जारी है संसद में हंगामा
25 नवम्बर से शुरू होकर चार दिन चली संसद अधिवेशन की कार्रवाई में कुछ हासिल नहीं हुआ। कांग्रेस एवं कुछ अन्य विपक्षी दलों के सदस्य लगातार यह मांग करते रहे कि सदन के शेष सभी काम रोक कर अडानी मुद्दे पर पहले चर्चा करवाई जाए। गौतम अडानी भारत के धनाढ्य व्यक्तियों में से एक हैं, जिनका कारोबार विश्व भर में फैला हुआ है। विगत दिवस अमरीका की एक अदालत ने उनकी एक कम्पनी को दोषी ठहराते हुए उनके वारंट जारी किए थे। इस संबंध में अडानी समूह अब तक अपना पक्ष भी पेश करता आया है परन्तु विगत लम्बी अवधि से कांग्रेस नेता एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार अडानी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र के साथ जोड़ते हुए उनकी कड़ी आलोचना करते आये हैं। अमरीकी अदालत की घोषणा के बाद उन्होंने लगातार एवं बार-बार अडानी की कम्पनियों द्वारा की जा रहीं अनियमितताओं की ही बात की है। वह एवं उनके इंडिया ब्लॉक के साथी बेहद महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर संविधान के 367 नियमों के अनुसार सभी काम रोक कर पहले इस मुद्दे पर चर्चा चाहते हैं, जबकि इस नियम के तहत देश में बेहद असाधारण हालात पैदा होने के कारण ही बहस की इजाज़त दी जाती है। इसके साथ ही कुछ अन्य विपक्षी दल पहले मणिपुर तथा विगत दिवस उत्तर प्रदेश में घटित सम्भल घटनाक्रम के मामले में बहस करवाना चाहते हैं।
पहले ही दिन राज्यसभा में जब सभापति जगदीप धनखड़ ने बोलना बंद किया तो उसी समय विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सम्बोधित करना शुरू कर दिया। इस पर धनखड़ ने कहा कि हम इस वर्ष संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, इसलिए विपक्ष के नेता को सदन की कुछ मर्यादा रखनी चाहिए, जिस पर दोनों में झड़प हो गई तथा सभा की कार्रवाई स्थगित हो गई। ऐसा कुछ ही लोकसभा में भी घटित हुआ। दूसरे दिन भी कांग्रेस इस मुद्दे पर अडिग रही, जबकि तृणमूल कांग्रेस, डी.एम.के. एवं वामपंथी पार्टी ने पहले मणिपुर के हालात पर चर्चा करवाने का नोटिस दिया तथा वह भी लोकसभा में अन्य कार्रवाई की बजाये इस बात पर ही चर्चा के लिए अडिग रहे। तीसरे दिन भी ऐसा हंगामा ही देखने को मिला। चाहे इस दिन हंगामा शुरू होने से पहले नव-निर्वाचित कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने शपथ ग्रहण कर ली थी। इसके साथ ही वक़्फ बोर्ड संशोधन बिल के संबंध में भी बात चली। विपक्षी दलों द्वारा इस संबंध में बनाई गई सांझी संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की जा रही थी, जिसे सरकार ने मान लिया था। इस संबंध में संसदीय मंत्री किरन रिजीजू ने यह कहा कि इसके लिए समिति का समय बढ़ाने एवं कुछ अन्य मुद्दों पर विपक्ष की बात माने जाने के बावजूद कार्रवाई में अवरोध नहीं डालना चाहिए। इसके साथ ही प्रश्नकाल जिसमें सभी सांसदों द्वारा बारी के अनुसार अपने-अपने प्रश्न पूछे जाते हैं, भी इस हालात की भेंट चढ़ता रहा। चौथे दिन भी संसद के दोनों सदनों में ऐसा कुछ ही देखने को मिला।
कुल मिला कर चार दिनों में लोकसभा में एक घंटा तथा राज्यसभा में 75 मिनट ही काम हो सका। आगामी समय में भी यदि इसी तरह हंगामा जारी रहा तो संसद अपने उद्देश्य में पूरी तरह पिछड़ जाएगी। ऐसी स्थिति के चलते सामने आये बयानों के अनुसार अब कुछ विपक्षी दलों ने अपनी इस नीति में बदलाव की बात की है। उन्होंने कहा कि देश के समक्ष और भी बहुत से अहम मामले हैं। ऊपरी मामलों संबंधी विचार, खास तौर पर अडानी के मामले पर वह अपनी भागीदार पार्टी कांग्रेस के साथ भी बात कर रहे हैं ताकि निर्धारित समय एवं नियमों के अनुसार ही इस मामले पर सदन में बहस की जाए तथा अन्य अहम मामलों को भी देश के सामने लाया जा सके। मणिपुर का मामला विगत लम्बी अवधि से उलझा आ रहा है, जिससे केन्द्र सरकार को निश्चय ही बचाव की नीति पर आना पड़ा। सम्भल का मामला ऐसा है जो देश में बड़ी गड़बड़ पैदा कर सकता है तथा विपक्षी दल इसके लिए संसद में सरकार को भी पूरी तरह घेर सकते हैं। इसके अतिरिक्त देश के समक्ष आज भी ़गरीबी, बेरोज़गारी एवं महंगाई के मामले दरपेश हैं, जिन पर सरकार द्वारा पूरा ध्यान देना ज़रूरी है। इन गम्भीर मामलों में सन्तोषजनक उपलब्धियां हासिल करने में सरकार पिछड़ती हुई दिखाई देती है।
हम उम्मीद करते हैं कि शीतकालीन अधिवेशन के शेष रहते समय का सरकार एवं विपक्षी दलों द्वारा इस तरह उपयोग किया जाना चाहिए, जिससे लक्ष्यों की पूर्ति की ओर कदम उठाये जाने के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके। यदि सभी संबंधित पक्षों द्वारा ऐसी पहुंच न अपनाई गई तो शीतकालीन अधिवेशन का समय भी व्यर्थ ही गुज़र जाएगा तथा देश की राजनीति और भी दूषित हुई दिखाई देगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द