नोटबंदी से देश को क्या हासिल हुआ ?
‘मैंने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी का कदम उठाया है। मैं जानता हूं कि मैंने कैसी-कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ली है। मैं जानता हूं कि कैसे-कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे, वे मुझे बर्बाद कर देंगे, मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। आप ईमानदारी को बढ़ावा देने के काम में मेरी मदद कीजिए और सिर्फ 50 दिन का समय मुझे दीजिए।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने यह भाषण आठ साल पहले नोटबंदी लागू होने के पांचवें दिन यानी 13 नवम्बर, 2016 को दिया था। नोटबंदी के उनके फैसले की जब देश-दुनिया में व्यापक आलोचना हो रही थी और विशेषज्ञ उसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए विध्वंसक फैसला बता रहे थे तो मोदी ने गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान उपरोक्त भाषण देते हुए भावुक और नाटकीय अंदाज़ में कहा था, ‘मैंने देश से सिर्फ 50 दिन मांगे हैं। मुझे 30 दिसम्बर तक का वक्त दीजिए। उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, कोई कमी रह जाए, मेरे इरादे गलत निकल जाए तो देश जिस चौराहे पर खड़ा करके जो सज़ा देगा, उसे भुगतने के लिए मैं तैयार हूं।’
प्रधानमंत्री मोदी के उस भाषण के बाद कई ‘50 दिन’ ही नहीं, पूरे 2920 दिन बीत गए हैं, लेकिन वे भूल से भी अब नोटबंदी का ज़िक्र तक नहीं करते हैं। नोटबंदी के तहत 1000 और 500 का नोट बंद कर उनकी जगह जो 2000 और 500 का नया नोट चलन में लाया गया था, उसमें भी 2000 का नोट अभी एक साल पहले ही सरकार ने चलन से बाहर कर दिया है। लेकिन आज तक किसी ने यह नहीं बताया है कि एक हज़ार की जगह दो हज़ार का नोट चलाने का क्या औचित्य था। अब जबकि उस नोट को चलन से बाहर कर दिया गया है तो भी किसी ने यह बताने की जहमत नहीं उठाई है कि ऐसा क्यों किया गया?
आठ नवम्बर को नोटबंदी की बरसी पर सरकार और सत्तारूढ़ दल दोनों मौन रहते रहे हैं। इस बार भी दोनों चुप्पी साधे रहे। अलबत्ता इस बार भी सोशल मीडिया में नोटबंदी छाई रही। आम लोगों ने अपनी तकलीफें साझा की और प्रधानमंत्री मोदी तथा उनके मंत्रियों के उस समय के भाषणों व बयानों के वीडियो क्लिप शेयर करते हुए उनका मज़ाक उड़ाया।
नोटबंदी के समय सरकार का कहना था कि उसने नोटबंदी के जरिए अर्थव्यवस्था से बाहर गैर-कानूनी ढंग से रखे धन को निशाना बनाया है, क्योंकि इस धन से भ्रष्टाचार और दूसरी गैर-कानूनी गतिविधियां बढ़ती हैं। टैक्स बचाने के लिए लोग इस पैसे की जानकारी छुपाते हैं। सरकार का मानना था कि जिनके पास बड़ी संख्या में गैर-कानूनी ढंग से जुटाया गया नकदी है, उनके लिए इसे कानूनी तौर पर बदलवा पाना संभव नहीं होगा। लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की अगस्त, 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सरकार के इन दावों की पोल खोल कर रख दी। उस रिपोर्ट के मुताबिक बंद किए गए नोटों का 99.3 फीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया है।
रिज़र्व बैंक की यह रिपोर्ट चौंकाने वाली थी और इस बात का संकेत दे रही थी कि लोगों के पास नकदी के रूप में जो गैर-कानूनी या काला धन होने की बात कही जा रही थी, वह सच नहीं थी और अगर सच थी तो यह भी सच है कि लोगों ने नोटबंदी के बाद अपने काले धन को सफेट यानी कानूनी बनाने का रास्ता निकाल लिया था। वैसे नोटबंदी के समय ही प्रो. अरुण कुमार सहित कई जाने माने अर्थशास्त्रियों ने सरकार की इस धारणा गलत ठहराया था कि नकदी का मतलब काला धन होता है। इसलिए नोटबंदी से काला धन खत्म होना ही नहीं था। विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन पर तो इसका असर पड़ने का कोई सवाल था ही नहीं। नोटबंदी से काला धन खत्म होने के दावे के साथ ही प्रधानमंत्री ने दावा किया था और बाद में कई दिनों तक उनके मंत्री भी देश को समझाने की मासूम कोशिश करते रहे कि नोटबंदी से नकली नोटों का चलन भी रुकेगा और आतंकवाद पर भी लगाम लग जाएगी। लेकिन जब काला धन खत्म होने के बजाय बढ़ने के संकेत और सबूत मिलने लगेए 500 और 2000 के नए नोटों की शक्ल में नकली नोट बाज़ार में आने लगे और आतंकवादी वारदातों में कोई कमी नहीं आई तो नोटबंदी की आलोचना भी तेज़ हुई। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पैंतरा बदलते हुए कहा था कि देश में कैशलेस इकोनॉमी बनाने यानी नकदी व्यवहार कम करने के लिए नोटबंदी प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक है। बहरहाल यह प्रचार आज तक हो रहा है कि नोटबंदी के बाद देश मे डिजिटल लेन-देन बढ़ गया है। यह सही है कि तब से अब तक डिजिटल लेन-देन बढ़ा है, लेकिन सच यह भी है कि नकदी पर लोगों की निर्भरता भी पहले से कहीं ज्यादा हो गई है और बैंकों पर लोगों का भरोसा कम हुआ है। नोटबंदी के ऐलान के आठ साल बाद देश में कैश सर्कुलेशन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में 35.15 लाख करोड़ रुपये कैश सर्कुलेशन में हैं जो 4 नवम्बर, 2016 को चलन में रहे 17.97 लाख करोड़ रुपये से 72 फीसदी ज्यादा है। जिस समय नोटबंदी के चलते देश भर मे हाहाकार मचा हुआ था, उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विदेशी दौरों में अपने इस फैसले के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए इसे साहसिक और ऐतिहासिक कदम बताया था।
नोटबंदी के चलते छोटे-मझौले स्तर के कारोबारियों के काम-धंधे ठप हो गए थे, जो अब भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौट पाए हैं। लाखों लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी हैं। आज बेरोज़गारी आज़ाद भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा है तो इसकी बड़ी वजह नोटबंदी भी है। जिनके पास रोज़गार बचा हुआ है, उनकी आमदनी कम हुई है। किसानों की आत्महत्या का सिलसिला तो बहुत पहले से ही चला आ रहा है, लेकिन नोटबंदी के बाद कई छोटे कारोबारियों और बेरोज़गार हुए लोगों ने भी असमय मौत को गले लगाया है और यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है।
सरकार आंकड़ों की बाजीगरी दिखाते हुए भले ही यह ढोल पीटती रहे कि भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन हकीकत बेहद स्याह है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने का सिलसिला भी नोटबंदी के बाद ही तेज़ हुआ है। देश से होने वाले निर्यात में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। भारत के विदेशी मुद्गा भंडार में लगातार कमी आई है। नोटबंदी के कारण पहली बार यह शर्मनाक नौबत आई है कि भारत सरकार को अपना खर्च चलाने के लिए रिज़र्व बैंक के रिज़र्व कोष से एक बार नहीं, दो-दो बार पैसा लेना पड़ा है और मुनाफे में चल रहे सरकारी उपक्रमों को निजी क्षेत्रों को बेचना पड़ रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के एक साल बाद 7 नवम्बर, 2017 को संसद में कहा था कि नोटबंदी एक आर्गनाइज़्ड (संगठित) लूट और लीगलाइज़्ड प्लंडर (कानूनी डाका) है। अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के शब्दों में नोटबंदी पूरी रफ्तार से चल रही कार के टायरों पर गोली मार देने जैसा कार्य था। आज नोटबंदी के आठ साल बाद उनका कहा सच साबित हो रहा है। सरकार भी इस हकीकत को समझ चुकी है। इसीलिए उसने अपने अपराध-बोध के चलते नोटबंदी के आठ साल पूरे होने पर पूरी तरह खामोशी बरती। सरकार के ढिंढोरची की भूमिका निभाने वाले कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया ने भी इस मामले में सरकार का अनुसरण किया। ज्यादातर टीवी चैनल या तो सरकार के पसंदीदा खेल हिंदू-मुस्लिम में मगन रहे या फिर महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सहारा देते दिखे।