आज भी बेहद प्रासंगिक हैं गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं
आज प्रकाशोत्सव पर विशेष
साढ़े पांच शताब्दियां गुजर जाने के बाद भी श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं आज किसी धर्म विशेष के अनुयायियों के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बेहद प्रासंगिक हैं। बाबा गुरु नानक जी की शिक्षाएं आज भी इतनी तरोताजा हैं कि उन्हें सुनकर लगता ही नहीं कि ये सदियों पहले की शिक्षाएं हैं। इससे पता चलता है कि गुरु नानक देव जी कितनी दूर तक की सोचते थे। 15 अप्रैल, 1469 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन वर्तमान पाकिस्तान में स्थित ननकाना साहिब (पुराना नाम राय भोई की तलवंडी) में उनका जन्म खत्री परिवार में हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता देवी तथा पिता का नाम मेहता कालूचंद था। उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम नानकी था। बचपन से ही गुरु नानक इतने प्रखर बुद्धि के थे कि सांसारिक विषयों में उनका मन नहीं लगता था। यही वजह है कि जब वह 7-8 साल के ही थे कि उनसे स्कूल छूट गया।
बचपन से ही साधु-संतों की संगति से सुख पाने वाले गुरु नानक देव जी की 16 साल की उम्र में बीबी सुलक्खनी से शादी हो गई थी। 32 वर्ष की अवस्था में गुरु नानक देव जी के प्रथम पुत्र श्रीचंद्र का और 4 साल बाद उनके दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। सन् 1507 में गुरु नानक देव अपने साथियों भाई मरदाना और भाई बाला के साथ तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक देव अपने साथियों के साथ चारों तरफ घूमकर उपदेश देने लगे। सन् 1521 तक उन्होंने चार उदासियां पूरी कीं, जिसके तहत उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब जगत के मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। अपनी पहली उदासी के तहत गुरु नानक देव जी ने सन् 1500 से 1506 तक पंजाब के पूर्वी हिस्से सुल्तानपुर से शुरू करके पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, पटना, पुरी, असम, ढाका और फिर वापस पंजाब की यात्रा की, जबकि दूसरी उदासी सन् 1506 से 1513 तक में उन्होंने पंजाब से शुरू करके राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, श्रीलंका की यात्रा पूरी करके फिर उत्तर पंजाब को लौटे।
अपनी इस दूसरी उदासी के चलते गुरु नानक देव जी ने देश के जिन प्रमुख जगहों पर पड़ाव डाला, उनमें अजमेर, सोमनाथ, द्वारका, नादेड़, बीदर, रामेश्वरम, जाफना और पुट्टलम थे। गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी सन् 1514 से 1518 में पूरी की, जिसमें उन्होंने कश्मीर, नेपाल, ताशकंद, तिब्बत और लद्दाख की यात्रा करके सुमेरू पर्वत तथा कैलाश मानसरोवर भी गये। इस यात्रा के मुख्य पड़ाव थे श्रीनगर, लेह, काठमांडू, उज्बेकिस्तान, मानसरोवर और वापस पंजाब। अपनी चौथी और आखिरी उदासी के तहत उन्होंने सन् 1519 से 1521 तक काबुल, बगदाद, मक्का और मदीना की यात्राएं कीं। इस उदासी में उनके मुख्य पड़ाव थे पेशावर, काबुल, बगदाद, मक्का, मदीना और फिर बगदाद से वापस पंजाब। गुरु नानक देव जी की ये चारों उदासियां या यात्राएं अद्वितीय थीं। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने जो उपदेश दिए, वो आज भी बेहद प्रासंगिक हैं। इन यात्राओं के दौरान उनके उपदेशों और शिक्षाओं को इन 8 प्रमुख उपदेशों से जाना जा सकता है जो कि इस प्रकार थे-
= गुरु नानक देव जी ने मनुष्य की एकता और समानता का संदेश दिया। उन्होंने कहा, सभी धर्म बराबर हैं और धरती के सभी मनुष्य समान हैं।
= गुरु नानक देव जी ने स्त्री सम्मान और उनके अधिकारों की बात की। कल्पना करिये, साढ़े पांच सौ साल पहले जब दुनिया के किसी भी देश में आधुनिक लोकतंत्र नहीं था, तब गुरु नानक देव स्त्रियों के सम्मान और उनके अधिकाराें की बात करते थे।
= इन यात्राओं के दौरान उन्होंने किरत और कर्मयोग का संदेश दिया। उनका मानना था कि हर इन्सान को मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए।
= उन्होंने हमेशा साधारण जीवन और उच्च विचार का उपदेश दिया। गुरु नानक देव जी सादगी और नम्रता को मनुष्य मात्र के लिए बहुमूल्य समझते थे।
= प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गुरु नानक देव जी ने लोगों को संवेदनशीलता का उपदेश दिया। वो हमेशा कहते थे, प्रकृति ईश्वर का रूप है।
= गुरु नानक देव जी ने अपनी इन यात्राओं के दौरान धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय की शिक्षा दी। गुरु नानक देव जी सभी धर्मों के अनुयायियों के बीच हमेशा एकता स्थापित करने का प्रयास किया।
= बाबा गुरु नानक देव ने अपनी इन उदासियों के दौरान समाज की कुरीतियों के खिलाफ लोगों को खड़े होने और समाज सुधार की प्रेरणा दी।
= गुरु नानक देव जी ने हमेशा लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने का आग्रह किया, क्योंकि वह कहते थे, सच्चाई और ईमानदारी का ही जीवन में सबसे अधिक महत्व है।
इस तरह देखें तो गुरु नानक देव जी ने साढ़े पांच सदी पहले लोगों को जिस एकता, सहिष्णुता और मानवता के उपदेश दिये थे, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने तब थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर