सर्वोच्च न्यायालय पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा करे

उत्तर प्रदेश के संभल में हाल ही में हुई घटनाओं तथा पांच मुस्लिम युवाओं की मौत  1991 में संसद द्वारा पारित किए गए अधिनियमित पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के महत्व को रेखांकित करती है। यह कानून देश की आजादी 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों की स्थिति के अलग ‘किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण’ (धारा 3) को प्रतिबंधित करता है और उस समय की स्थिति के अनुरूप ‘किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाये रखने’ का प्रावधान करता है (धारा 4)। कोई भी व्यक्ति ‘किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी अन्य वर्ग या किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं कर सकता।’ ध्यान रहे कि राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद विवाद को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था। 
2019 में अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ के फैसले ने भी पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को दोहराया था और कहा था कि मौजूदा धार्मिक स्थलों के खिलाफ कोई दावा कानून द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि,  मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी थी। वाराणसी की ज़िला अदालत में दायर एक याचिका में कहा गया है कि मस्जिद को एक ध्वस्त मंदिर के खंडहर पर बनाया गया था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वेक्षण जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि 1991 के अधिनियम के तहत किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति का पता लगाना वर्जित नहीं है। बाद में न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता केवल 15 अगस्त, 1947 वाले स्थान की स्थिति का पता लगाने की मांग कर रहे हैं और अधिनियम के अनुसार स्थान की प्रकृति को बदलने या परिवर्तित करने की कोशिश नहीं कर रहे।
इस विवादित निर्णय से हिंदू संप्रदायवादियों के लिए विभिन्न स्थानों पर कानूनी विवाद खड़ा करने के लिए विवाद के द्वार खुल गये, जहां मस्जिदें मौजूद हैं। ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण की मांग के बाद मथुरा की ईदगाह में इसी तरह का मामला सामने आया और जिला अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश दिया। इसके बाद संभल का मामला आया। 19 नवम्बर को जिला अदालत ने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर एक आवेदन के आधार पर 1526 में निर्मित मुगलकालीन मस्जिद के सर्वेक्षण की अनुमति दी, जिन्होंने पहले मथुरा और वाराणसी की जिला अदालत में याचिकाएँ दायर की थीं। इस तथ्य के बावजूद कि मस्जिद एक संरक्षित स्मारक है, आवेदन को तुरंत स्वीकार कर लिया गया। 
आश्चर्यजनक तत्परता के साथ अदालत ने एक अधिवक्ता आयोग का गठन किया और उसी दिन सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। सर्वेक्षण रिपोर्ट 29 नवम्बर को प्रस्तुत की जानी थी, परन्तु मस्जिद समिति को सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया। मस्जिद समिति के पूर्ण सहयोग से सर्वेक्षण किया गया। हालांकिए 24 नवम्बर को सर्वेक्षण दल मस्जिद में एक और सर्वेक्षण करने पहुंचा। इस बार उनके साथ न केवल पुलिस थी, बल्कि बड़ी संख्या में आए लोग ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे। मुसलमानों की भीड़ जमा हो गयी और कुछ ही देर बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। पत्थरबाजी, लाठीचार्ज, आंसू गैस और गोलीबारी शुरू हो गई। तीन मुस्लिम युवकों की गोली लगने से मौत हो गई और बाद में दो और घायलों ने दम तोड़ दिया। स्थानीय समाजवादी पार्टी के सांसद और समाजवादी पार्टी के विधायक के बेटे पर पुलिस द्वारा दर्ज की गयी एफआईआर में दंगा और हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है। 
उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ सरकार के शासन में किसी भी बहाने से मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर हमला किया जा रहा है। कुछ सप्ताह पहले बहराइच में हुई सांप्रदायिक हिंसा के कारण मुस्लिम समुदाय के खिलाफ राज्य का दमन हुआ और बड़ी संख्या में मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया था। हिंदूवादी संगठन कानूनी तरीके से विवाद को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं। संभल में 16वीं सदी की मस्जिदों को लेकर विवाद को हवा देने की कोशिशों में न्यायिक मिलीभगत का भी हाथ था। उत्तर प्रदेश के स्थानीय न्यायालयों में हमने जो देखा है— वाराणसी, मथुरा और अब संभल में—वह सदियों पुरानी मस्जिदों को हिंदू वर्चस्व स्थापित करने के लिए युद्ध के मैदान में बदलने की योजनाबद्ध कोशिश है। 
सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व में संभव हुआ, जिसने उसी कानून की अवहेलना की जिसका पालन करने का आदेश पहले सभी को दिया था। अगर इस विनाशकारी रास्ते को पलटना हैए तो सुप्रीम कोर्ट को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और पूजा स्थल अधिनियम की पवित्रता को बनाये रखना चाहिए जो 15 अगस्त, 1947 के बाद पूजा स्थलों के बारे में कोई भी कानूनी विवाद उठाने की अनुमति नहीं देता है। (ताज़ा जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की याचिका पर कार्रवाई करते हुए निचली अदालत की कार्रवाई पर रोक लगा दी है और कमेटी को इस संबंधी अगली सुनवाई के लिए हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है—सम्पादक) (संवाद)

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