इतिहास और आर्किटेक्चर का विशिष्ट संगम है आगा खान पैलेस

कुछ दिन पहले मैं पुणे में अपने एक दोस्त के घर पर ठहरा हुआ था। उससे व उसकी पत्नी से इधर-उधर की बातें चल रही थीं। बातों बातों में ज़िक्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आ गया, वह भी कुछ इस तरह से कि मेरा दोस्त बता रहा था कि जब भी वह विदेश में होता है, तो उसे यह शब्द अवश्य सुनने को मिलते हैं- ‘तो आप गांधी के देश से हैं।’ इस पर मेरे मुंह से निकल गया कि ऐसा लगता है कि गांधीजी को हमसे ज्यादा विदेशी समझने लगे हैं। मेरा दोस्त बोला, ‘हम गांधीजी को समझने का प्रयास ही कहां करते हैं। अब देखो पुणे में ही आगा खान पैलेस है, जो गांधीजी व उनके विचारों को समझने का सबसे अच्छा केंद्र है, लेकिन पुणे के ही कितने लोग वहां तक जाने का कहां कष्ट करते हैं।’ 
दोस्त की बातें सुनकर मैं भी कुछ शर्मिंदा सा हुआ। मुझे ठीक से याद नहीं कि पुणे मैं कितनी बार आया हूं, दर्जन से तो कम विजिट न रही होंगीं। लेकिन मैंने एक बार भी आगा खान पैलेस जाने की ज़रूरत महसूस नहीं की थी, जबकि उसके ऐतिहासिक महत्व को मैं अच्छी तरह से जानता व समझता हूं। मैंने रात में ही अपनी भूल सुधार करना तय किया। अगली सुबह नाश्ता करने के बाद जब मेरा दोस्त व उसकी पत्नी अपने अपने दफ्तरों के लिए निकल गये (उनके एक ही बेटा है जो दून स्कूल, देहरादून के हॉस्टल में है) तो मैंने सड़क पर आकर आगा खान पैलेस के लिए ऑटोरिक्शा लिया। हालांकि सिटी बस भी वहां तक जाती है, लेकिन ऑटोरिक्शा को मैंने इसलिए प्राथमिकता दी क्योंकि वह सीधा मुझे मेरी मंजिल तक ले जाता। लगभग 7 किमी का सफर तय करने के बाद मैं आगा खान पैलेस के सामने था। उसकी भव्य इमारत को देखते ही मुझे एहसास हुआ कि जैसे मैंने इतिहास के पन्नों में प्रवेश कर लिया हो।
आगा खान पैलेस का काम्प्लेक्स इतालवी मेहराबों व विशाल लॉन्स का विशिष्ट मिश्रण है। इसी जगह पर गांधी स्मारक समिति की बैठकें नियमित आयोजित की जाती हैं। यह पैलेस 19 एकड़ में फैला हुआ है और इसके प्रांगण में पांच हॉल हैं। दो मंजिला इमारत की ‘परिक्रमा’ एक ढाई मीटर चौड़ा गलियारा करता है। अब यह इमारत गांधी मेमोरियल सोसाइटी का मुख्यालय बना हुआ है। इसके अतिरिक्त यहां सैंकड़ों तस्वीरें, कलाकृतियां हैं, जिनका गांधीजी से संबंध है, जिनसे गांधीजी को समझने और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके विशिष्ट योगदान को समझने का अवसर मिलता है। पैलेस में खादी व अन्य हैंडलूम टेक्सटाइल्स की दुकानें भी हैं। पैलेस की प्रमुख गतिविधियों में आज भी खादी का बुना जाना शामिल है। 
इस पैलेस का निर्माण सुल्तान मुहम्मद शाह आगा-3 ने 1892 में कराया था। यह भारत के इतिहास में अति महत्वपूर्ण लैंडमार्क है और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक अहम पलों का स्रोत भी यही है। गांधीजी, उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी, सरोजनी नायडू व महादेव देसाई को अंग्रेजों ने इसी पैलेस में कैद में रखा था। इसलिए इस पैलेस का महत्व दोनों आर्किटेक्चरल व ऐतिहासिक है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की कोई कहानी आगा खान पैलेस के ज़िक्र के बिना पूर्ण नहीं हो सकती। पुणे के आस पास के क्षेत्र भयंकर अकाल से प्रभावित हो गये थे। लोगों के पास न खाने को था और न ही रोज़गार था। इन लोगों की मदद करने के लिए सुल्तान ने इस पैलेस का निर्माण कराया था। बाद में आर्किटेक्ट चार्ल्स कोरेया ने पैलेस के प्रांगण में कस्तूरबा गांधी व महादेव देसाई की याद में उनके स्मारकों का भी निर्माण कराया। इस पैलेस में एक म्यूजियम भी है, जिसमें उस दौर की तस्वीरों के साथ ही गांधीजी की व्यक्तिगत चीज़ें भी हैं। गांधीजी की अस्तियों को भी पैलेस के लॉन में दफनाया गया है। आगा खान पैलेस को 2003 में राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया गया था।
आगा खान पैलेस के इतिहास की जड़ें बहुत गहरी हैं। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीजी, उनकी पत्नी कस्तूरबा व उनके सचिव महादेव देसाई को 9 अगस्त 1942 से 6 मई 1944 तक यहीं बंद रखा गया था। इसी कैद के दौरान दोनों कस्तूरबा गांधी व महादेव देसाई का निधन हो गया था, इसलिए दोनों के स्मारक इसी पैलेस में हैं। गांधीजी व उनके दर्शन के सम्मान में आगा खान ने 1968 में आगा खान पैलेस भारत के नागरिकों को दान कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में इस पैलेस की यात्रा की और इसके रख रखाव के लिए 20,000 रूपये वार्षिक आवंटित किये। अब यह राशि बढ़कर एक करोड़ रूपये हो गई है। पैलेस में चहलकदमी करते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं गांधीजी के रूबरू हूं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर