अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व विजयदशमी

दशहरा अथवा विजयदशमी हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसी दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी ने अधर्म व बुराई के प्रतीक दस सिर वाले लंका के राजा रावण का वध किया था। इसी दिन देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार करने वाले महिषासुर का 10 दिन तक चले भयंकर युद्ध के बाद मां दुर्गा ने संहार किया था। इसीलिये इसको विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। इस वर्ष यह पर्व 12 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं। इस दिन शस्त्र-पूजा भी की जाती है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। देश में अनेक स्थानों पर राम लीला का मंचन होता है। लगभग दस दिन से आयोजित हो रही रामलीला का समापन होता है। रावण, कुम्भकर्ण व मेघनाद के विशाल पुतले बनाकर उन्हें जलाया जाता है। 
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक व शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो, इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में फसल उगाकर अनाज घर लाता है, तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के लिये वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए उनका पूजन करता है। भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है।
दशहरा शब्द हिंदी के दो शब्दों दस और हारा से मिलकर बना है। यहां दस गणित के अंक दस (10) और हारा शब्द पराजय का सूचक है। इसलिए यदि इन दो शब्दों को जोड़ दिया जाए तो दशहरा बनता है, जो उस दिन का प्रतीक है जब दस सिर वाले दुष्ट रावण को भगवान राम ने हराया था। दशहरा अथवा विजयदशमी पर्व को भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए या दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन का दिन है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है।
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की ही भांति यहां भी दस दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। स्त्रियां और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर ढोल, नगाड़े, बांसुरी आदि वाद्य यंत्रों को लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूमधाम से शोभायात्रा निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नाटी नृत्य करते हैं। इस प्रकार नगर के मुख्य भागों से होते हुए ये देवता नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथ जी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है।
कर्नाटक में मैसूर का दशहरा भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का शृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमाला से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारम्परिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं व मैदानों में मेले लगते हैं।
महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए पूजा करते हैं। किसी भी चीज़ को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। 
छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को श्री राम की रावण पर विजय न मानकर लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं जो दुर्गा का ही रूप हैं। यहां यह पर्व पूरे 75 दिन चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। बस्तर में यह समारोह लगभग 15वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। इसका समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाई पर्व से होता है।
बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। यह बंगालियों, ओडिया और असमिया लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। बंगाल में दशहरा पूरे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। ओडिशा और असम में चार दिन तक त्योहार चलता है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को बुलवा कर दुर्गा की मूर्तियां तैयार करवाई जाती हैं। इसके साथ अन्य देवी देवताओं की भी कई मूर्तियां बनाई जाती हैं।
यहां दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं। इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर लगाती हैं व सिंदूर से खेलती हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। अंत में देवी प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। मूर्ति विसर्जन यात्रा बड़ी दर्शनीय होती है। गुजरात में मिट्टी से सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रख कर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को भी शुभ माना जाता है।
कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक उपवास करते हैं। तमिलनाडू, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियों लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी  का पूजन होता है। अगले तीन दिन कला और विद्या की देवी सरस्वती की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन शक्ति की देवी दुर्गा की स्तुति की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है। लोग एक-दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए भी शुभ समय होता है।
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