प्रदूषण की महामारी
प्रदूषण के मामले पर एक बार फिर देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं। उसने दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब की सरकारों को इसके लिए अपने रोष का निशाना बनाया है। दो भिन्न-भिन्न मामलों में न्यायाधीशों की अलग-अलग पीठों ने लगभग एक ही बात कही है कि इसके लिए संबंधित सरकारें ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने पूरी तरह से अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं किया। इसीलिए दिल्ली सहित इस समूचे क्षेत्र का प्रदूषण इस सीमा तक बढ़ गया है जिसमें जन-साधारण के लिए सांस लेना भी कठिन हो गया है।
न्यायालयों ने यह भी कहा कि प्रदूषण के संबंध में बनाये गये कानूनों पर कोई क्रियान्वयन नहीं किया गया तथा न ही इनकी परवाह की गई है। एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने चलाये जाते पटाखों का ज़िक्र किया है तथा दूसरे में पराली के अवशेष को जलाये जाने संबंधी टिप्पणियां की हैं। पटाखों संबंधी तो न्यायालय ने दिल्ली एवं पड़ोसी प्रदेशों में इन्हें पूर्ण रूप से बंद करने की बात की है तथा यह भी कहा है कि इनको बनाने, बेचने, जमा करने तथा चलाने पर सख्ती से पाबन्दी लगा दी जानी चाहिए। इस संबंध में अदालत ने दिलचस्प टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई भी धर्म इस तरह की गतिविधियों को उत्साहित नहीं करता, जिनसे प्रदूषण पैदा होता हो। यदि आतिशबाज़ी, बम आदि इस प्रकार चलाये जाएंगे तो यह शहर निवासियों के स्वास्थ्य संबंधी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा तथा साथ ही यह भी कहा कि 25 नवम्बर तक इस मामले के संबंध में सभी पक्षों के साथ विचार करके दिल्ली में इन पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला किया जाये।
पराली जलाने संबंधी प्रदेशों को कड़ी फटकार लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि लगातार सामने आ रही इन घटनाओं के दृष्टिगत सरकारों की ओर से सिर्फ नोटिस जारी करके ही समय निकाल दिया गया है। न ही पराली जलाने वालों पर तथा न ही इससे संबंधित अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की गई है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पंजाब में पराली जलाने के अब तक 7029 मामले सामने आये हैं। प्रदेश के ज्यादातर भाग प्रदूषणग्रस्त हो गए हैं। बड़ी-छोटी सड़कों पर दिखाई देना कम हो गया है।
अकेले अमृतसर ज़िले में ही इस बार पराली-अवशेषों को आग लगाने के 643 मामले सामने आये हैं। मंडी गोबिन्दगढ़ में वायु गुणवत्ता सबसे खराब दर्ज की गई है, जहां ए.क्यू.आई. 241 के स्तर पर पहुंच चुका है। इसी तरह जालन्धर में 217 तथा लुधियाना में वायु-गुणवत्ता का सूचकांक 203 तक पहुंच चुका है। इस संबंध में पिछले एक दशक से संबंधित राज्य सरकारें योजनाबंदी करती रही हैं। तरह-तरह की मशीनें किसानों को उपलब्ध करवाने के लिए भी अब तक अरबों रुपये खर्च किये जा चुके हैं परन्तु वे सफल नहीं हो सकीं तथा न ही इस संबंध में उन्हें लोगों की ओर से पूर्ण सहयोग ही मिला है। प्रदूषण के बेहद खराब होने के मामले में पानी सिर के ऊपर से निकल गया है, जिस कारण न्यायालय भी पूरी तरह चिन्तित दिखाई देती हैं। इसलिए सभी संबंधित पक्षों को अपने कर्त्तव्यों को पहचानते हुए फैली इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए अपना-अपना योगदान डालना चाहिए
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द