टैस्ट क्रिकेट में ‘पॉवर ऋषभ पंत’ की वापसी

महेंद्र सिंह धोनी 2005-2014 के बीच भारतीय क्रिकेट की किस्मत के ‘कीपर’ थे। जिस दौरान धोनी ने केंद्रीय मंच संभाला, तब केवल एक अन्य स्टंपर ने ही टेस्ट टीम में डेब्यू किया था। उस समय कोई भी यह भविष्यवाणी करने की स्थिति में नहीं था कि भारत धोनी के बराबर बल्लेबाज़ी करने वाला व सुरक्षित हाथों वाला एक अन्य विकेटकीपर की खोज कर लेगा। साहसिक इरादों व मैच जीतने की काबलियत वाले ऋषभ पंत ने पर्याप्त संकेत दे दिए हैं कि वह लम्बी रेस के घोड़े हैं। दिसम्बर 2022 की भयंकर दुर्घटना को अपने पीछे छोड़ते हुए ऋषभ पंत ने बांग्लादेश के साथ हो रही टेस्ट श्रृंखला में फिर से अपनी जगह बनायी है। 
गौरतलब है कि पिछले दो साल के बाद दिलीप ट्राफी में पंत ने पहली बार रेड बॉल क्रिकेट प्रतियोगिता खेली और उसमें उन्होंने प्रभावी प्रदर्शन किया। संभवत: अपनी टेस्ट वापसी से पंत ने उन लगभग आधा दर्जन विकेटकीपरों के लिए दरवाज़े बंद कर दिए हैं, जो देश का प्रतिनिधित्व करने के सपने देख रहे थे। बहरहाल, कनेक्शन नियम अब दल में दूसरे विकेटकीपर के लिए जगह खोलता है- ध्रुव जुरेल वर्तमान में उस स्थान पर हैं, लेकिन जैसा धोनी के कम्पटीशन में देखने को मिला, यह इंतज़ार लम्बा व न खत्म होने वाला भी हो सकता है। सवाल यह है कि जुरेल के लिए विकल्प क्या हैं? इंग्लैंड के विरुद्ध पिछली घरेलू सीरीज में जुरेल ने ख़ुद को हीरो साबित किया था और रांची टेस्ट में वह प्लेयर ऑ़फ द मैच भी थे। पंत की ़गैर मौजूदगी में के.एस. भरत को 7 टेस्ट खेलने का अवसर मिला, लेकिन वह मौकों को भुना न सके, विशेषकर बल्ले से खराब प्रदर्शन के कारण। अब शायद उन्हें दूसरा मौका मिले ही न। एक अन्य दावेदार ईशान किशन में क्षमता है बशर्ते कि वह उसके लिए प्रयास करें।
लेकिन उस कीपर बैटर की जगह कौन ले सकता है जिसने 33 टेस्टों में 5 शतक और छह 90 के स्कोर किये हों और मध्यक्रम में टीम का मज़बूत स्तंभ बन गया हो? भारत के पूर्व विकेटकीपर पार्थिव पटेल, जिनका भारतीय कॅरियर धोनी की छाया में बीता, का कहना है, ‘आपको खेल का आनंद लेते रहने का रास्ता निकालना होगा। समान तीव्रता से खेलने की कोशिश करनी होगी, भले ही आप किसी भी मैच में खेल रहे हों। काम आसान नहीं है। लेकिन आपको करना होगा ताकि आप हर समय तैयार रहें।’ पार्थिव की तरह दिनेश कार्तिक ने भी अपना इंडिया डेब्यू धोनी से पहले किया था, लेकिन वह गति बनाये न रख सके। दोनों को ही टेस्ट मैचों के बीच में आठ साल बर्दाश्त करने पड़े। उन्हें अवसर तब मिला जब 2014 में धोनी ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। दरअसल, धोनी को बल्लेबाज़ी के लिए ऊपर भेजा गया, ओडीआई में उन्होंने शतक लगा दिया। टेस्ट क्रिकेट में भी अच्छी शुरुआत की। शानदार कीपिंग की। इससे भी महत्वपूर्ण, वह रातभर में ब्रांड बन गये। कार्तिक के अनुसार, ‘मुझे एहसास हो गया कि वह ही दोनों टेस्ट व ओडीआई में पहले विकेट कीपर होंगे।’
प्रासंगिक रहने के लिए दोनों पार्थिव व कार्तिक ने रास्ते तलाशे। दोनों का टेस्ट कॅरियर बहुत छोटा रहा, लेकिन वाइट-बॉल में उन्हें बेहतर सफलता मिली। पार्थिव टी-20 ओपनर बने और कार्तिक फिनिशर। अपने कॅरियर के अंत में पार्थिव को यह खुशी मिली कि वह गुजरात को पहली बार रणजी ट्राफी के फाइनल तक लेकर गये। कार्तिक ने आईपीएल में आरसीबी का फिनिशर बनकर वाह वाही लूटी और उन्हें टी-20 विश्व कप की टीम में भी शामिल किया गया। रिद्धिमन साहा 40 से अधिक टेस्ट खेल सकते थे, अगर वह किसी अन्य युग में पैदा होते। धोनी के टेस्ट रिटायरमेंट के बाद साहा को अवसर मिले। फिर पंत के आगमन पर भारत को एहसास हुआ कि वह साहा में क्या कमी महसूस कर रहा था। 
विराट कोहली के अनुसार साहा सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर थे, लेकिन उनमें धोनी व पंत का एक्स फैक्टर बल्ले से नहीं था। साहा को इससे संतोष करना पड़ा। जुरेल तो पंत के बैकअप बन जायेंगे, लेकिन 30-वर्षीय भरत के लिए मुश्किल होगी। लेकिन भरत कुंठा में नहीं जी रहे हैं। वह कहते हैं, ‘हां में 20 या 40 रन के स्टार्ट को बड़े स्कोर में बदल सकता था, लेकिन इस बात पर निरंतर अफसोस करने का कोई अर्थ नहीं है। मुझे कभी नहीं लगा कि मैं बड़े मंच का खिलाड़ी नहीं हूं। अगर ऐसा होता तो मेरा चयन ही न होता और इंडिया ए के लिए मैंने चार शतक न लगाये होते। मुझे लगता है कि मैं सही समय पर टेस्ट शतक भी लगा दूंगा। मुझे बस तैयार रहना है व संयम रखना है। सुबह 5 बजे उठकर घंटों प्रैक्टिस करनी है। जीवन सरल है अगर हम उसे जटिल न बनाएं। अगर एक खिलाड़ी के रूप में आप रोज़ बेहतर हो रहे हैं तो आप सफल हैं। हर समय रेड कारपेट पर चलना आवश्यक रूप से कामयाबी नहीं है। सेटबैक से फिर उठाना भी सफलता है।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर