खतरनाक है भारत-चीन सीमा पर गतिरोध का जारी रहना

पिछले कुछ माह के दौरान भारत और चीन के बीच अनेक राजनीतिक व राजनयिक वार्ताएं हुई हैं, जिनसे यह संभावना बढ़ी है कि पूर्वी लद्दाख में जो सैन्य टकराव की स्थिति बनी हुई है, उसे खत्म या कम करने का कोई रास्ता निकल सकता है। रक्षा व्यवस्था के टॉप सूत्र इस बात को तो स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक-डिप्लोमेटिक वार्ताओं से ‘मतभेदों को कम करने व इस संदर्भ में प्रगति’ के कुछ संकेत अवश्य मिले हैं, लेकिन उनका कहना है कि ‘ज़मीनी स्तर पर पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ विश्वास का अभाव गहरा है और वह बढ़ता ही जा रहा है’। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत लगातार पांचवें जाड़ों में भरपूर फौज की तैनाती की तैयारियों में जुटा है। पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश-सिक्किम के कठिन सरहद में हमारी सेना मोर्चाबंदी के लिए पूरी क्षमता से तैयारी कर रही है। 
गौरतलब है कि 31 जुलाई व 29 अगस्त 2024 को भारत-चीन सीमा मामलों पर डब्लूएमसीसी (परामर्श व समन्वय के लिए कार्य तंत्र) की 30वीं व 31वीं बैठकें हुई थीं। इसके बाद सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन की साइडलाइन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बैठक हुई। यहां यह याद दिलाना भी आवश्यक है कि भारत व चीन के सैन्य कोर कमांडरों के बीच 21वें चक्र की वार्ता 19 फरवरी को हुई थी और इसमें भी पिछली 20 वार्ताओं की तरह कोई खास प्रगति नहीं हुई थी बल्कि गतिरोध ही बना रहा था। इसके बाद कोर कमांडरों के बीच अब तक किसी वार्ता का न होना यह संकेत दे रहा है कि सैन्य वार्ताओं से कोई नतीजा निकलने नहीं जा रहा है। संभवत: यही कारण है कि अब राजनीतिक व डिप्लोमेटिक वार्ताओं से कोई रास्ता निकालने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन ज़मीन पर जो हकीकत है उससे अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। 
जिस तरह से चीन अपनी अग्रिम सैन्य पोजीशन को मज़बूत करता जा रहा है और 3,488 किमी लम्बी एलएसी पर स्थायी रक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता जा रहा है, उससे एकदम स्पष्ट है कि पीएलए निकट भविष्य में शांति के समय की लोकेशन पर नहीं लौटेगी। गर्मियों से जाड़ों के पोस्चर में परिवर्तित होते हुए भारतीय सेना भी जाड़ों के लिए विशाल बंदोबस्त कर रही है और सीमा पर आगे की तरफ अतिरिक्त फौज तैनात कर रही है। गंगटोक (सिक्किम) में 9-10 अक्तूबर को होने वाली बैठक में जनरल उपेन्द्र द्विवेदी और सेना की सातवीं कमांड के कमांडर्स-इन-चीफ ऑप्रेशनल स्थिति की समीक्षा करेंगे। दरअसल, कोर कमांडरों की बैठकों में गतिरोध मुख्यत: इस वजह से बना हुआ है कि चीन टकराव के दो मुख्य स्थलों के संदर्भ में भारत के सही व तार्किक दावों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इन दोनों स्थलों का स्ट्रेटेजी के हिसाब से बहुत अधिक महत्व है। एक है देपसांग मैदान जोकि भारत के जम्मू-कश्मीर के पूर्वी भाग में लद्दाख क्षेत्र और चीन-अधिकृत अक्साई चीन क्षेत्र की सीमा पर स्थित एक ऊंचा मैदानी इलाका है। दूसरा है देमचोक के निकट चार्डिंग निंगलंग नाला ट्रैक जंक्शन। चार्डिंग नाला, जिसे पारम्परिक रूप से ल्हारी धारा के रूप में जाना जाता है और चीन द्वारा डेमचोक नदी कहा जाता है, एक छोटी नदी है जो चरिग ला दर्रे के पास से निकलती है। यह दोनों देशों की सीमा पर भी है और सिंधु नदी में शामिल होने के लिए उत्तर-पूर्व की ओर बहती है। 
अगर डेपसांग व डेमचोक पर डिसइंगेजमेंट (फौजों का पीछे हटकर इलाके को खाली कर देना) हो भी जाता है तो भी यह टकराव को कम करने के सिलसिले में पहला ही कदम होगा। इसके बाद जब तक फौजों के बीच डी-एस्कॉलेशन (तनाव की स्थिति को कम करना या युद्ध की स्थिति को टालना) डी-इंडक्शन (फौज की तैनाती में वृद्धि न करना) नहीं होता है, तनाव उत्पन्न होने से पहले की यथास्थिति को पुन:स्थापित करने के लिए तब तक खतरा बना रहेगा। सिले में बात आगे बढ़ती हुई नज़र नहीं आ रही है; क्योंकि भाजपा नेता सुब्रह्मणियम स्वामी के अनुसार चीन ने भारत की 4064 वर्ग किमी भूमि पर कब्ज़ा किया हुआ है। केंद्र सरकार का कहना है कि भारत की ‘एक इंच जमींन भी चीन ने नहीं कब्जाई है’। स्वामी ने यह जानने के लिए कि भारत की कितनी भूमि चीन के कब्ज़े में है, गृह मंत्रालय से नवम्बर 2022 में आरटीआई के ज़रिये जवाब मांगा था। जवाब न मिलने पर स्वामी ने 9 अक्तूबर 2023 को इस संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। सरकार, स्वामी के अनुसार, इस याचिका का विरोध कर रही है। ध्यान रहे कि भारत और चीन के बीच 5 मई, 2020 से हालात खराब चल रहे हैं, जब पूर्वी लद्दाख में (45 वर्षों में पहली बार) हाथापाई में दोनों तरफ के सैनिक मारे गये थे। भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे। चीन ने मारे गये अपने सैनिकों की संख्या कभी ज़ाहिर नहीं की, लेकिन अखबारी रिपोर्टों में 40 से अधिक बतायी गई है।
बहरहाल, गलवान घाटी, पांगोंग त्सो-कैलाश रेंज और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में सितम्बर 2022 तक जो सैनिकों के डिसइंगेजमेंट के बाद बफर ज़ोन बनाये गये थे और डेपसांग व डेमचोक में जो टकराव हुआ था, उसका अर्थ यह है कि भारतीय सेना अपने 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से 28 तक नहीं जा सकती, जोकि उत्तर में काराकोरम पास से शुरू होकर पूर्वी लद्दाख में चुमार तक जाते हैं। हालांकि बफर ज़ोन अस्थायी व्यवस्था हैं, लेकिन चीन निरंतर अतार्किक मांग करता जा रहा है और वह प्रतीक्षा का लम्बा खेल खेल रहा है। विशेषज्ञों का यह कहना है कि भारत को सावधान रहना चाहिए ताकि वह चीन के जाल में फंसा रहने से बचा रहे। हां, इस बात का एहसास अवश्य है कि अगर सैन्य गतिरोध जारी रहता है तो उसे तोड़ने का एकमात्र रास्ता यही है कि राजनीतिक व डिप्लोमेटिक प्रयासों से कोई रास्ता निकल आयेगा। पर्याप्त रिज़र्व बल के साथ ही फौज को रि-एडजस्ट किया जा रहा है और एलएसी के हर सेक्शन पर लोजिस्टिक्स पर भी फोकस किया जा रहा है ताकि किसी भी आपात स्थिति का जमकर मुकाबला किया जा सके।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर