ऩफरत की लपटें
विगत दिवस हमने आज़ादी के बाद देश में लागू किए गए संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर राष्ट्रीय स्तर पर अनेक समारोह आयोजित किये। हम संविधान के अस्तित्व में आने और इसकी ओर से सफलतापूर्वक देश का नेतृत्व करने को देश के लिए गौरवमय समय कहते रहे हैं। इस गौरव के पीछे 200 वर्ष का इतिहास है, जिसमें विदेशी शासकों की गुलामी से छुटकारा पाने के लिए देश-वासियों ने एकजुट होकर संघर्ष किए थे। हमारे शहीदों ने सैकड़ों की संख्या में बलिदान दिए। हज़ारों ने विदेशी बादशाहत से निजात पाने के लिए कड़ी सजाएं काटीं। लाखों लोगों ने समय-समय पर एकजुट होकर स्थान -स्थान पर रोष प्रदर्शन किए। चाहे फिरंगियों ने एक निर्धारित नीति के तहत धर्मों के नाम पर फूट डाल कर देश के टुकड़े कर दिए। पाकिस्तान की स्थापना मुख्य रूप में धर्म के नाम पर हुई परन्तु हमारे महान संविधान निर्माताओं ने हर तरह की बाधाओं से ऊपर उठ कर एक अच्छे एवं साफ समाज के नव-निर्माण हेतु सामूहिक रूप में एक ऐसा संविधान बनाया जो धर्मों, जाति-बिरादरियों तथा ऊंच-नीच की भावनाओं को नकारता हुआ एक संयुक्त भाईचारे की बात करता है।
यह संविधान प्रत्येक मनुष्य को अपने अकीदों के अनुसार जीने का अधिकार देता है। प्रत्येक नागरिक के लिए खुले रूप में विचरण करने के द्वार खोलता है। देशवासियों के लिए एकता का सन्देश देते हुए उन्नति के मार्ग पर सामूहिक रूप में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, परन्तु इसके साथ-साथ आज बड़ी संख्या में ऐसी सोच वाले संगठन एवं वर्ग पैदा हो गए हैं, जो अपने धार्मिक अकीदों को प्रमुखता देने के लिए अंधाधुंध यत्नशील हुए प्रतीत होते हैं। धर्मों एवं अकीदों को आधार बना कर वे देशवासियों की श्रद्धा भावना को झिंझोड़ते हुए उससे सामाजिक, निजी एवं राजनीतिक लाभ लेने के लिए यत्नशील हैं। वे अपनी इस सोच एवं क्रिया-कलापों में बड़ी सीमा तक सफल होते दिखाई दे रहे हैं परन्तु ऐसा करके जहां वे संविधान की भावनाओं की बेकद्री कर रहे होते हैं, वहां वह भिन्न-भिन्न भाईचारों में ऩफरत के बीज बो कर समाज को भीतर से खोखला कर रहे होते हैं। राजनीतिक दम पर अपनाई जा रही ऐसी नीति देश को विकास के मार्ग पर नहीं, अपितु विनाश के पथ पर चलने में सहायक होगी। ऩफरत के बीज बो कर सद्भावना एवं भ्रातृत्व की कल्पना नहीं की जा सकती। इसी क्रम में मंदिर, मस्जिद एवं अन्य धार्मिक स्थानों के विवाद भी आते हैं।
हमारा देश दशकों पुराना है। इसकी महान परम्पराएं हैं। विगत समय में खास तौर पर राजशाही एवं उपनिवेशवादी के दौर में बहुत कुछ ऐसा हुआ, व्यतीत हुआ है। यदि उसे अपने अकीदों के अनुसार उधेड़ना शुरू कर दिया जाए तो हमारा यह समाज शक्तिशाली एवं स्वस्थ नहीं रहेगा, अपितु ज़ख्मों एवं पीड़ाओं से भरपूर हो जाएगा। ऐसी अवस्था में की गई कोई भी उपलब्धि निरर्थक होकर रह जाएगी। विगत कुछ वर्षों से देश में कुछ शक्तियां भीड़ को भावुक करके सदियों पुराना हिसाब चुकाने का यत्न करती आ रही हैं। यह स्वयं में नकारात्मक सोच है। इस पर किए गए क्रियान्वयन ऩफरत एवं विनाश का निमंत्रण देने वाले हैं। इस संबंध में नकारात्मक पहुंच को देखते हुए ही देश की संसद ने 1991 में धार्मिक स्थानों संबंधी यह कानून बनाया था कि 15 अगस्त, 1947 तक धार्मिक स्थानों की जो स्थिति थी, उसे किसी भी तौर पर बदला नहीं जाएगा परन्तु इसके बावजूद यदि आज भी स्थान-स्थान पर धार्मिक स्थानों के सर्वेक्षण किए जाने की इजाज़त दी जा रही है तो ऐसे आदेश एवं फैसले देश के विकास में रुकावट ही नहीं बनेंगे, अपितु ऐसी ऩफरत पैदा करने में सहायक होंगे, जो स्थान-स्थान पर आग भड़काने में सहायक होगी, जिसकी तपिश किसी न किसी रूप में पूरे देशवासियों को सहन करनी पड़ेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द