बदहाल हो रही है नदियों की दशा

आज विश्व नदी दिवस पर विशेष

प्रतिवर्ष सितम्बर महीने के चौथे रविवार को लोगों को नदियों का संरक्षण करने और तेज़ी से फैल रहे नदी प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से ‘विश्व नदी दिवस’ मनाया जाता है, जो इस वर्ष 22 सितम्बर को मनाया जा रहा है। दरअसल लंबे समय से देखा जा रहा है कि दुनियाभर की नदियों में प्रदूषण का स्तर निरन्तर बढ़ रहा है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण कारण एक ओर जहां नदियों में बड़ी मात्रा में बहाई जाने वाली गंदगी, रसायन इत्यादि हैं, वहीं तेज़ी से होता जलवायु परिवर्तन भी नदियों की सेहत को प्रभावित कर रहा है। इसी प्रदूषण को रोकने, नदियों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विश्वभर में 2005 से ही विश्व नदी दिवस मनाया रहा है। विश्व नदी दिवस की स्थापना नदियों की रक्षा के संकल्प को लेकर मार्क एंजेलो द्वारा शुरू किए गए प्रस्ताव द्वारा की गई थी, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध नदी अधिवक्ता के रूप में जाना जाता था। संयुक्त राष्ट्र ने 2005 में विश्व नदी दिवस के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए जीवन के लिए जल दशक की शुरुआत की थी और 2005 में 60 से भी ज्यादा देशों ने नदियों के कल्याण के लिए कुछ कार्यक्रमों का आयोजन करते हुए पहली बार ‘विश्व नदी दिवस’ मनाया था।
नदियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं, जो विभिन्न ग्लेशियरों व झरनों जैसे हेडवाटर क्षेत्रों से शुरू होती हैं और घुमावदार रास्तों में अलग-अलग गति से बहते हुए झीलों अथवा महासागरों में वितरित हो जाती हैं। नदियां वास्तव में पानी का एक बड़ा और प्राकृतिक प्रवाह हैं, जिनका उपयोग मुख्यत: कृषि के लिए सिंचाई, पनबिजली बांधों के माध्यम से बिजली का उत्पादन, पीने के पानी इत्यादि कार्यों के लिए किया जाता है। कुछ नदियां सालभर निरन्तर बहती हैं तो कुछ मौसमी नदियां होती हैं, जो प्राय: बारिश के मौसम में ही बहती हैं। चिंता का विषय यह है कि दुनियाभर की अधिकांश नदियों की हालत बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार खराब होती जा रही है। 
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए एक अध्ययन के परिणामों में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में नदियां अब महासागरों से भी ज्यादा गर्म हो रही हैं, जिससे न केवल नदियों का तापमान बढ़ रहा है बल्कि उनकी ऑक्सीजन भी तेज़ी से कम हो रही है और इससे नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। दरअसल जलीय जीवन मूल रूप से नदियों के पानी के तापमान तथा ऑक्सीजन के स्तर पर ही निर्भर करता है। यह पहला ऐसा अध्ययन है, जिसमें व्यापक स्तर पर नदियों के तापमान में बदलाव और ऑक्सीजन कम होने की दर की पानी की गुणवत्ता और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहे असर की पड़ताल की गई और इसके लिए शोधकर्ताओं द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तथा उन्नत डीप लर्निंग पद्धतियों का उपयोग किया गया।
अध्ययन में बारिश, मिट्टी के प्रकार, सूर्य की रोशनी जैसे कारकों भी शामिल किया गया, जिसमें अमरीका की 580 और मध्य यूरोपीय 216 नदियों के आंकड़े थे। पे स्टेट की अध्यक्षता में अमरीकी शोधकर्ताओं द्वारा दुनियाभर की 796 नदियों का अध्ययन करने पर पाया गया कि उनमें से 87 प्रतिशत नदियां गर्म हो रही हैं और 70 प्रतिशत नदियों में ऑक्सीजन की कमी होने लगी है। अमरीकी शोधकर्ताओं के इस अध्ययन में कहा गया है कि अगले सात दशकों में विशेष रूप से अमरीका के दक्षिणी हिस्सों में नदियों के तंत्र में ऑक्सीजन इतनी कम हो जाएगी कि मछलियों की कुछ प्रजातियां तो पूरी तरह खत्म हो सकती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार गर्म होती जलवायु के कारण महासागर तो गर्म हो रहे हैं लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि बहने वाली उथली नदियों के साथ भी ऐसा ही हो रहा होगा। ओसियानिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक शहरी नदियां ज्यादा तेजी से गर्म हुई हैं जबकि कृषि वाली नदियां धीमी गति से गर्म हो रही हैं लेकिन वे तेजी से ऑक्सीजन गंवा रही हैं। इस अध्ययन के मुताबिक भविष्य में नदियों में ऑक्सीजन कम होने की दर पहले के समय में अवलोकित की गई दर के मुकाबले 1.6-2.5 गुना ज्यादा होगी।
‘नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट’ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में भी यह तथ्य सामने आया है कि चरम मौसम की घटनाओं के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है। वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा दुनियाभर की नदियों में पानी की गुणवत्ता पर किए गए इस शोध से पता चला कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण ये घटनाएं अधिक, लगातार और गंभीर होती जा रही हैं, पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य और सुरक्षित पानी तक लोगों की पहुंच तेजी से खतरे में पड़ सकती है। यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय के डा. मिशेल वैन व्लियेट के नेतृत्व में इस अध्ययन के दौरान सूखे, लू अथवा हीट वेव, भयंकर बारिश और बाढ़ जैसे चरम मौसम के साथ-साथ जलवायु में लंबी अवधि के बदलावों के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता में बदलाव के 965 मामलों का विश्लेषण किया गया। कुछ अध्ययनों में दुनियाभर की कई नदियों के पानी में इंसानों द्वारा प्रयोग की गई दवाओं से जुड़े हानिकारक तत्वों की बहुत बड़ी मात्रा में मौजूदगी पाई जा चुकी है। दवाओं से नदियों में होने वाले इस प्रदूषण से मछलियों के साथ-साथ अन्य जलीय जीवों के लिए भी खतरा बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नदियों में दवाओं के कारण बढ़ रहा यह प्रदूषण भी करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है।
भारत में नदियां न केवल हमारी आस्था, स्वास्थ्य और धर्म से जुड़ी हैं बल्कि पृथ्वी पर नदियां जीवनदायिनी भी हैं। धरती पर नदियां नहीं होती तो जीवन भी नहीं होता, इसलिए इनकी सुरक्षा, स्वच्छता और अविरलता सभी की जिम्मेदारी है और नदियों के प्रति विश्वभर में विशेष सतर्कता बरतने की नितांत आवश्यकता है लेकिन चिंता की बात है कि नदियों के प्रति हम न केवल व्यावहारिक रूप से बेहद उदासीन रूख अपनाए हुए हैं बल्कि इनमें हानिकारक रसायन, मल तथा सभी प्रकार की गंदगी उड़ेलकर इनकी बदहाली के बहुत बड़े कारण बन रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों की दशा खराब हो रही है तो उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। वैसे तो पृथ्वी के 71 प्रतिशत हिस्से में पानी है लेकिन उसमें से 97.3 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं होकर खारा है जबकि बाकी 2.7 प्रतिशत मीठा पानी हमें नदियों, झीलों, तालाबों जैसे संसाधनों से ही प्राप्त होता है। नदियां इंसानों सहित अनेक प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बेहद ज़रूरी हैं, इसलिए इन्हें नज़रअंदाज करने के बजाय नदियों का सम्मान करते हुए इनकी पवित्रता और उपयोगिता बनाए रखने के लिए इन्हें संरक्षित करने और इनकी दशा सुधारने के प्रयास गंभीरता से करने होंगे।

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