मधुमक्खियां पालना किसानों के लिए लाभदायक सहायक धंधा
चाहे पंजाब के किसानों ने कृषि के क्षेत्र में बहुत उपलब्धियां हासिल की हैं, परन्तु अब बढ़ रहे कृषि खर्च तथा कम हो रहे रकबे के कारण किसानों की स्थिति चिंताजनक है। ऐसी हालत में सहायक धंधे आशा की किरण पैदा करते हैं। मधु मक्खी पालन छोटे किसानों के लिए लाभदायक सहायक धंधा है। मौसम का अनुकूल होना, पूरा वर्ष फूलों का उपलब्ध होना, सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं व सब्सिडियां मधु मक्खी पालन धंधे को शुरू करने के लिए छोटे किसानों को उत्साहित करती हैं, क्योंकि इसे शुरू करने के लिए कम पूंजी की ज़रूरत है। मक्खियों से कोलन, शहद, रायल जैली, प्रपोलिस तथा मोम आदि प्राप्त होते हैं, जिसमें सबसे अधिक उत्पादन शहद का है। इस व्यवसाय को अपनाने के लिए हाथों से काम करने तथा प्रशिक्षण लेने के अतिरिक्त अच्छी गुणवत्ता के बक्से, उचित जगह का चयन, ताज़ा पानी का प्रबंध तथा आवश्यकता के अनुसार धूप तथा छाया उपलब्ध होनी चहिए। इस व्यवसाय को उत्साहित करने के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पी.ए.यू.) द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है और बागवानी विभाग के अधिकारियों द्वारा मूलभूत जानकारी दी जाती है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत बागवानी विभाग के माध्यम से 50 बक्सों के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी (80000 रुपये प्रति लाभपात्री तक) उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त हनी-बी मिशन के तहत 50 से 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। ज़िला स्तर पर बने के.वी.के. सैंटरों में भी 5 दिन का प्रशिक्षण उपलब्ध किया जाता है। किसान मेलों के दौरान भी पी.ए.यू. द्वारा स्टाल लगा कर किसानों को जानकारी उपलब्ध की जाती है। इन स्टालों पर मधु मक्खियां, मधु मक्खी पालन संबंधी तकनीकें तथा औज़ार प्रदर्शित किए जाते हैं।
मधु मक्खियां पालने का धंधा शुरू करने के लिए अक्तूबर-नवम्बर का समय बहुत अनुकूल है या फिर फरवरी-मार्च में उचित समय होता है। मधु मक्खियां पालने का व्यवसाय जहां बेरोज़गार व्यक्तियों को रोज़गार उपलब्ध करवाता है, वहीं किसानों के लिए भी बड़ा लाभदायक है। उनके लिए सहायक धंधा होने के अतिरिक्त खेतों में खड़ी फसलों जैसे फल, सब्ज़ियों, फूल आदि के उत्पादन में वृद्धि करता है, क्योंकि ये मक्खियां पर-प्रागण में मदद करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इससे 15 से 20 प्रतिशत उत्पादन अधिक होता है। अधिकतर किसान अपने खेतों में मक्खियों के बक्से रखते हैं ताकि फसलों को लाभ पहुंचे, परन्तु उन्हें दवाइयों के स्प्रे में सावधानी रखनी होगी और अपने खेतों में आग लगाने से गुरेज़ करना होगा। बढ़ी हुईं मधु मक्खियां बेच कर किसान आय प्राप्त कर सकते हैं। शहद को बोतलबंद करके परचून में भी बेच सकते हैं। शहद से अन्य बहुत-से खाद्य पदार्थ तैयार करके इस व्यवसाय से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
प्रोसैसिंग के ढंग व भंडारण के तरीके भी शहद की गुणवत्ता एवं पौष्टिकता पर प्रभाव डालते हैं। गुणवत्ता कायम रखने के लिए शहद को किसी भी वायु रोधक डिब्बे में डाल कर सूखे स्थान पर रखना चाहिए। शहद का इस्तेमाल कम से कम प्रोसैसिंग करके बेकरी, डेयरी आदि उत्पादों में स्वाद तथा मिठास के लिए किया जाता है।
बागवानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि तोरिया, राइया, सूरजमुखी, बाइम, कद्दू जाति, मक्की, बाजरा आदि फसलें शहद प्राप्ति के स्रोत हैं। पंजाब के मुख्य वृक्ष नींबू जाति, आड़ू, नाशपाती, लीची, अमरूद, बेर, सफैदा, टाहली, कड़ीपत्ता, बबूल, धरेक, सुहजन्ना, नीम, फलाही, खैर, कचनार, सरींह, अमल्तास, जामुन, अर्जुन भी शहद की प्राप्ति की अच्छे स्रोत हैं। इसके अतिरिक्त सजावटी पौधे टीकोमा, पीली कनेर, बुढेलिया, झुमका वेल, रुक मंजनी, रमेलिया, पैराइकसिटिया, कलुवर्शियम, ग्रेप फ्लावर वेल आदि भी एक अच्छे स्रोत हैं। डा. मान कहते हैं कि जिस समय पंजाब में फूलों की कमी हो जाती है या आग लगने आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है तो मक्खियों के पालक अन्य स्थानों पर मक्खियों की माइग्रेशन करते हैं जैसे जून, जुलाई, अगस्त में खैर का शहद प्राप्त करने के लिए मक्खियों के बक्से कंडी क्षेत्र, हिमाचल के नालागढ़, पद्दी, पंडोह तथा हरियाणा के मोहरी क्षेत्र में ले जाते हैं। अगस्त में बाजरे का शहद प्राप्त करने के लिए हरियाणा के चरखी दादरी, रिवाड़ी तथा राजस्थान के भरतपुर क्षेत्रों में ये बक्से ले जाते हैं। सितम्बर-अक्तूबर में बेरियों का शहद प्राप्त करने के लिए राजस्थान के बांद्रा, हनुमानगढ़ आदि में बक्से ले जाते हैं। नवम्बर में तोरिया का शहद प्राप्त करने के लिए हरियाणा के बरवाला, हिसार तथा राजस्थान के शाहजहानपुर तथा बीबी रानी के निकट बक्से ले जाते हैं।