पश्चिम बंगाल में कम होता भाजपा का प्रभाव 

पिछले दिनों हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव  और विधान सभा उप-चुनावों के नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि आज भी भाजपा अपने घटक दलों के साथ शानदार प्रदर्शन करने में सक्षम है, चाहे वह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रचंड जीत हो, बिहार के उप-चुनाव के नतीजे हों, राजस्थान उप-चुनाव का नतीजा हो या फिर असाम विधानसभा उप-चुनाव के नतीजे क्यों ना हों। भाजपा ने दिखा दिया है कि आज भी देश का जनमत उसके साथ है और मोदी मैजिक आज भी बरकरार है, लेकिन झारखंड और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है।
झारखंड विधानसभा चुनावों में हार के कई कारण हैं, जिसमें मुख्य रूप से हेमंत सोरेन के जेल जाने और फिर बाहर आ जाने से मिली सहानुभूति को मुख्य कारण माना जा रहा है, लेकिन अगर पश्चिम बंगाल विधानसभा उप-चुनाव की बात करें तो दिन-प्रतिदिन भाजपा का जनाधार पश्चिम बंगाल में खिसकता जा रहा है।  भाजपा की संगठनात्मक शक्ति क्षीण होती जा रही है जिसका एक ताज़ा उदाहरण है पश्चिम बंगाल में 6 विधानसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव के नतीजे जिसमें भाजपा को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली है जबकि तृणमूल कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपनी जीत का परचम लहरा दिया है। जिन सीटों पर उप-चुनाव हुए, अगर उनका विश्लेषण करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि तृणमूल कांग्रेस के सामने भाजपा कमज़ोर होती दिखाई दे रही है। 
पश्चिम बंगाल में 17 नवम्बर को विधानसभा की 6 सीटों पर उप-चुनाव हुआ था, जिसमें नैहाटी, हरोआ, मेदिनीपुर, तालडांगरा, सीताई (एससी) और मदारीहाट (एसटी) विधानसभा सीट शामिल थी। इनमें से पांच सीटें दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के गढ़ में हैं जबकि मदारीहाट राज्य के उत्तरी हिस्से में भाजपा का गढ़ बना हुआ था। 2021 में यह सीट भाजपा ने जीती थी। 2024 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद विधायकों द्वारा अपनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण ये सभी सीटें रिक्त हुई थीं। उप-चुनाव में टीएमसी ने न सिर्फ अपनी पांच सीटें बरकरार रखीं हैं, बल्कि मदारीहाट सीट भाजपा से छीन ली है। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने भी 2021 के बाद पहली बार वाम दलों के साथ गठबंधन के बिना चुनाव लड़ा था लेकिन उसे भी सभी छह निर्वाचन क्षेत्रों में ज़मानत ज़ब्त करवानी पड़ी। सीताई (एससी) में टीएमसी की संगीता रॉय ने भाजपा के दीपक कुमार रे पर 1,30,636 के अंतर से जीत हासिल की जिन्हें केवल 35,348 वोट मिले। टीएमसी का वोट शेयर 2021 के राज्य चुनावों में 49 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया जबकि भाजपा का वोट शेयर 45 प्रतिशत से गिरकर सिर्फ 16 प्रतिशत रह गया। मदारीहाट में टीएमसी का वोट शेयर 2021 की तुलना में 34.13 फीसदी से बढ़कर 54.05 फीसदी हो गया जबकि भाजपा का वोट शेयर गिरकर 34 फीसदी हो गया। नैहाटी में टीएमसी के सनत डे ने 78,772 वोट प्राप्त किए, उन्होंने भाजपा के रूपक मित्रा को 49,277 वोटों से हराया। टीएमसी का वोट शेयर 2021 में 50 फीसदी से बढ़कर 62.97 फीसदी हो गया जबकि भाजपा का वोट शेयर 2021 में 38 फीसदी से गिरकर 23.58 फीसदी हो गया। हरोआ में टीएमसी के एस.के. रबीउल इस्लाम ने 1,57,072 वोट प्राप्त किए। उन्होंने आईएसएफ  के पियारुल इस्लाम पर 1,31,388 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। पियारुल इस्लाम को सिर्फ  25, 684 वोट मिले। ऐसे में इस हार को गम्भीरता से लेते हुए भाजपा की राज्य इकाई को इस पर गहन विचार मंथन करना चाहिए क्योंकि आर.जी. कर मामले में आमजन के व्यापक विरोध के बाद टीएमसी की सरकार बैकफुट पर थी। फिर भी उप-चुनाव में टीएमसी ने शानदार प्रदर्शन किया है। यह भाजपा के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति है, लेकिन भाजपा की प्रदेश इकाई इस हार को हल्के में ले रही है। इस शर्मनाक हार के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने उप-चुनाव के नतीजों को महत्व नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि ‘उप-चुनाव के नतीजे एक विश्वसनीय संकेतक के रूप में काम नहीं कर सकते। लोग टीएमसी के साथ हैं या उनके खिलाफ, यह आगामी विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा।’
ऐसे में यह स्पष्ट है कि भाजपा का प्रभाव धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल में कम होता जा रहा है और तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ फिर से मज़बूत करती नज़र आ रही है। अगर भाजपा ने गम्भीरता से अपनी संगठन शक्ति को पुन: मज़बूत करने का काम नहीं किया तो पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए दिवा स्वप्न बन कर ही रह जाएगा। (युवराज)

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