पंजाब कला परिषद, एम.एस. रंधावा तथा कुछ अन्य

जुलाई 1981 में स्थापित हुई पंजाब कला परिषद के प्रथम तथा प्रमुख कर्ता-धर्ता महेन्द्र सिंह रंधावा थे। उन्होंने इसे चंडीगढ़ के रोज़ गार्डन में स्थापित किया और केन्द्र सरकार के पैट्रन पर इसकी तीन शाखाओं के माध्यम से राज्य की साहित्य संस्कृति की निशानदेही के उस कार्य को आगे बढ़ाया जिसे 20वीं सदी के भाई वीर सिंह, गुरबख्श सिंह, नोरा रिचर्ड तथा मुलक राज आनंद ने शुरू किया था। इस बड़े कार्य में उनका साथ देने वालों में मुलक राज आनंद तथा गुरबख्श सिंह के अतिरिक्त करतार सिंह दुग्गल तथा कुलवंत सिंह विर्क भी थे। नई दिल्ली में नौकरी करते दास को आमंत्रित करना उसकी मेरे प्रति उदारता का परिणाम था। 
गत 45 वर्षों में इसके आंगन में चित्र कला की प्रदर्शनियां लगीं, साहित्य एवं संस्कृति के सैमीनार एवं गोष्ठियां हुईं और नाटकों का मंचन हुआ। प्रत्येक वर्ष फरवरी माह एम.एस. रंधावा उत्सव मनाने सहित। इसकी कार्यकारिणी तथा जनरल कौंसिल में पंजाब सरकार के संबंधित अधिकारियों तथा चार विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों का शामिल होना इसका आत्म प्रवाह बनाए रखता है।
वर्तमान में घटित कुछ अदृश्य स्थितियों के कारण इसमें सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया है, जिसने चार माह इसे अपने पांवों पर खड़ा नहीं होने दिया। देर आयद दुरुस्त आयद। अब इसकी कमान नये तथा उत्साही हाथों में चले जाने के कारण सकारात्मक परिणामों की उम्मीद बंध गई है। लुधियाना से स्वर्णजीत सवी, नई दिल्ली से डा. रवेल सिंह, अमृतसर से डा. आत्म सिंह रंधावा, ग्रेटर नोएडा से डा. प्रेम सिंह तथा चंडीगढ़ के कुछ प्रसिद्ध चेहरे इसे नई दिशाएं देने तथाल इसकी स्वायत्तता बनाए रखने के योग्य हैं। आशा की जा रही है कि जल्द ही इसकी गतिविधियां रफ्तार पकड़ लेंगी। चाहे मेरी आयु तथा कम हो रही कार्यकुश्लता अधिक योगदान देने के राह में बाधा है, परन्तु समय-समय पर ज़रूरत के अनुसार मैं भी अपना सहयोग देता रहूंगा। इसलिए कि यह पौधा पंजाबी सभ्याचार के शाहजहां के रूप में जाने जाते महिन्द्र सिंह रंधावा ने लगाया है और इसकी छाया में भावी पीढ़ियों ने बैठना और बढ़ना-फूलना है। 
भारत-मालदीव मित्रता का लेखा-जोखा
यह अच्छी बात है कि 11 माह पहले इंडिया आऊट (भारतीयो भागो) का नारा लगा कर जीते मालदीव के नये राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज्ज़ू तथा इंदिरा गांधी की पड़ोसी द्वीपों के प्रति सोच तथा नीति की आलोचना करने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक मंच पर एकट्ठे हुए हैं। उनकी ओर से लाखों करोड़ों की करंसी वाले आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पांच समझौते आवाजाही, स्वस्थ्य सुविधाएं, आर्थिक विकास, आपसी कानूनी प्रक्रिया, युवा निर्माण तथा खेल कार्यों को आगे बढ़ाएंगे। 
400 मील लम्बे तथा 80 मील चौढ़े इन समुद्री द्वीपों का भौगोलिक, एतिहासिक एवं सांस्कृतिक व्यवहार पर्यटन की सुविधाओं तथा मछली की बिक्री से संबंध रखता है। यह जान कर हैरान न होना कि उन द्वीपों में मानव जाति के अतिरिक्त कोई बड़ा सांस लेने वाला जानवर नहीं। चूहे से बड़ा कोई जानवर भी नहीं। वहां के निवासियों को यदि यह बताना हो कि हाथी कैसा तथा कितना बड़ा होता है, तो चूहे के अंगों को लाखों करोड़ों से गुणा करके समझाना पड़ता है। 
निश्चय ही इस छोटे से देश के लिए लाखों करोड़ों की विदेशी मुद्रा बड़े अर्थ रखती है, विशेषकर सुरक्षा तथा इमारतों के निर्माण के पक्ष से। भारत के लिए मालदीव देश कितना भी छोटा क्यों न हो, इसका भारत के लिए अनेक पक्षों से बड़ा महत्व है। मेरे पास इसे सही ठहराने का आधार यह भी है कि मैं 1976 की गर्मियों का डेढ़ माह वहीं रह कर आया था, जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी जाना है। मैं वहां के अच्छे-बुरे का चश्मदीद गवाह हूं। लोग बड़े मेल-मिलाप वाले हैं और चारों ओर सागर की लहरें हैं। 
जाते-जाते इस देश की परम्पराओं के बारे में बताने का मन बन गया है। विगत समय में यदि कोई सामान से भरा समुद्री जहाज़ इस देश के किसी द्वीप से टकरा कर नष्ट हो जाता था तो उसका सारा सामान मालदीव पर शासन कर रहे सुल्तान का हो जाता था। 16वीं सदी में एक फ्रांसीसी जहाज़ इस प्रकार की दुर्घटना का शिकार हुआ था तो उसका सामान मालदीव निवासियों ने लूट लिया और लोगों की मलेरिया रोग हो जाने से मौत हो गई थी। उनमें पायरार्ड नामक एक डाक्टर भी था जिसने स्वयं को बचा लिया और वहां का निवासी हो गया। वहां रहते हुए उसने वहां की भाषा भी सीख ली और वहीं के पुरुष-महिलाओं में भी मिल-जुल गया। यहां तक कि सुल्तान की बेगम से भी मिलता-जुलता रहा। फिर जब वह अपने देश लौटा तो उसने मालदीव के रस्म-रिवाज़ तथा जीवन के बारे जो यात्रा वृत्तांत लिखा, वह तीन जिल्दों में प्रकाशित हुआ। वह इतना रोचक एवं अनूठा है कि इसने पूरा डेढ़ माह मुझे व्यस्त रखा। इसकी कुछ बातें मेरी पुस्तक ‘25 मुल्क 74 गल्लां’ में दर्ज हैं जो नवयुग प्रकाशन दिल्ली ने 2003 में प्रकाशित की थी। 
हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर के चुनावों का संदेश 
अब जब कि हरियाणा में भाजपा की सरकार तीसरी बार बननी निश्चत है और जम्मू-कश्मीर में नैशनल कांफ्रैंस तथा कांग्रेस चिरकाल से असमंजस में पड़ी जम्मू-कश्मीर की जनता को उनकी पसंद वाली राजनीति देने जे रहे हैं तो भूत की बजाय भविष्य की बात करना ही ठीक रहेगा। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर नायब सिंह सैनी की आमद ने ऐसा उत्साह भरा, जिसे कांग्रेस पार्टी नहीं रोक सकी। उधर जम्मू-कश्मीर के निवासियों ने भी शांतिपूर्ण ढंग से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करके नई पहल की है।
 उनके लिए केन्द्रीय शासित प्रदेश के स्थान पर राज्य के निवासी होना इतना अहम हो गया कि उन्होंने हिंसा को त्याग कर अपने पांवों पर खड़े होने को प्राथमिकता दी। इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों का संदेश यह भी है कि ‘बुड्ढ़ी ते वेला वहाय चुकी’ धारणा की बजाय नई तथा नये मार्ग पर चलने की भावना ही उज्ज्वल भविष्य का सृजन करती है, अन्य कोई नहीं। 
अंतिका 
(गुरचरण सिंह राही)
अंदर वेखिया बाहर वेखिया
हर थां वेखिया तैनूं
जल ’च वेखिया थल ’च वेखिया
तूं हर थां दिसिया मैनूं 
तेरी हस्ती तों जो मुनकर 
ओह है अन्नाह बोला
कण कण दे विच्च वसिया होया
इक तूं ही दिसिया मैनूं।