किसान आंदोलन नये मोड़ पर
शम्भू और खनौरी की सीमा पर पिछले साढ़े 9 माह से चल रहे किसान आंदोलन ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। यह आंदोलन चला रहे संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा आदि संगठनों ने खनौरी की सीमा पर सुखजीत सिंह हरदोझंडे नाम के किसान नेता को जगजीत सिंह डल्लेवाल के स्थान पर आमरण-अनशन पर बिठा दिया है और केन्द्र सरकार को किसानों की मांगों संबंधी 10 दिनों के अंदर बातचीत शुरू करने का अल्टीमेटम भी दिया है। उल्लेखनीय यह है कि पहले प्रोग्राम के अनुसार 26 नवम्बर से किसान नेता डल्लेवाल ने आमरण-अनशन पर बैठना था लेकिन पंजाब पुलिस ने उनको खनौरी से सुबह गिरफ्तार करके लुधियाना के डी.एम.सी. अस्पताल में पहुंचा दिया। किसानों में इस कारण रोष भी बढ़ा है और वे खनौरी बड़ी संख्या में इकट्ठे भी हो रहे हैं।
नि:संदेह पिछले कई दशकों से कृषि और किसान गम्भीर आर्थिक संकट में फंसे हुए हैं। फसलों के जो समर्थन मूल्य उनको दिए जाते हैं, उनके साथ उनको निरंतर घाटे का सामना करना पड़ रहा है। इसी कारण देश भर के किसान कज़र् के जाल में फंस गये हैं। इस कज़र् का जाल इतना भयानक हो गया है कि पिछले 10 वर्षों में लाखों किसान-मज़दूर आत्महत्या कर गये हैं। समय की केन्द्र सरकारों द्वारा कुछ हद तक किसानों के कज़र् माफ करने सहित इस संबंधी कुछ आधे-अधूरे यत्न तो ज़रूर किये गये परन्तु कृषि को संकट से बाहर निकालकर लाभदायक बनाने के मामले में सरकारें सफल नहीं हो सकीं या यह कहा जा सकता है कि सरकारों ने उतनी इच्छा शक्ति के साथ काम नहीं किया, जितनी इच्छा शक्ति की इस काम के लिए ज़रूरत थी। किसान नेताओं के अनुसार दूसरी तरफ केन्द्र सरकारों ने पिछले 10 वर्षों में ही कार्पोरेटरों का 10 लाख करोड़ से अधिक का कज़र्ा माफ करके और व्यापार करना आसान बनाने के लिए उनको अनेक प्रकार की सुविधाएं देकर बड़ी राहत दी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2020 में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध जब दिल्ली की सीमा पर एक वर्ष से अधिक समय के लिए आंदोलन किया था और उस कारण जब केन्द्र सरकार ने उपरोक्त तीन कृषि कानून वापिस ले लिये थे तो उस समय सरकार द्वारा यह भी कहा गया था कि आने वाले समय में फसलों के समर्थन मूल्य और किसानों की अन्य मांगों के निवारण के लिए एक कमेटी बनाकर इन मामलों को भी हल कर लिया जाएगा। इसके बाद केन्द्र सरकार ने एक कमेटी का गठन ज़रूर किया लेकिन किसान संगठनों का आरोप था कि उसमें सरकार ने ज्यादातर केन्द्र के कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले अधिकारियों और किसान नेताओं को ही शामिल किया गया था, जिस कारण आंदोलनकारी किसान नेता उस कमेटी का हिस्सा नहीं बने। इस वर्ष 13 फरवरी को जब संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) तथा किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा ने उपरोक्त मांगों के लिए पुन: आन्दोलन शुरू करके दिल्ली जाने का फैसला किया तो हरियाणा तथा केन्द्र सरकारों ने संयुक्त रूप में किसानों को पंजाब की शम्भू तथा खनौरी की सीमाओं से आगे नहीं बढ़ने दिया। इसके बावजूद जब किसानों ने आगे बढ़ने का यत्न किया तो सुरक्षा बलों तथा किसानों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं। इस बीच चंडीगढ़ में केन्द्र सरकार के मंत्रियों के साथ आन्दोलनरत किसान नेताओं की कई बार बैठक भी हुई परन्तु कोई समाधान न हो सका। उसके बाद लगातार किसान शम्भू तथा खनौरी की सीमाओं पर धरने लगा कर बैठे हुए हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के संदर्भ में हम संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) तथा किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा के नेताओं को यह कहना चाहते हैं कि चाहे उनकी मांगें काफी हद तक सही हैं, परन्तु इनकी पूर्ति अकेले वे या उनके किसान संगठन नहीं करवा सकते। यह पूरे देश के किसानों का मामला है। इसलिए उन्हें जहां देश के अन्य भिन्न-भिन्न हिस्सों में से किसान संगठनों के व्यापक समर्थन की ज़रूरत है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा जो कि 2020 के किसान आन्दोलन का एक बड़ा हिस्सा रहा है, उसे भी इस आन्दोलन में साथ लिये जाने की ज़रूरत है। जब फसलों के समर्थन मूल्य तथा किसानों की अन्य मांगों के लिए ज़्यादातर सिर्फ पंजाब के किसान संगठन ही आन्दोलन करते हैं तो बहुत बार केन्द्र सरकार तथा उनके समर्थक यह कहते हैं कि सिर्फ पंजाब के किसान ही आन्दोलन करके हालात खराब कर रहे हैं। किसान आन्दोलन 2020 से लेकर अब तक लम्बे समय तक खिंच जाने तथा किसानों द्वारा अपनी मांगों के लिए बार-बार रेल तथा सड़क यातायात ठप्प करने के कारण पंजाब तथा हरियाणा के लोगों के एक बड़े वर्ग को यह बात सही भी प्रतीत होने लगी है। किसान आन्दोलन के कारण रेल तथा सड़क यातायात बार-बार ठप्प होने के कारण उद्योगपतियों तथा व्यापारियों को विगत समय में अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। आम लोगों को भी बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ता रहा है। हरियाणा सरकार ने किसान आन्दोलन के बहाने ही अब भी शम्भू तथा खनौरी की हरियाणा से लगती सीमाओं पर स्थायी अवरोधक लगाए हुए हैं, जिनके कारण पंजाब से दिल्ली जाने वाले या दिल्ली से पंजाब आने वाले लोगों को टेड़े-मेढ़े रास्तों से लम्बे चक्कर लगा कर आना-जाना पड़ रहा है और अनेक प्रकार की मुश्किलों का आज भी सामना करना पड़ रहा है। समय की ज़रूरत है कि किसान अपने आन्दोलन को और व्यापक तथा तर्कशील बनायें तथा भविष्य के किसी भी आन्दोलन की रूपरेखा तैयार करते समय पंजाब, हरियाणा के गैर-कृषि वर्गों तथा आम लोगों के हितों को भी ध्यान में रखें। दूसरी ओर केन्द्र सरकार को भी ज़िद छोड़ कर किसान संगठनों के साथ बातचीत करने के लिए आगे आना चाहिए।