विमान निर्माण का हब बनने की ओर अग्रसर भारत
अब देश में टाटा बनाएगा समूचा और बड़ा अत्याधुनिक सैन्य परिवहन विमान। रतन टाटा के प्रस्ताव और प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता से प्रारंभ होने वाली परियोजना, किसी निजी क्षेत्र द्वारा हवाई जहाज़ बनाने की यह परिघटना देश के पूरे वैमानिकी के परिदृश्य के बदल देगी 1960 में अपनी पहली उड़ान भरने और 1961 से भारतीय वायुसेना की सेवा में लगा ब्रिटेन और एचएएल निर्मित एवरो एचएस-748 अब धीरे-धीरे विदा लेगा, उसकी जगह ले रहा है, एयरबस का सी-295। एवरो-748 की 6 दशक से ज्यादा की शानदार और विविधतापूर्ण सेवाओं के कभी भुलाया नहीं जा सकता।
रूसी मालवाहक एंटोनोव एएन- 32 की भी जगह देर सवेर यही लेगा। 25 सितम्बर, 2023 को जब हिंडन एयर बेस पर पहला सी-295 विमान वायुसेना के 21 राइनो स्क्वाड्रन में शामिल किया गया तभी यह तय था कि आगे से हम ये विमान खुद बनाएंगे। अब गुजरात के वडोदरा में इसे बनाने लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड या टीएएसएल का प्लांट शुरू हो गया है। फिलहाल यह संयंत्र एयरबस डिफेंस एंड स्पेस कम्पनी के सहयोग से ऐसे 40 विमान बनाएगा। असल में 2012 में रतन टाटा ने इस दूरदर्शी परियोजना की परिकल्पना की थी। यह फलीभूत तब हुई जब भारत सरकार ने सितम्बर 2021 में स्पेन के साथ 56 सैन्य परिवहन विमान सी-295 खरीदने का सौदा 21,935 करोड़ रुपये में किया। तय हुआ था कि 16 विमान स्पेन के सेवले स्थित एयरबस कम्पनी हमें उड़ने के लिए तैयार हालत में देगी और बाकी 40 हम उसके सहयोग से खुद बनाएंगे। 2022 के अक्तूबर में इसके निर्माण हेतु इस संयंत्र की नींव पड़ी। अब प्रधानमंत्री के उद्घाटन के बाद जब रतन टाटा नहीं हैं, नोएल टाटा के नेतृत्व में कम्पनी देश में निजी क्षेत्र के पहला समूचा और अति उन्नत कार्गो हवाई जहाज़ बनाने के लिए कमर कस चुकी है। टीएएसएल अगस्त 2031 की आखीर तक वायुसेना को सभी 40 विमान बनाकर सौंप देगा। इसके बाद 25 बरसों तक भारतीय वायुसेना के इन विमानों की देखरेख का ठेका भी उसी ने ले रखा है। टीएएसएल और एयरबस मिलकर देश में दूसरे देशों के लिए विमान बनाएंगे। अब वे चाहे युद्धक हों या मालवाही अथवा भविष्य में यात्री विमान। इससे विमान निर्माण के क्षेत्र में बनने वाला परिदृश्य साबित करेगा कि ‘मेक इन इंडिया’ के साथ ‘मेड फॉर द ग्लोब’ और आत्मनिर्भर भारत के रास्ते पर हम तेज़ी से बढ़ चले हैं। जल्द ही यूरोपीय और अमरीकी वर्चस्व वाले एयरोस्पेस मार्केट में भारत एक मजबूत दखल रखेगा। विदेश से आयात पर निर्भरता कम होगी और देश में निर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा तो भविष्य में यहां से विमानों के निर्यात के अवसर बनेंगे। रक्षा निर्यात में भारत की स्थिति और मज़बूत बनेगी। दुनिया की बड़ी विमान कम्पनियों के लिए हम बहुत से कलपुर्जे बनाते ही हैं परन्तु इस नए विमान सी-295 के लिए 18 हज़ार कलपुर्जे यहीं बनेंगे और आगे चलकर यह घरेलू मांग बढ़ेगी तो नए कौशल और नए छोटे, मंझोले उद्योगों को फायदा पहुंचेगा। हम बोइंग से हर साल 1 अरब अमरीकी डॉलर की सेवा लेते हैं। इसमें से 60 फीसदी से अधिक विनिर्माण में खर्चते है, अब इसमें कमी आयेगी। कोशिश है कि देश उड्डयन और विमानों के रखरखाव व मरम्मत का केंद्र बन जाए। अब उम्मीद जगी है तो इस पहल के बाद रखरखाव की सुविधा के लिए भी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा, कलपुर्जों के लिए आपूर्ति श्रंखला तैयार होगी। हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी ढांचे का विकास होगा। मतलब यह शुरुआत मेंटीनेंस, रिपेयरिंग तथा संचालन यानी एमआरओ की सेवा देने में हमको आगे बढ़ाने वाला है। इन सबके बाद सस्ते श्रम और बेहतर तकनीक सहायता के लिए तमाम विदेशी कम्पनियां, संस्थान यहीं आयेंगे। आने वाले दो दशकों के भीतर ही देश को लगभग 2500 यात्री और मालवाहक विमानों की ज़रूरत होगी अगर हम आत्मनिर्भर बन गये तो सोचिए कितना लाभ होगा। बीते डेढ़ दशक में देश ने ऐसे अनेक फैसले लिए, जिससे भारत में एक वाइब्रेंट डिफैंस इंडस्ट्री का विकास सुनिश्चित हो सका है और निजी क्षेत्र की भागीदारी ने सरकारी उपक्रमों को प्रभावशाली बनाया। टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड का यह हवाई जहाज संयंत्र इसी का उदाहरण है।
इसका ‘मेड इन इंडिया’ और बहुउद्देशीय होना गेम चेंजर साबित होगा। हर मौसम में, रात दिन कभी भी, रेगिस्तान, पहाड़, समुद्र सभी जगह बहुमुखी प्रतिभा वाला विश्वसनीय सी-295, सामरिक परिवहन विमान अपनी भूमिकाएं निभा सकता है। यह तय है कि सी-295 का वायुसेना में समावेश देश की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण बढ़त देगा। इस विमान का परिचालन और रखरखाव सस्ता है सो इसे प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर