ़िखरी जंग जब भी होगी, होगी वो पानी की जंग,
इस तरह बर्बादी-ए-जल पाप से कमतर नहीं।
पानी का कितना महत्व है। केवल ज़िन्दा रहने के लिए ही पानी की ज़रूरत नहीं, यदि पानी नहीं होगा तो जीवन की उत्पत्ति ही नहीं हो सकती। साहिब श्री गुरु नानक देव जी ने स्पष्ट लिखा है :
साचे ते पवना भइया पवनै ते जलु होए।
जल ते त्रिभवनु साजिया घटि घटि जोति समोइ।।
(म: 1, अंग : 19) 
अर्थात परमात्मा से हवा बनी और हवा से पानी, पानी से ही सारा जगत अस्तित्व में आया। 
न्यूज़वीक जैसी प्रमुख पत्रिका ने अप्रैल 2015 में लिखा था कि दुनिया में अगली लड़ाई अर्थात तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण हो सकता है। पानी को भविष्य का पैट्रोलियम पदार्थ माना जा रहा है। वैसे आज से लगभग 32 वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बुतरस घाली ने भी भविष्यवाणी की थी कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के भंडारों पर कब्ज़े के लिए लड़ा जाएगा। वर्ष 1995 में तत्कालीन विश्व बैंक के अर्थशास्त्री इस्माइल ने भी कहा था कि अगली शताब्दी में युद्ध पानी के लिए होगा। भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था, ‘ध्यान रहे, आग पानी में भी लगती है और कोई हैरानी नहीं कि अगला विश्व युद्ध पानी के मामले पर हो।’ न्यूज़वीक की रिपोर्ट में ज़िक्र है कि पानी के लिए पहली विश्व प्रसिद्ध लड़ाई लगभग 4500 वर्ष पहले इराक के गु-एडिना (स्वर्ग का किनारा) क्षेत्र के दो देशों लगास तथा उमा के बीच हुई थी। नदी टिगरस तथा नदी युफरेट्स के संगम से लगास के राजा ने नहरों के माध्यम से पानी का बहाव मोड़ कर उमा राज्य को जल-विहीन कर दिया था। वैसे मुस्लिम धर्म की प्रसिद्ध लड़ाई करबला का कारण भी पानी को ही माना जाता है। हाल के वर्षों में इथोपिया तथा मिस्र में नदी नील के पानी के लिए युद्ध की सम्भावनाएं बन गई थीं। इज़रायल तथा जार्डन में भी पानी की खातिर विवाद खतरनाक सीमा तक बढ़ता रहा है। 
़खैर, ये उदाहरण देने का अर्थ सिर्फ पंजाब के पानी के महत्व को दर्शाना है। राज्यसभा के सत्र में विक्रमजीत सिंह साहनी के एक प्रश्न के उत्तर में केन्द्रीय सिंचाई मंत्री का जवाब पंजाबियों तथा देशवासियों की आंखें खोलने वाला है कि पंजाब का लगभग पूरा भू-जल या तो कैंसर जैसी बिमारियों का कारण बन रहा है या काला पीलिया का। वास्तव में पंजाब में फसलों, उद्योग तथा घरेलू उपयोग के लिए अंधाधुंध निकाला जा रहा पानी प्रदेश को रेगिस्तान बना रहा है जबकि औद्योगिक अवशेष का पानी धरती के भीतर में डाल कर उसे ज़हरीला किया जा रहा है। खेतों में इस्तेमाल की जाती खादें तथा दवाइयां भी अपनी भूमिका निभा रही हैं। पंजाब के पानी को बचाने के लिए शुरू किया गया कपूरी मोर्चा जो बाद में धर्म युद्ध मोर्चा में बदल गया, के बदले जो मार पंजाब तथा विशेषकर सिख समुदाय को सहन करनी पड़ी, उसकी पीड़ा का एहसास अभी भी चीसें मारता है।    
नि:संदेह 12 जुलाई, 2004 में पंजाब विधानसभा में सभी कांग्रेसी, अकाली, आज़ाद, भाजपा तथा कम्युनिस्ट सदस्यों ने सर्वसम्मति से एस.वाई.एल. नहर की मुसीबत को टालने के लिए ‘पंजाब टर्मीनेशन ऑफ एग्रीमैन्ट्स एक्ट-2004’ पारित किया था, परन्तु इसकी एक धारा से कोई पंजाबी सहमत नहीं हो सकता कि जितना पानी इस समय राजस्थान तथा हरियाणा को जा रहा है, वह जारी रहेगा, परन्तु यह कानून भी किसी सिरे नहीं लगने दिया गया। पंजाब की हालत यह है :
किस ने देखे हैं तेरी रूह के रिसते हुए ज़ख्म,
कौन उतरा है तेरे कलब की गहराई में।
(रईस अमरोहवी)
पंजाब के पानी पर अधिकार सिर्फ पंजाब का
पंजाब के पानी पर अधिकार सिर्फ पंजाब का है। हरियाणा, राजस्थान का इस पर कोई भी कानूनी अधिकार नहीं बनता। पहले हरियाणा की बात कर लें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू रिपेरियन कानून जो भारत में भी लागू है, के अधीन पानी पर सिर्फ उस राज्य का अधिकार होता है जो संबंधित नदी का तटवर्तीय राज्य हो, जहां के लोग उस नदी के पानी की बाढ़ और बहाव की मार झेलते हों। हरियाणा तथा राजस्थान दोनों पंजाब की नदियों के तटवर्तीय राज्य नहीं हैं।  हरियाणा पंजाब के पानी का सिर्फ इसलिए पात्र माना जाता है कि वह संयुक्त पंजाब में शामिल था तथा उस समय नदियां की मालिकी उसकी भी थी। ज़रा नोट करें, 1874 में असम तथा बंगाल अलग हुए, परन्तु पानी नहीं बांटा गया। 1901 में सूबा सरहद पंजाब से अलग हुआ, परन्तु  रिपेरियन कानून के कारण उसका पंजाब के पानी पर कोई अधिकार नहीं माना गया। 1912 में बिहार तथा उड़ीसा अलग हुए, परन्तु पानी का विभाजन रिपेरियन कानून के अनुसार ही हुआ। 1936 में सिंध बम्बई से अलग हुआ, परन्तु पानी का विभाजन रिपेरियन के आधार पर हुआ। 
स्वतंत्र भारत में भी 1953 में आंध्र एवं मद्रास अलग हुए तो भी रिपेरियन कानून के तहत गोदावरी एवं कृष्णा नदियां आंध्र को मिलीं और कावेरी नदी मद्रास को। 1960 में बम्बई राज्य गुजरात तथा महाराष्ट्र में विभाजित हो गया और 1972 में उत्तर-पूर्वी राज्य बने, परन्तु प्रत्येक स्थान पर रिपेरियन कानून पानी के विभाजन पर लागू रहा। 
हैरानी की बात है कि पंजाब तथा हरियाणा के विभाजन के समय यह कानून दरकिनार क्यों किया गया? हरियाणा का पंजाब में रहे होने का आधार भी पूरी तरह ठीक नहीं। पानी के प्रमुख विशेषज्ञ स्वर्गीय प्रीतम सिंह कुमेदान के अनुसार 1859 में हरियाणा के 6 ज़िले पंजाब के साथ जोड़े गए थे। हरियाणा वही कुछ वापस मांग सकता है न, जो कुछ उसने पंजाब को दिया था। इस प्रकार ही रावी, ब्यास के पानी पर हरियाणा का कोई अधिकार नहीं बनता। हालांकि यह आधार ही गलत है, परन्तु यदि इसे मान भी लें तो यमुना तथा घग्गर नदियों के पानी पर पंजाब का अधिकार भी मानना पड़ेगा। पानी के विभाजन में हस्तक्षेप करने का अधिकार केन्द्र ने पंजाब पुनर्गठन एक्ट में धारा 78 जोड़ कर छीना है, जो पूरी तरह गैर-कानूनी है, क्योंकि देश भर में और कहीं भी राज्यों के विभाजन के समय 78,79 तथा 80 जैसी धाराएं नहीं डाली गईं। पानी संविधान में सिर्फ और सिर्फ राज्यों का विषय है।  केन्द्र सरकार तथा यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के पास भी कोई अधिकार नहीं कि वह पंजाब का पानी छीन कर किसी अन्य को दे सके। 
राजस्थान 10 लाख करोड़ से अधिक का देनदार
यदि इन्साफ किया जाए तो इस समय राजस्थान पंजाब के पानी की पुरानी कीमत के आधार पर ही लगभग 10 लाख करोड़ रुपये का देनदार है। राजस्थान पंजाब के पानी पर सितम्बर 1920 के बीकानेर नहर समझौते के अतिरिक्त 1955 में पानी पाकिस्तान को जाने से रोकने के लिए जल्दबाज़ी में किए गए समझौते तथा 1959 के भाखड़ा के पानी के समझौते के आधार पर अधिकार जमाता है। उल्लेखनीय है कि 1920 के समझौते में बाकायदा पानी की रायल्टी की व्यवस्था है, जो बीकानेर 1946 तक पंजाब को देता भी रहा है। 1955 का समझौता पूरी तरह गैर-कानूनी है क्योंकि इंडियन कांट्रैक्ट एक्ट  की धारा 25 के अनुसार कानून की नज़रों में वह समझौता , समझौता ही नहीं है जिसमें कोई कमी हो। इस समझौते में सबसे बड़ी कमी ही यह है कि पानी के बदले पंजाब को क्या दिया गया? इस समझौते की धारा-5 के अनुसार पानी की कीमत तय किया जाना माना गया था जिस संबंध में आज तक कोई फैसला नहीं किया गया। 
प्रीतम सिंह कुमेदान ने सैंट्रल वाटर एंड पावर कमिशन के एक प्रैस नोट के आधार पर जिसमें माधोपुर हैडवर्क्स के लोहे के गेट खराब होने के कारण प्रतिदिन 100 क्यूसिक पानी व्यर्थ जाने की कीमत 100 करोड़ रुपये वार्षिक के हिसाब की आंकी गई थी, को आधार बना कर बताया था कि राजस्थान पंजाब से प्रतिदिन एक करोड़ एकड़ फुट पानी ले रहा है, जो प्रतिदिन 50 लाख क्यूसिक बनता है। इसकी कीमत वार्षिक 14000 करोड़ रुपये बनती है। सो, अब तक 65 वर्षों में राजस्थान 9 लाख, 10 हज़ार करोड़ रुपये का पानी पंजाब से ले चुका है। यदि पानी की बढ़ी कीमत तथा ब्याज भी जोड़ लिया जाए तो यह 10 लाख करोड़ से भी कहीं अधिक बनता है, जो वास्तव में राजस्थान पंजाब का देनदार है।  पंजाब की सरकार तथा पंजाब की अन्य राजनीतिक पार्टियों का भी फज़र् है कि वे यह राशि लेने के लिए सिर्फ कानूनी प्रयास ही न करें, अपितु योग्य वकीलों की सलाह से पंजाब विधानसभा में सर्वसम्मति से कानून पारित करें कि पंजाब के पानी पर सिर्फ और सिर्फ पंजाब का अधिकार है। पंजाब की नहरी पानी से सिंचाई, औद्योगिक ज़रूरतों तथा घरेलू उपयोग की आवश्यकताएं पूरी करने के बाद शेष बचा पानी ही दूसरे राज्यों को उनकी उचित रायल्टी या कीमत लेकर ही दिया जाए। हां, ठीक है कि यह बड़ा कार्य है। इसके लिए बड़े हौसले की ज़रूरत है, परन्तु जो लोग बड़े कदम उठाते हैं, इतिहास के नायक (हीरो) भी वही बनते हैं। वैसे 10 लाख करोड़ की बात करते हुए यह भी उल्लेखनीय है कि पंजाब अब तक राजस्थान को दिये जा रहे पानी के बदले अपने भू-जल को निकालने के लिए ही लगभग 2 लाख करोड़ रुपये डीज़ल, बिजली तथा ट्यूबवैलों की लागत के रूप में अपनी ओर से खर्च कर चुका है। 
कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की आदत भी है हमको,
कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है। 
(ज़िया ज़मीर)
हरियाणा चुनाव : कांग्रेस, भाजपा तथा सिख
हमने बहुत बार लिखा है कि बेशक कांग्रेस के शासन में 1984 के कृत्य हमारे लिए असह्य हैं, परन्तु सिखों जैसे अल्पसंख्यकों के लिए ज़रूरी है कि वे इतिहास को याद रखते हुए भी देश की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस (इंडिया गठबंधन) या भाजपा (राजग) के साथ जाकर ही अपने हित सुरक्षित कर सकते हैं। उन्हें दोनों पक्षों के साथ संतुलन बना कर एक ही शर्त रखनी चाहिए कि वे उस पार्टी के साथ जाएंगे, जो उन्हें राज-भाग में समुचित हिस्सा देगी और उनकी उचित मांगों को मानने के लिए तैयार होगी। यह फैसला प्रत्येक राज्य के  सिखों को अपने-अपने राज्य की स्थितियों के अनुसार लेना चाहिए। अब ऐसी सूझबूझ का सबूत हरियाणा के सिखों ने सिख एकता दल बना कर दिया है। परिणाम सामने है कि इस दल के कोर कमेटी सदस्य तथा संस्थापक प्रितपाल सिंह पन्नू के अनुसार हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बार 5 सिखों को टिकटें दी हैं। करनाल से सुमिता सिंह विर्क, असंध से शमशेर सिंह गोगी, अम्बाला शहर से निर्मल सिंह, रतिया से जरनैल सिंह रतिया तथा पिहोवा से मनदीप सिंह चट्ठा को उम्मीदवार घोषित किया गया है। ये सभी क्षेत्र सिख प्रभाव वाले हैं। दूसरी ओर भाजपा ने सिर्फ एक सिख नेता कंवरजीत सिंह अजराना को टिकट दी थी जिसने स्थानीय भाजपा नेताओं तथा स्थानीय सिख संगत के विरोध को देखते हुए टिकट वापिस कर दी है। हरियाणा में इस समय वैसे भी कांग्रेस का हाथ ऊपर दिखाई दे रहा है तथा यह देश भर में सिखों के प्रति कांग्रेस के रवैये में बदलाव का संकेत प्रतीत होता है। 
   
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