सावधानी व जागरूकता ही है एड्स से बचाव
विश्व एड्स दिवस पर विशेष
एड्स दुनिया भर की सबसे घातक बीमारियों में से एक है और इस बीमारी ने कई महामारियों से भी अधिक लोगों की जान ली है। आज भी एड्स लाइलाज है। हालांकि एड्स के वायरस का पता 1983 में चल गया था, परन्तु उपचार की खोज आज भी जारी है । इस घातक बीमारी से सचेत करने के लिए एक दिसम्बर को पूरा विश्व एड्स रोधी दिवस मनाता है
एड्स को रोग अति सूक्ष्म विषाणु एच.आई.वी. की वजह से होता है। यह स्वयं में कोई रोग नहीं बल्कि एक उपलक्षण है जो अन्य रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है। प्रतिरोधक क्षमता के घटने से कोई भी संक्रमण, जैसे सर्दी जुकाम से ले कर टीबी, कैंसर जैसे रोग सहजता से हो जाते हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।
आरंभिक लक्षण : एड्स के आरंभिक लक्षणों में तेज़ी से और अत्याधिक वजन घटना, सूखी खांसी, लगातार बुखार या रात के समय अत्यधिक व असाधारण मात्रा में पसीने छूटना, कंधों और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकाये,ं एएक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैज़ा, फेफड़ों में जलन, त्वचा के नीचे, मुंह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे, निरन्तर भुलक्कड़पन, लम्बे समय तक उदासी रहना आदि हैं। अत: यदि ऐसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत सावधान हो जाना चाहिए। वैसे यह भी ज़रूरी नहीं है कि इन लक्षणों की होने पर एड्स हो ही। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य चरण हैं—
पहला चरण : एचआईवी की प्रारंभिक अवधि 2 से 4 सप्ताह है। इसमें इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी या मोनोयुक्लिओसिस जैसी बीमारी के लक्षण दिखते हैं। सबसे प्रमुख लक्षण बुखार, लिम्फ नोड्स, गले की सूजन, चक्तते, सिर दर्द या मुंह और जननांगों के घाव आदि हैं। कुछ लोगों में उल्टी, मिचली या दस्त और कुछ में जुल्लैन बर्रे सिंड्रोम जैसी बीमारियों के लक्षण दिखते हैं।
दूसरा चरण : एचआईवी संक्रमण का दूसरा चरण 3 साल से 20 साल तक रह सकता है। इस चरण के अंत के कई लोगों को बुखार, वजन घटना, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और मांसपेशियों में दर्द अनुभव होता है। इलाज के आभाव में बढ़ कर यह सब एड्स में बदल सकता है ।
अंतिम अवस्था : एड्स की अंतिम अवस्था है इस से पीड़ित हो जाना। यह सबसे खतरनाक अवस्था है । दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग एचआईवी का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज्यादा है वहां हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोग प्रतिदिन इसका शिकार हो रहे हैं ।
यह सबसे ज्यादा संक्रमित पीड़ित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्पर्क से होता है। हालांकि, एचआईवी प्रसार भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न तरीकों से हुआ है। यौन संबंधो के मामले में एचआईवी संक्रमण का जोखिम कम आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों कि तुलना से चार से दस गुना ज्यादा है। एचआईवी के संक्रमण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत रक्त और रक्त उत्पाद हैं। रक्त के द्वारा संक्रमण नशीली दवाओं के सेवन के दौरान सुइयों के साझा प्रयोग के द्वारा, संक्रमित सुई से चोट लगने पर, दूषित रक्त या रक्त उत्पाद के माध्यम से या उन मेडिकल सुइयों के माध्यम से जो एचआईवी संक्रमित उपकरणों के साथ होते हैं।
एचआईवी संक्रमित मां से बच्चे को गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के दौरान और स्तनपान से हो सकता है। एचआईवी दुनिया भर में फैलने का यह तीसरा सबसे आम कारण है। इलाज के अभाव में जन्म के पहले या जन्म के समय इसके संक्रमण का जोखिम 20 प्रतिशत तक होता है और स्तनपान के द्वारा यही जोखिम 35 प्रतिशत तक होता है। वर्ष 2008 तक बच्चो में एचआईवी का संक्रमण 90 प्रतिशत मामलों में मां के द्वारा हुआ। नवजात शिशु को स्तनपान न करा कर तथा नवजात शिशु को भी एंटीरिट्रोवाइरल औषधियों की खुराक देकर मां से बच्चे में एचआईवी का संक्रमण रोका जा सकता है।
ऐसे बचें : अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। रक्त ग्रहण करने से पहले रक्त का एचआईवी परीक्षण अवश्य करवा लेना चाहिए। एड्स ग्रस्त या एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने या साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से एड्स का संक्त्रमण हो सकता है, इसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ केवल एक मिथक मानते हैं। मगर यदि एड्स का रोगी एड्स की अंतिम अवस्था में पहुंच चुका है यानी व्यक्ति तीव्र संक्त्रमण का शिकार हो तो उससे दूरी बना कर रखना ही बेहतर होता है। एड्स के इलाज पर शोध जारी है। भारत, जापान, अमरीका, यूरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम है।
अच्छी खबर यह है कि कुछ प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कम्पनियां एचआईवी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही गोलियां बनाने जा रही हैं, जो इस रोग में कुछ राहत प्रदान कर सकती हैं। इस संवेदनशील मामले पर अनजान बने रहना कोई हल नहीं है।