किसान वर्ग की बेचैनी

विगत दिनों पंजाब भर में किसानों द्वारा धान के मंडीकरण की मुश्किलों को लेकर  कुछ घंटों के लिए मुख्य मार्गों को रोका गया था, जिससे लाखों ही वाहनों और यात्रियों को बहुत परेशानी में से गुज़रना पड़ा। दूसरी तरफ लगभग 8 माह से दो किसान संगठन अपनी मांगों के लिए पंजाब-हरियाणा की सीमाओं पर बैठे हैं। हरियाणा सरकार ने किसानों को ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली जाने से रोकने के लिए सख्त पाबंदियां लगाई हुई हैं और रास्ते बंद किए हुए हैं, जिसके कारण अब तक करोड़ों ही वाहन और यात्री मुख्य रास्ते बंद होने के कारण बहुत परेशानी में से गुज़र रहे हैं। लोगों में इस कारण किसानों के प्रति भी नाराज़गी बढ़ती जा रही है लेकिन किसान इस सब कुछ के लिए हरियाणा और केन्द्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। अब धान के मंडीकरण के घटिया प्रबंधों के कारण भी बड़ी संख्या में किसान बहुत दुविधा और बेचैनी में फंसे नज़र आते हैं। 
मंडियों में धान की बिक्री जूं की तरह चल रही है। शैलरों वाले यह गिला कर रहे हैं कि पहले ही उनके गोदाम तैयार हुए चावलों के साथ भरे हुए हैं। केन्द्र सरकार द्वारा उनको निश्चित समय में उठाने की कार्रवाई यकीनी नहीं बनाई जा रही, इसलिए छंटाई हेतु और धान अपने गोदामों में लाने में वे असमर्थ हैं। पंजाब के गोदामों में गेहूं का भी काफी बड़ा स्टॉक पड़ा है। पंजाब सरकार इस मामले पर दिशाहीन हो चुकी है। उसको इस समूचे काम की देखभाल के लिए जो यत्न महीनों पहले करने चाहिए थे, तब वह इस गम्भीर मामले पर उदासीन बनी रही। केन्द्र सरकार से बातचीत की कमी के कारण यह मामला और भी उलझ गया है। प्रदेश सरकार पत्र लिखने तक ही सीमित रही, जबकि संबंधित मंत्रालय, मंत्रियों या मुख्यमंत्री द्वारा इस संबंधी बड़े तथा गम्भीर यत्न अग्रिम तौर पर किये जाने की ज़रूरत थी। प्रदेश के इस बेहद ज़रूरी काम के लिए सरकार के पास नीति तथा समय की कमी दिखाई देती रही। अब जाकर उसकी आंखें खुली प्रतीत होती हैं, परन्तु अब हालात अनियंत्रित होने शुरू हो गए हैं। किसान अपनी फसल की खरीद के लिए चिन्तित हैं। वे धरने लगाने तथा रोष प्रदर्शन करने लगे हुए हैं। उन्हें यह समझ नहीं आ रही कि वे किस प्रकार अपनी फसल बेचने के उपाय करें। केन्द्र सरकार के संबंधित मंत्रालय को अब तक पहले गोदामों में भरे अनाज को उठवाने के लिए जो आवश्यक यत्न करने चाहिए थे, वे उसने भी नहीं किए। किसान नेता इस हालत के लिए प्रदेश सरकार तथा केन्द्र सरकार दोनों को दोषी ठहरा रहे हैं। हालत यह बन गई है कि यदि आगामी दिनों में इस संबंध में यत्न तेज़ नहीं किए जाते तो किसानों को धान की फसल के मंडीकरण के लिए लम्बा इंतज़ार करना पड़ सकता है। वे इस संबंध में सरकार तथा पार्टियों से अप्रसन्न हैं। 
इसमें संदेह नहीं कि अब तक पंजाब की आर्थिकता का केन्द्र गेहूं तथा धान की फसलों का मंडीकरण ही रहा है, जिसने पंजाब की समूची आर्थिकता की मज़बूती के लिए अपना योगदान डाला है, परन्तु पहले यह समूची गतिविधि योजनाबद्ध ढंग से चलती रही है, जिसमें सभी पक्षों का ही योगदान रहा है। आज शैलर मालिक अपनी शिकायतें दर्शा रहे हैं। आढ़ती सरकार के साथ नाराज़ चल रहे हैं। यहां तक कि मंडियों में काम करते मज़दूर भी परेशान हो रहे हैं। मामला इस बार के धान का अवश्य है, परन्तु अब यह भी गम्भीरता से सोचने का समय आ गया है कि आगामी समय में बदलते हालात के अनुसार अपनी कृषि की दिशा तथा दशा को इस प्रकार सुधार लिया जाए कि फसलों के मंडीकरण में किसानों को कठिनाई न आए। मौजूदा समय में उत्पन्न हुए हालात किसान के भविष्य के लिए संकट का संकेत दे रहे हैं। पहले ही सख्त आर्थिक हालात में सें गुज़र रहे प्रदेश का अनिश्चित हो रहा भविष्य बेचैन करने वाला दिखाई दे रहा है। नि:संदेह इसे पंजाब के लिए अच्छा संदेश नहीं कहा जा सकता।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द