सिख कौम के लिए अहम होगा सिंह साहिबान का फैसला 

ये जबर भी देखा है तारीख की नज़रों ने,
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सज़ा पायी।

आज जिस हालत में से सिख कौम गुज़र रही है, उसमें मुजफ्फर रज़्मी का यह शे’अर याद रखना बहुत ज़रूरी है अन्यथा जिस बुरी राजनीतिक हालत में से सिख कौम गुज़र रही है, उसमें सचमुच ही वह इस अवसर पर की गई किसी भी गलती की सज़ा सदियों तक भुगतने के लिए मजबूर हो जाएगी। 
2 दिसम्बर, 2024 को श्री अकाल तख्त साहिब पर लगभग समूचे अकाली नेतृत्व पर डेरा सिरसा के साध को माफी देने तथा फिर वापिस लेने वाले पूर्व जत्थेदार तथा शिरोमणि कमेटी के पदाधिकारी तलब किये गये हैं। हम समझते हैं कि दो दिसम्बर को श्री अकाल तख्त साहिब की प्राचीर से सुनाया जाने वाला फैसला कौम की राजनीतिक शक्ति को ही नहीं अपितु सामाजिक, धार्मिक स्थिति को भी एक बड़ा मोड़ देने वाला सिद्ध होगा और ये सिख संस्थाएं जिनमें स्वयं तख्त साहिबान की संस्था, शिरोमणि कमेटी तथा हमारी राजनीतिक संस्थागत ताकत भी शामिल है, की विश्वसनीयता को मज़बूत करने वाला या खंड-खंड कर देने वाला भी सिद्ध हो सकता है। 
इसलिए ज़रूरी है कि हमारे जत्थेदार साहिबान यह फैसला बिना किसी दबाव, चाहे वह सोशल मीडिया या मीडिया का दबाव हो, चाहे किसी भी संगठन सहित अकाली दल तथा अकाली दल के विरोधी संगठनों का दबाव हो या फिर चाहे वह दबाव किसी भी पक्ष की ओर से हो, को दरकिनार करके विशुद्ध सिख परम्पराओं तथा साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी के आधार पर ही लें ताकि यह फैसला कौम की चढ़दी कला के लिए एक मील-पत्थर सिद्ध हो। जब यह फैसला गुरुबाणी की सूझबूझ (विज़्डम) के आधार पर लिया जाएगा तो कोई भी पक्ष इसे मानने से इन्कार नहीं कर सकेगा तथा यदि फिर भी कोई पक्ष निजी लाभ के लिये इसे मानने से इन्कार करेगा तो वह प्राकृतिक रूप में कौम द्वारा नकार दिया जाएगा, परन्तु यह आवश्यक है कि जत्थेदार साहिब का फैसला किसी भी एक पक्ष की ओर झुका हुआ दिखाई नहीं दिया जाना चाहिए।
तारीख की नज़रों में वही शान-ए-़खुदा है,
जो त़ख्त-ए-़खुदा पर सदा इन्स़ाफ कुरां हो।
(लाल फिरोज़पुरी)
वक्त की ज़रूरत—तख्त साहिबान का विधि-विधान
आज सिख कौम जिस मुश्किल दौर में से गुज़र रही है और जिस प्रकार अकाली दल का राजनीतिक ग्राफ नीचे आया है, इसकी जड़ में अन्य बहुत-से कारणों के साथ-साथ सबसे बड़ा कारण तो डेरा सिरसा प्रमुख को अकाल तख्त साहिब द्वारा दी गई माफी और फिर सिख संगत के विरोध के बाद माफी की वापसी तथा श्री गुरु गं्रथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं तथा उनसे निपटने में तत्कालीन अकाली सरकार की विफलता है, परन्तु एक बहुत अहम सवाल यह है कि उस समय के सिख शासकों प्रकाश सिंह बादल तथा उनके साथियों के मतों के लिए किये गये कार्यों एवं आदेशों के लिए उन्हेें गुनाहगार माना ही जाना चाहिए, परन्तु श्री अकाल तख्त साहिब तथा दूसरे तख्तों के जत्थेदार सरकार, मुख्यमंत्री या किसी भी अन्य दुनियावी ताकत के आगे क्यों झुके? उनका फज़र् था, अपितु फज़र्-ए-अव्वल था कि अपने दुनियावी लाभ-हानि को भूल कर साफ-साफ इन्साफ कर देते। अधिक से अधिक क्या होता, उन्हें पद से हटा दिया जाता। जिन तख्तों के वे जत्थेदार हैं, वे तख्त तो नूरानी तख्त हैं, दुनियावी राजगद्दी तो नहीं। उन्हें इनकी मान्यताओं के पालन के लिए किसी भी कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए था। 
खैर, यह स्थिति स्पष्ट प्रकट करती है कि वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि तख्त साहिबान के जत्थेदारों की नियुक्ति, उनकी शैक्षणिक, धार्मिक योग्यता और उनकी सेवा-मुक्ति के विधि-विधान के अतिरिक्त तख्त साहिबान का सचिवालय चलाने के लिए बजट के प्रबंध का कोई स्वचालित सिस्टम बनाया जाये। जत्थेदारों की नियुक्ति के लिए एक समय सीमा भी निश्चित हो तथा उनका अधिकार क्षेत्र भी निश्चित किया जाये कि वे किन मामलों में कितना तथा कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? यदि ऐसा नहीं किया गया तो तख्त साहिबान के जत्थेदारों की निजी कमज़ोरियां, लालसाएं, मजबूरियां या इसके विपरीत उनके किरदार की मज़बूती तथा ज़िद भी कौमी फैसलों में हावी होती रहेगी। इस कार्य के लिए शिरोमणि कमेटी को चाहिए कि वह हाईकोर्ट के पूर्व सिख जजों, प्रमुख सिख वकीलों, बड़े ईमानदार समझे जाते तथा धार्मिक तौर पर पक्के माने जाते सेवा-मुक्त अधिकारियों, धार्मिक विद्वानों तथा पूर्व एवं मौजूदा जत्थेदारों की एक कमेटी बना कर ऐसा विधि-विधान बनाए तथा लागू करे। वैसे जिस प्रकार के हालात देश में हैं, उनमें हमारी कौम को जहां प्रत्येक राज्य में वहां के हालात के अनुसार काम करने के लिए अलग-अलग राजनीतिक संगठन की ज़रूरत है, वहीं देश भर में एक मर्यादा तथा मुश्किल में फंसी कौम के बचाव के लिए ‘आल इंडिया सिख गुरुद्वारा एक्ट’ की ज़रूरत भी इस वक्त पहले हर समय से अधिक बल्कि आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट के तहत बने संगठन को चाहिए कि वह विश्व भर के देशों में रहते सिखों के साथ भी सम्पर्क में रहे और उनके प्रतिनिधियों को सलाहकार के रूप में नियुक्त करे या स्थायी इन्वायिटी बनाये, ताकि पूरी कौम एक सूत्र में पिरोयी जा सके और एक ही मर्यादा लागू हो सके। अब तो हमारी हालत यह है कि हम तो एक कैलेण्डर भी नहीं अपना रहे।
पंजाब भाजपा की अध्यक्षता 
इस समय जब पंजाब भाजपा के अध्यक्ष सुनील जाखड़ क्रियात्मक रूप में पंजाब भाजपा के अध्यक्षता नहीं कर रहे, तो यह निश्चित है कि पंजाब भाजपा का नया अध्यक्ष आगामी कुछ सप्ताह में या अधिक से अधिक नगर कौंसिल चुनावों के बाद दो माह में चुन लिया जाएगा। इस समय चाहे भाजपा का वोट प्रतिशत तो बढ़ा है, परन्तु आश्चर्यजनक रूप में भाजपा की सदस्यता बहुत नीचे आई है। उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय कमल शर्मा की अध्यक्षाता के समय पंजाब भाजपा की सदस्यता लगभग 23 लाख थी। इस बार का लक्ष्य 30 लाख है, परन्तु अभी तक पंजाब में भाजपा की नई सदस्यता 4 लाख से भी काफी कम हुई है। इस समय क्रियात्मक रूप में पंजाब भाजपा का कोई एक सिपहसिलार नहीं है। सिर्फ पंजाब भाजपा के प्रभारी विजय रूपाणी ही पंजाब भाजपा का कामकाज देख रहे हैं। भाजपा के सांगठनिक महासचिव श्री श्रीनिवासलू के खिलाफ पार्टी में काफी तीव्र विरोध है। हमारी जानकारी के अनुसार पार्टी के लगभग 4-5 गुटों ने हाईकमान को श्रीनिवासलू के खिलाफ शिकायत भी की है और उन पर पार्टी में बाहर से आए ‘अमीर नेताओं’ को आगे करने के आरोप भी लगाए गये हैं। 
इस समय पंजाब भाजपा की अध्यक्षता के इच्छुकों की एक लम्बी सूची है और उनकी स्थिति ‘एक अनार-सौ बीमार’ वाली दिखाई दे रही है। हमारी जानकारी के अनुसार सबसे अधिक चर्चा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ की हो रही है। यह सच भी है कि यदि वह स्वयं पंजाब भाजपा के अध्यक्ष बनना चाहेंगे तो शायद कोई भी नहीं रोक सकेगा, क्योंकि वह पंजाब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह तथा पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के सर्वाधिक निकटवर्ती हैं, परन्तु यदि वह स्वयं उम्मीदवार नहीं बनते तो समझा जाता है कि वह पंजाब की अध्यक्षता के लिए सुभाष शर्मा की सिफारिश कर सकते हैं। हालांकि पूर्व पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा का नाम भी अध्यक्षता की दौड़ में लिया जा रहा है, परन्तु यदि वह स्वयं किसी अन्य पद के लिए चुन लिए जाते हैं तो उनके बारे में कहा जाता है कि पार्टी का हिन्दू चेहरा चुनने की स्थिति में सुभाष शर्मा तथा सिख चेहरा चुनने की स्थिति में बिक्रमजीत सिंह चीमा की मदद कर सकते हैं। बिल्कुल यह स्थिति भाजपा के वरिष्ठ तथा पंजाब से संबंधित रहे नेता गजेन्द्र सिंह शेखावत की बताई जाती है। कांग्रेस से आए गुरमीत सिंह राणा सोढी, केवल सिंह ढिल्लों तथा फतेह जंग सिंह बाजवा भी अध्यक्षता की दौड़ में शामिल हैं। बताया जा रहा है कि पंजाब भाजपा के संगठन मंत्री ढिल्लों या सोढी के पक्ष में हो सकते हैं। विजय सांपला, सुरजीत जियाणी तथा हरजीत सिंह ग्रेवाल की तिकड़ी द्वारा हरजीत सिंह ग्रेवाल की उम्मीदवारी की चर्चा है हालांकि स्वयं ग्रेवाल इस दौड़ में शामिल होने से इन्कार करते हैं। वैसे राणा सोढी को केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का भी समर्थन प्राप्त बताया जाता है। पार्टी के भारी-भरकम नेता अविनाश राय खन्ना चाहे स्वयं उम्मीदवार के रूप में सामने नहीं आए, परन्तु बताया जा रहा है कि वह काफी गम्भीर उम्मीदवार हैं और आर.एस.एस. के कुछ प्रमुख नेता उनके पक्ष में हैं। एक नाम पार्टी सांसद सतनाम सिंह संधू का भी बड़ी गम्भीरता से लिया जा रहा है। संधू प्रधानमंत्री के काफी निकट हैं, जबकि अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा के बेटे अजयवीर सिंह, अनिल सरीन तथा जीवन गुप्ता के नाम भी पंजाब भाजपा की अध्यक्षता के लिए दौड़ में शामिल बताए जाते हैं। वैसे यहां नोट करने वाली बात है कि पार्टी की पुरानी लॉबी पंजाब में किसी हिन्दू को ही पंजाब भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने पर ज़ोर डाल रही है। इस बीच चर्चा है कि केन्द्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू भी पंजाब भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं, परन्तु अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वह किस उम्मीदवार की मदद कर रहे हैं। 

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