नई शुरुआत

हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के परिणामों का देश भर में बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा था, जिनकी घोषणा देर सायं चुनाव आयोग की ओर से कर दी गई। हरियाणा में जहां भाजपा ने आश्चर्यजनक ढंग से जीत की हैट्रिक लगाई, वहीं जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष के बाद हुये विधानसभा चुनावों में ‘इंडिया’ गठबंधन ने भारी जीत दर्ज की है। इसी वर्ष दो अन्य राज्यों झारखंड एवं महाराष्ट्र में भी चुनाव होने जा रहे हैं तथा आगामी वर्ष फरवरी में दिल्ली एवं उसके बाद बिहार में भी चुनाव होंगे, जिन पर हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के आये परिणामों का किसी न किसी रूप में ज़रूर प्रभाव पड़ेगा।
चुनावों से पहले हरियाणा में यह प्रभाव बना रहा था कि इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी है। इसके कई कारण गिनाये जा रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार प्रदेश में प्रशासन चलाती आ रही थी। 10 वर्ष की लम्बी अवधि के बाद भारी संख्या में लोगों का सरकार से मोह-भंग हो जाना स्वाभाविक होता है, क्योंकि इस समय में ज्यादातर लोगों की उम्मीदों को बूर नहीं पड़ा होता। यहां पहली पारी में भाजपा ने अपने दम पर प्रशासन चलाया था। दूसरी पारी में इसे बहुमत नहीं मिला था। इसलिए इसने दुष्यन्त चौटाला की जे.जे.पी. (जननायक जनता पार्टी) जिसे विधानसभा में 10 सीटें मिली थीं, के साथ मिल कर सरकारी चलाई परन्तु अंतिम समय में उससे भी इसने अलगाव पैदा कर लिया था। लगभग 7 मास का समय शेष रहते भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर  के स्थान पर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी, जिन्होंने नये मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद ग्रहण करते ही 7 मास की अवधि में अपनी कार्य-योग्यता से अच्छा प्रभाव बना लिया था। भाजपा से भारी संख्या में किसान सन्तुष्ट नहीं थे। केन्द्र की अग्निवीर योजना का भी यहां भारी प्रभाव देखा जाता था। हरियाणा के पहलवानों ने भी लम्बी अवधि तक केन्द्र सरकार के विरुद्ध झंडा उठाये रखा था, जिसका प्रदेश में प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता था। 
पिछले लोकसभा चुनावों में भी हरियाणा कांग्रेस ने 10 में से 5 सीटें जीत ली थीं जबकि इससे पहले इन सभी सीटों पर भाजपा का ही कब्ज़ा था। इसी कारण इन विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस नेता बड़े विश्वास से विचरण कर रहे थे परन्तु इसके साथ ही उनकी आंतरिक फूट ने भी इन चुनावों में अपना गहन प्रभाव दिखाया है। हरियाणा में जातिवाद का बोलबाला है। इन चुनावों में जहां कांग्रेस ने अपनी बडी टेक जाट वोटों पर ही केन्द्रित रखी हुई थी, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने अन्य अनेक पिछड़ी श्रेणियों को अपने चुनाव अभियान का आधार बनाया हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चाहे लगातार इन चुनावों में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी परन्तु इस बार उनकी रैलियां कम हुई थीं, परन्तु इस सब कुछ के बावजूद भाजपा की इन चुनावों में सफलता आश्चर्यचकित करने वाली ज़रूर कही जा सकती है।
उधर जम्मू-कश्मीर के चुनावों में विशेष धारा 370 को खत्म करना, केन्द्रीय शासित घोषित इस क्षेत्र को राज्य का दर्जा देना, आतंकवाद, बेरोज़गारी एवं विकास के मुद्दे उभर कर सामने आए थे। इन चुनावों में नैशनल कान्फ्रैंस तथा कांग्रेस के गठबंधन के जीतने की पहले ही सम्भावना बनी दिखाई देती थी परन्तु भारतीय जनता पार्टी ने भी इन चुनावों में बड़े ही योजनाबद्ध ढंग से मुकाबला किया, जिस कारण वह पार्टी स्तर पर दूसरे स्थान पर रही है। जम्मू-कश्मीर की बेरोज़गारी के अतिरिक्त कुछ समस्याएं अलग तरह की भी हैं। इसके समक्ष बड़ी चुनौतियां खड़ी दिखाई देती हैं, परन्तु अब हुए राजनीतिक बदलाव से यह उम्मीद ज़रूर की जा सकती है कि यह हालात को और सुधारने में सहायक होगा। नि:संदेह इन चुनावों का राष्ट्रीय स्तर पर भी भारी प्रभाव पड़ता देखा जा सकेगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द