कुर्सी के साये में नेता जी!

नेता जी को दमगजे मारने का बड़ा शौक है। जब भी मौका मिलता है, दमगजों का चौका-छक्का जड़ देते हैं, किन्तु उनका दर्द यह है कि हर बार लपके जाते हैं...कभी सीमा-रेखा के भीतर, और कभी विपक्षी फील्डर बाहर जाती गेंद को हवा में उछल कर लपक लेता है। अब भी 177 दौड़ों का पीछा करते हुए नेता जी एक बार फिर दमगजों के पटाखे फोड़ने लगे हैं।
नेता जी को फिल्मी डॉयलाग बोलने का भी बड़ा शौक रहा होगा। तभी तो एक दिन बोले—मैं आयरन मैन हूं। मैं बलशाली हूं। इस पर हमें हॉलीवुड की एक फिल्म की याद आ गई—आयरनमैन। आयरनमैन अपनी एक उंगली मात्र से भागती हुई रेलगाड़ी और ठहरे हुए परबत को बीच में से दो हिस्सों में काट कर रखा देता है।
अब जैसे ही नेता जी ने यह डायलाग बोला, विपक्षी टीम ने झट से तीसरी स्लिप में लपक लिया। पता नहीं कैसी चंदरी नज़र लग गई है नेता जी को। न तो कोई उनके गाल पर काला टीका लगाता है, न कोई लाल सूखी मिर्चें उनके सिर पर से उबार कर उनकी नज़र उतारता है। जब से नेता बने हैं, बस, इधर-उधर धकियाए-से चले आते हैं। पुराने ज़माने में माएं अक्सर अपने बच्चों को किसी बुरी नज़र से बचाने के लिए सुरमे अथवा कजले का काला टीका लगाया करती थीं। बच्चा चाहे रंग का डब-खड़ब्बा हो अथवा गेहुएं रंग का भी, किन्तु मां के लिए तो वह काले टीके के काबिल ही होता था। नेता जी की मां ने भी शायद उन्हें बचपन में काला टीका नहीं लगाया होगा, तभी तो उनके साथ अक्सर दुर्योग होते रहते हैं। अभी पिछले महीने ही उन्हें शाहजहां की तरह गोलकुण्डा के किले के भीतर जाना पड़ गया था। बड़ी कोशिशों के बाद बाहर आए, तो देखा, उनका तख्त-ए-ताऊस पलट चुका था यानि उनकी कुर्सी की ओर जाते रास्ते पर पता नहीं कितने कैक्टस और कंडियाली थोहर उग आई थीं। नंगे पांव चले, तो पांवों के लहू-लुहान हो जाने का ़खतरा। नेता जी की किलेबन्दी वाला किस्सा भी बड़ा अजीब जैसा है...यानि वही दमगजे मारने का। इस दौरान उन्होंने एक बार वो फल खा लिया जो उन्हें वर्जित था। अब हुआ यह कि इधर उन्होंने फल खाया, उधर किसी ने उनके दुश्मनों को ़खबर कर दी। बेचारे ठॉअ करके सपनों के शीश महल की प्राचीर से नीचे आ गिरे।
नेता जी जन-कल्याण के दमगजे भी बहुत मारते रहे हैं हालांकि उनके ये दमगजे उनके लिए विपरीत गर्म हवाएं ही लेकर आते रहे। नेता जी ने औरतों के लिए मुफ्त बस सेवा की घोषणा की तो उनके अपने कारिन्दे ड्राईवर ही धोखा दे गये। वे उन ठहरावों से दूर से ही बसें भगा कर ले जाते हैं जहां महिला सवारी खड़ी हों। यदि कोई महिला मुफ्त की सीट पर बैठ जाए, तो कंडक्टर महोदय बड़बड़ाने लगते हैं। यही हश्र नेता जी की महिलाओं को एक हज़ार रुपल्ली महीना देने की घोषणा का हुआ है।
यानि सिर मुंडाते ही ओले पड़े...एक तो नेता जी स्वयं गोलकुण्डा के कैदी हो गये। दूसरे, शराब की बिक्री के ज़रिये आने वाली काली कमाई वाली मोरनी को काले कच्छे वाले चोर चुरा ले गये। उधर नेता जी एक बार गोलकुण्डा किले के कैदी हुए, तो उनकी सारी हैंकड़ी जाती रही। किले के दर-ओ-खिड़कियों की लोहे की सलाखें इतनी मजबूत निकलीं कि न तो वे आयरनमैन की उंगलियों से पिघलीं, न उनके बल से किसी दीवार की कोई एक ईंट ही हिल सकी।
अब एक दिन नेता जी के भागों एक बार फिर छींका टूटा, और नेता जी सुपरमैन बन कर, हवाओं में हिण्डोले पर सवार होकर गोलकुण्डा के किले से बाहर आ गये, किन्तु बाहर आकर भी उनको न रातों को नींद आती है, न दिन को चैन-करार आता है। बस, दिन-रात जागते हुए भी कुर्सी के सपने। सपनों के पीछे भागते हुए भी, कुर्सी को सिर पर उठाये फिरते हैं। मां कसम, किसी की भी ज़िन्दगी में ऐसे इत्तेफाक शायद ही कभी होते हों, कि जब फिल्मी दुनिया की तरह कोई सचमुच का आयरन-मैन हो जाए अथवा किसी जेल की दीवारें किसी गब्बर सिंह की धमकी के बाद, किसी नेता जी की पुकार को सुन कर भर-भरा कर गिर जाएं। कुछ लेना हो, तो कुछ देना भी तो पड़ता है न! नेता जी ने एक हाथ से गोलकुण्डा से रिहाई ली, दूसरी ओर से उनकी कुर्सी खिसक कर, उनसे रूठती हुई,यह गई, कि वो गई। अब कुर्सी उनका साया बनती है, या वह कुर्सी के साये में बैठते हैं, यह देखने वाली बात होगी।