विश्व-प्रसिद्ध फूलों की घाटी

उत्तराखंड के चमोली जनपद में बद्रीनाथ के पूरब और पुष्पावती नदी की स्निग्ध धारा के समीप शंकु के आकार की फूलों की घाटी देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। फूलों की इस खूबसूरत घाटी में 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्काटलैंड की वनस्पति शास्त्री मारगेट लेगी का स्मारक है। मारगेट लेगी फूलों की विभिन्न प्रजातियों संबंधी अध्ययन करने के लिए सन् 1939 में घाटी में आयी थी। एक दिन फूलों का गहन निरीक्षण करते समय वे एक चट्टान से फिसलकर गिर पड़ी और उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। वे तेज दर्द और कठोर सर्दी की रात में खुले में पड़े रहने के कारण अपने प्राण त्याग चुकी थी लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वह फूलों की जहरीली सुगंध से मरी। उन दिनों से प्रशासन किसी को भी रात में घाटी में ठहरने की अनुमति नहीं देता है। स्थानीय भाषा में फूलों की घाटी को बिष्ठोली खार्क के नाम से जाना जाता हैं जिसका अर्थ है ‘जहरीला चरागाह’। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि फूलों के खिलने के मौसम में घाटी में घूमते समय फूलों की जहरीली सुगंध के कारण बेहोशी महसूस होती है। बाहरी दुनिया से फूलों की घाटी का परिचय 1931 में हुआ जब फ्रैंक स्मिथ और होल्डसवर्थ कामेट शिखर पर पर्वतारोहण के लिए जा रहे थे। एक पगडंडी से गुजरते वक्त अचानक उनका पैर फिसला और वे घाटी में गिर पड़े। प्रकृति के इस विस्तृत व विशाल उद्यान को वे ढंग से देखते रहे। उन्होंने असंख्य फूलों का संकलन किया और ‘फूलों की घाटी’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी। इस पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात ही अनेक लोगों के मन में फूलों की घाटी के विषय में जानने की उत्सुकता ने जन्म लिया और बाहरी संसार से इस घाटी का परिचय हुआ। फूलों की घाटी के समीप ही पुष्पावती नदी बहती है। यह नदी घोरा डुंगी श्रृंखला के ग्लेशियर से निकलती है। नदी के बायें किनारे पर चपटा भूखंड है जो नागताल के नाम से जाना जाता हैं। यहां पर हजारों रंग के नीले फूल खिलते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये जहरीले फूल हैं। वर्तमान में फूलों की घाटी में देश-विदेश के पर्यटक घूमने आते हैं, जिनमें वनस्पति शास्त्री, प्रकृति प्रेमी और आध्यात्मिक प्रकृति के लोग भी शामिल हैं। दिन-प्रतिदिन लोगों की बढ़ती भीड़ के कारण यहां के पर्यावरण के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। इस क्षेत्र का अकेला गांव भ्यूंधार है। यहां के लोगों को फूलों की घाटी में अपनी भेड़, बकरी, भैंस आदि चराने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह क्षेत्र राष्ट्रीय पार्क घोषित किया जा चुका है।  गोबिन्द घाट से फूलों की घाटी के लिए 16 मिलोमीटर पैदल मार्ग है। यह मार्ग  घंघरिया से होकर जाता है। गोविंद घाट व घंघरिया में पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था है। (उर्वशी)