राजनीति की आखिरी बाज़ी में शरद पवार मात कैसे खा गए ?

महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के आखिरी दौर के वक्त राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि मुझसे पंगा लेना भारी पड़ सकता है। जिन लोगों ने मेरे साथ विश्वासघात किया है, उन्हें सबक सिखाना ज़रूरी है। आज जब महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे सामने आए तो शरद पवार की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है। शरद पवार की पार्टी महज 12 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई है। इस बुरी हार के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या 84 साल के शरद पवार अब राजनीति से संन्यास लेंगे? क्या यह उनका आखिरी चुनाव होकर रह जाएगा? सियासत की आखिरी बाजी में शरद पवार कैसे मात खा गए? 
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की वोटिंग से पहले एनसीपी के संस्थापक शरद पवार ने चुनावी राजनीति से संन्यास के संकेत दिए थे। पवार ने कहा है कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे हालांकि पार्टी संगठन का काम देखते रहेंगे, यानी एनसीपी (एसपी) चीफ के पद पर काम करते रहेंगे। 84 साल के शरद पवार ने बारामती में मंगलवार को कहा, ‘कहीं तो रुकना ही पड़ेगा। मुझे अब चुनाव नहीं लड़ना है। अब नए लोगों को आगे आना चाहिए। मैंने अभी तक 14 बार चुनाव लड़ा है। अब मुझे सत्ता नहीं चाहिए। मैं समाज के लिए काम करना चाहता हूं। विचार करूंगा कि राज्यसभा जाना है या नहीं।’ अब महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने उन्हें इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि यह चुनाव उनके लिए आखिरी होगा।
शरद पवार का पूरा नाम शरदचंद्र गोविंदराव पवार है। वह 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भी रहे हैं। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में वह कृषि मंत्री भी रहे हैं। जानकारी के अनुसार शरद पवार ने 1960 में कांग्रेस से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 1960 में कांग्रेसी नेता केशवराव जेधे का निधन हुआ और बारामती लोकसभा सीट खाली हो गई थी। उपचुनाव में पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया यानी पीडब्ल्युपी ने शरद के बड़े भाई बसंतराव पवार को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने गुलाबराव जेधे को उम्मीदवार बनाया था। उस वक्तवाईबी चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने बारामती सीट को पनी साख का मुद्दा बना लिया था। 
शरद पवार अपनी किताब ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखते हैं कि मेरा भाई कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार था। हर कोई सोच रहा था कि मैं क्या करूंगा? बड़ी मुश्किल स्थिति थी। भाई बसंतराव ने मेरी परेशानी समझ ली। उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि तुम कांग्रेस की विचारधारा के लिए समर्पित हो। मेरे खिलाफ प्रचार करने में संकोच मत करो। इसके बाद मैंने कांग्रेस के चुनाव प्रचार में जान लगा दी और गुलाबराव जेधे की जीत हुई। महज 27 साल की उम्र में शरद पवार 1967 में बारामती विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। पिछले 5 दशकों में शरद पवार 14 चुनाव जीत चुके हैं।
10 जून, 2023 को शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का नया कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। शरद के इस फैसले से अजित पवार नाराज़ हो गए। ठीक 2 महीने बाद 2 जुलाई, 2023 को अजित पवार ने 8 विधायकों के साथ की अपनी एनसीपी पार्टी से बगावत कर दी। शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बनने वाले अजित पवार ने एनसीपी पर अपना दावा ठोक दिया है। 29 साल पहले बनी एनसीपी पार्टी टूट के कगार पर पहुंच गई है। अजित पवार ने 40 से ज्यादा विधायकों के समर्थन होने का दावा किया था। चुनाव आयोग ने 6 फरवरी 2024 को कहा कि अजित पवार गुट ही असली एनसीपी है। 6 महीने तक चली 10 सुनवाई के बाद पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह घड़ी अजित गुट को दे दिया गया। इसके बाद आयोग ने शरद पवार के गुट के लिए एनसीपी शरद चंद्र पवार नाम दिया। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह तुरही है। इस तरह एनसीपी पार्टी टूटकर दो हिस्सों में बंटी तो दोनों पार्टी की कमान पवार परिवार के ही हाथ में रही।
महाराष्ट्र की सियासत में चाचा और भतीजे की जोड़ी में कुछ इस कदर दरार पैदा हुई कि अजित पवार भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट की महायुति गठबंधन में शामिल हो गए। दूसरी ओर शरद पवार महाविकास अघाड़ी के साथ खड़े हैं जिसमें कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना है। कहा जा रहा है कि चुनावी मैदान में चाचा और भतीजे दोनों एक-दूसरे को कमतर दिखाने में लगे हुए थे। चाचा और भतीजे की सियासी जंग में भतीजे ने बाजी मार ली।
जानकार लोगों का कहना है कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की ‘लाडली बहन योजना’ के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी इस साल जून महीने में ‘मुख्यमंत्री-मेरी लाडली बहन योजना’ की शुरुआत की। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा की प्रचंड जीत में इस फैक्टर का भी बड़ा योगदान था। इसने शरद पवार के गुट के मुद्दे और लम्बे सियासी अनुभव को चलने नहीं दिया।
महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेर रही थी। ऐसे में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को उम्मीद थी कि उन्हें चुनाव में लोगों का साथ मिलेगा मगर, नतीजे इसके उलट रहे। महाराष्ट्र में सोयाबीन की एमएसपी की गारंटी का मुद्दा भी नहीं चला।
शरद पवार भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति का तोड़ नहीं निकाल पाए। वह नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की ध्रुवीकरण की राजनीति के जाल में उलझकर रह गए। इस बार वह जनता की नब्ज़ को भी समझने में नाकाम भी रहे क्योंकि वह बेरोज़गारी और महंगाई की ही बात करते रहे। इसके अलावा, लोगों को पवार की राजनीति में दम भी नहीं दिखा क्योंकि उनके भतीजे अजित पवार ने ही बगावत करके विरोधी खेमे के साथ गठबंधन कर लिया था।

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