सुक्खी लाला उर्फ कन्हैया लाल  के अनसुने किस्से

महबूब खान के निर्देशन में बनी कालजयी फिल्म ‘मदर इंडिया’ का सूदखोर सुक्खी लाला किसे याद नहीं है, जिसका ब्याज कभी खत्म ही नहीं होता था, भले ही उधार लेने वाले की ज़िंदगी खत्म हो जाये। इस किरदार को अपने प्रभावी अभिनय से जीवंत किया था कन्हैयालाल ने। वह अपने किरदार में इतनी गहराई तक उतर गये थे कि लोग उनसे नफरत करने लगे थे।  बनारस में एक ‘सनातन धर्म मंडली’ थी जो नियमित रामलीला का आयोजन कराया करती थी। इसके संचालक थे भैरव दत्त चौबे, जिनके दो बेटे थे, संकटा प्रसाद चतुर्वेदी और कन्हैयालाल चतुर्वेदी। दोनों रामलीला में काम किया करते थे। कन्हैयालाल का जन्म 15 दिसम्बर, 1910 को बनारस में ही हुआ था। कन्हैयालाल रामलीला में अपने अभिनय के कारण शुरु से ही इतने चर्चित हो गये थे कि बनारस के राजा विशेषरूप से उनका ही अभिनय देखने के लिए आते थे और प्रसन्न होकर उन्हें उपहार में अशर्फियां देते थे। 
अपनी कला को विस्तार देने के लिए संकटा प्रसाद चतुर्वेदी ने बनारस से बॉम्बे (अब मुंबई) की गाड़ी पकड़ी और वहां अभिनय के क्षेत्र में अच्छा नाम कमा लिया। उनसे प्रेरित होकर कन्हैयालाल भी बॉम्बे चले गये, लेकिन अभिनेता बनने नहीं बल्कि निर्देशक बनने के लिए। पटकथा लेखन भी उनका सपना था। बहरहाल, किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। संयोग से कन्हैयालाल की मुलाकात महबूब खान से हो गई और उन्हें उनमें अपना सुक्खी लाला नज़र आया। कन्हैयालाल पहले महबूब खान की फिल्म ‘औरत’ में सुक्खी लाला बने और इस फिल्म की सफलता को दोहराने के लिए जब महबूब खान ने इसका रीमेक ‘मदर इंडिया’ के रूप में किया तो सुक्खी लाला की भूमिका में एक बार फिर कन्हैयालाल को ही लिया गया। 
वैसे कन्हैयालाल के सुक्खी लाला बनने के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। हुआ यह कि इस किरदार को अदा करने वाला एक्टर किसी कारणवश सेट पर नहीं आ सका था। महबूब खान ने गौर से देखा तो वहां खड़े कन्हैयालाल में उन्हें सुक्खी लाला नज़र आया। उन्होंने यह भूमिका उन्हें ही देने की ठान ली। किसी ने तंज़ किया कि यह कैसे कर पायेंगे, इन्हें तो फिल्मों का कोई अनुभव भी नहीं है? इसके बावजूद महबूब खान ने कन्हैयालाल से कहा कि वह गेटअप में आयें और उन्हें क़ागज़ पर डायलॉग लिखकर दे दिए गये कि वह याद कर लें क्योंकि वह ही डिलीवर किये जाने हैं। कन्हैयालाल का जब सीन आया तो उन्होंने एक ही टेक में सारे डायलाग प्रभावी अंदाज़ में अदा कर दिए। सेट पर मौजूद सभी लोग हैरान रह गये। महबूब खान तो इतने प्रभावित हुए कि ‘औरत’ को जब उन्होंने ‘मदर इंडिया’ के रूप में बनाया तो कन्हैयालाल के अतिरिक्त किसी भी कलाकार को रिपीट नहीं किया। कन्हैयालाल ही सुक्खी लाला बने रहे। 
लेकिन इस सफलता का नतीजा यह निकला कि लोग कन्हैयालाल से वास्तव में नफरत करने लगे। लोग उन्हें ही सुक्खी लाला समझने लगे। एक दिन कन्हैयालाल अपनी पत्नी के साथ अपनी बालकनी में बैठे हुए थे कि अचानक भीड़ ने उन पर पथराव कर दिया। कन्हैयालाल ने भीड़ द्वारा बरसाये गये पत्थरों को एकत्र किया और उन्हें संभालकर रख लिया। उनकी पत्नी इस घटना से परेशान व चिंतित हो गईं तो कन्हैयालाल ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘ये पत्थर ही मेरा पुरस्कार हैं।’ गौरतलब है कि सुक्खी लाला का किरदार निभाने के लिए कन्हैयालाल वास्तव में गंजे हो गये थे। यह अभिनय के प्रति उनका समर्पण था। एक दिन शूटिंग के बाद जब वह घर पहुंचे तो ‘गंजे व्यक्ति’ को देखकर उनकी पत्नी डर गई और ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी। कन्हैयालाल ने उन्हें बड़ी मुश्किल से समझाया कि वह कोई चोर नहीं बल्कि उनके पति हैं।  अभिनय के अतिरिक्त कन्हैयालाल की गहरी दिलचस्पी साहित्य में भी थी, शायद इसलिए वह पटकथा लेखक बनना चाहते थे। वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को अपना गुरु मानते थे। हालांकि कन्हैयालाल चौथी कक्षा में फेल होने के बाद आगे शिक्षा प्राप्त न कर सके थे। लेकिन हिंदी व उर्दू सहित उनकी कई भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। वे अपने बच्चों को भी अभिनय से अधिक साहित्य में दिलचस्पी लेने के लिए प्रेरित किया करते थे। पर्दे पर कन्हैयालाल बेशक निगेटिव भूमिकाओं में ही अधिक दिखायी दिए, लेकिन असल जीवन में वह इसका एकदम उलट थे। वह ठेठ बनारसी थे, कभी पैंट कमीज़ या सूट नहीं पहनते थे बल्कि हमेशा सफेद कुर्ता पायजामा व कुर्ता धोती पहनते थे। उच्च कोटि के कलाकार होने के बावजूद कन्हैयालाल को कभी किसी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। शायद पर्दे पर उनकी निगेटिव छवि इस बारे में उनके आड़े आयी। कारण जो भी हो, वह इतने अच्छे कलाकार थे कि उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिलने ही चाहिए थे। यह बात उन पर बनी डाक्यूमेंट्री ‘नाम था कन्हैयालाल’ में भी उठायी गई है।
एक दिलचस्प बात यह है कि बॉम्बे आने पर कन्हैयालाल ने सबसे पहले अपने द्वारा लिखित नाटक ‘पन्द्रह अगस्त’ का मंचन किया था। यह 1938 की बात थी यानी देश की आज़ादी से 9 साल पहले। 300 से अधिक फिल्मों में काम करने वाले कन्हैयालाल, जो लाला के अतिरिक्त मुनीम (गंगा जमुना) के नाम से भी विख्यात थे, का निधन 14 अगस्त, 1982 को दिल्ली में हुआ। उनकी बेटी हेमा सिंह फिल्म निर्माता हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर