आखिरकार संसद पहुंच ही गईं प्रियंका गांधी

वह चुनावी मैदान में उतरकर संसद में प्रवेश करेंगी? नहीं करेंगी? यह प्रश्न बहुत ही लम्बे समय से जवाब की प्रतीक्षा में थे। आख़िरकार 23 नवम्बर, 2024 को उनका जवाब मिल ही गया। प्रियंका गांधी वाड्रा ने वायनाड (केरल) लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा की सदस्यता हासिल कर ही ली। उन्होंने 28 नवम्बर को सांसद के रूप में शपथ ले ली है। पंडित जवाहर लाल नेहरु, फिरोज़ गांधी, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, मेनका गांधी, वरुण गांधी और राहुल गांधी के बाद संसद में प्रवेश करने वाली वह नेहरु-गांधी परिवार की दसवीं सदस्य हैं। कांग्रेस की महासचिव व स्टार प्रचारक प्रियंका ने वायनाड में 4,10,931 मतों से रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उनकी जीत का अंतर अपने भाई राहुल गांधी की जीत से भी अधिक रहा, जिनके सीट छोड़ने की वजह से वायनाड में उप-चुनाव हुआ था। प्रियंका को कुल 6,22,338 वोट मिले, उनके निकटतम प्रतिद्वंदी भाकपा के सत्यन मोकेरी को 2,11,407 वोट मिले जबकि भाजपा की नव्या हरिदास 1,09,939 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। 
दरअसल, जिस समय कांग्रेस ने प्रियंका को वायनाड से अपना प्रत्याशी बनाने की घोषणा की थी तो उनकी जीत का अंदाज़ा तो सभी को था, बहस सिर्फ  इस बात पर थी कि जीत का अंतर क्या होगा? क्या वह राहुल गांधी से भी अधिक मतों से जीत सकेंगी? राहुल ने 3,64,422 वोटों से विजय हासिल की थी। इस प्रकार प्रियंका ने अपने पहले ही चुनाव में रिकॉर्ड जीत दर्ज की। इस समय नेहरु-गांधी परिवार के तीन सदस्य संसद में हैं। राहुल व प्रियंका लोकसभा में और सोनिया गांधी राज्यसभा में हैं। एक ही परिवार के तीन सदस्यों का एक ही समय में संसद में होना दुर्लभ है। प्रियंका अब तो 52 साल की हो गईं हैं, लेकिन जब वह किशोरी थीं तो संसद में अपने पिता राजीव गांधी को बोलते हुए सुनने के लिए बतौर गेस्ट जाया करती थीं। अब चार दशक बाद वह स्वयं लोकसभा सदस्य हैं। उनकी इस जीत पर उनके विरोधी नेपोटिज्म सियासत का शोर मचा रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के सदस्य खुश हैं कि आखिरकार उनकी मांग पूरी हुई। 
इसलिए वह उनके स्वागत में लाल कालीन बिछाये हुए हैं। नेहरु-गांधी परिवार की सियासी परम्परा को देखते हुए प्रियंका बहुत आसानी से बहुत पहले ही संसद में सदस्य के रूप में प्रवेश कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लम्बे घुमावदार रास्ते का चयन किया। पहला सवाल तो यही था कि क्या दो बच्चों की मां सक्रिय राजनीति में प्रवेश करेंगी? फिर यह प्रश्न उठा कि वह कब चुनाव लड़ेंगी? सितम्बर 1999 में उन्होंने एक पत्रकार से कहा था कि राजनीति में प्रवेश करने के लिए उन्हें ‘लांग-लांग टाइम’ लगेगा। वास्तव में उन्हें बहुत ही लम्बा समय लगा। उन्होंने बीस साल बाद 2019 में राजनीति में प्रवेश किया और बाद में उन्हें कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया। अब इसके भी पांच साल बाद चुनी गई प्रियंका जनप्रतिनिधि के तौर पर अपनी यात्रा आरंभ कर रही हैं। 
प्रियंका का संसद में प्रवेश ऐसे समय में हुआ है, जब कांग्रेस के लिए कठिन समय चल रहा है कि उसे हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है, जबकि इन दोनों ही राज्यों में उसकी स्थिति बेहतर थी और 2024 लोकसभा चुनाव में उसने अच्छा प्रदर्शन किया था। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि भारत की सबसे पुरानी सियासी पार्टी को प्रियंका जीत की पटरी पर वापिस ला सकती हैं या नहीं। प्रियंका की तुलना अक्सर उनकी दादी इंदिरा गांधी से की जाती है, दोनों प्रकार से—चेहरे और बोलने के अंदाज़ में। जब से उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया है, तब से वह कांग्रेस की स्टार प्रचारक हैं। उन्हें सुनने के लिए लोग बड़ी संख्या में जमा होते हैं, जिनमें वह भी होते हैं जो कांग्रेस का समर्थन नहीं करते हैं। उनका आकर्षण व बोलने का अंदाज़ ही ऐसा है। वह जनता से अपनेपन का सम्पर्क स्थापित करने में माहिर हैं। वह अपनी पार्टी का दृष्टिकोण बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं और अपनी विरोधी पार्टियों के आरोपों व प्रोपेगंडा का अति तर्कपूर्ण व नपे-तुले शब्दों में जवाब देती हैं। वह अपने भाषणों में आप-बीती को जग-बीती बनाकर पेश करती हैं। प्रियंका ने साबित किया है कि वह योजनाकार, वक्ता और भीड़ एकत्र करने वाली नेता हैं। लोकसभा में उनके भाषण सुनने लायक होंगे।
दरअसल, प्रियंका भाषण नहीं देती हैं बल्कि वास्तव में जनता से बातें करती हैं। यह एहसास कराती हैं कि वह अपने जान-पहचान के लोगों को ही संबोधित कर रही हैं। अपनी भावनाएं व विचार उनके साथ शेयर करती हैं। उनके इस अंदाज़ ने उन्हें लोकप्रिय नेता बना दिया है। जनता के बीच बोलना और उसे प्रभावित करना एक कला उनमें है। इस संदर्भ में प्रियंका अपनी महारत को साबित कर चुकी हैं। वह पत्रकारों के तीखे प्रश्नों का सटीक उत्तर देने के हुनर को भी प्रदर्शित कर चुकी हैं, लेकिन संसद एक अलग ही मैदान है, जहां न सिर्फ  विशिष्ट मुद्दों पर अपनी पार्टी की बात रखनी होती है, बल्कि विभिन्न मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल को घेरना भी होता है। इसलिए यह देखना शेष है कि लोकसभा में प्रियंका वायनाड व देश के लोगों की किस तरह की आवाज़ बन कर उभरती हैं।  
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#आखिरकार संसद पहुंच ही गईं प्रियंका गांधी