पाक से हथियार खरीद रहे बांग्लादेश के आखिर क्या हैं मंसूबे ?
पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश ने पश्चिमी पाकिस्तान से 52 साल बाद हथियारों की खरीद फरोख्त का रिश्ता बनाया है। गोला बारूद की फरोख्त की। वहां के राजनीतिक टिप्पणीकार सलाह दे रहें हैं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से जेएफ-17 युद्धक विमान के तीन स्क्वाड्रन जल्द खरीदना चाहिये। बहाना यह कि चीन की मदद से पाकिस्तान में बना यह लड़ाकू जेट नई पीढी के अमरीकी युद्धक विमानों की टक्कर का, प्रभावशाली और सस्ता है। इसमें उन्नत चीनी तकनीक, रडार और एवियोनिक्स शामिल हैं। पर असल बात यह कि उसे भारत को ताकत दिखाना है। विरोधी पाकिस्तान और चीन से नज़दीकी जताना है। बांग्लादेश ने तख्तापलट के बाद और राजनीतिक अस्थिरता के बीच सैन्य सलाहकारों की राय पर पड़ोसी हिंदुस्तान को परे रखकर पाकिस्तान से इस तरह हथियारों की खरीद की है, विमानों के सौदे की मंशा जाहिर की है, रक्षा बजट को 11 प्रतिशत बढ़ाया है तो उसके सबसे नज़दीकी पड़ोस में इसके निहितार्थों की बात तो अवश्य होगी। नि:संदेह यह बात चीन, पाकिस्तान, म्यामार, नेपाल में नहीं भारत में ही होगी। खासतौर पर तब जब भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्तों में पहले जैसी समरसता न बची हो, बांग्लादेश में प्रश्रय प्राप्त या छिपे तौर पर रह रहे रोहिंग्या मुसलमान एक जुट होकर न सिर्फ म्यामार में अपने उत्पीडकों विरुद्ध लामबंद हो रहे हों बल्कि पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में अशांति फैलाने वालों गुटों को भी मजबूत करने की बात खुलेआम कह रहे हों, जब दशकों बाद भारत को तीन मोर्चों- पश्चिम, उत्तर। पूर्व सहित उत्तर पूर्व में प्रतिकूल सैन्य स्थिति का सामना होने की आशंका हो, साथ ही कुछ अन्य मामलों में कुछ आसन्न विसंगतियां सामने दीख रही हों।
ऐसे में भले ही सता संभाल रही बांग्लादेशी सेना महज इसलिये सैन्य खरीदारी कर रही हो कि उसके पास गोले बारूद का टोटा हो गया हो लेकिन वह जिस तरह की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के बीच ऐसा कर रही है, सरकारी कोष को इस गाढे वक्त में बेदर्दी से इस मद में खर्च कर रही है वह शोचनीय है। उसकी इस खरीदारी से क्षेत्रीय स्तर पर जो असंतुलनकारी भू-राजनीतिक समीकरण बनते हैं वह भी उल्लेखनीय है। पाकिस्तान, चीन व बांग्लादेश का त्रिगुट बनना एक दुरभिसंधि सरीखा है। कई दशकों से लेकर अभी हाल तक बांग्लादेश से हमारे संबंध अत्यंत मित्रतापूर्ण और भरोसे के रहे हैं। सीमा सुरक्षा और जल बंटवारे जैसे मुद्दों पर किंचित तनाव के अलावा बांग्लादेश से हमारे संबंध कभी इस कदर खराब नहीं हुए कि उनका उल्लेख विशेष हो। बांग्लादेश का वजूद भारत के सहयोग से आया ऐसी धारणा हमेशा बनी रही जिसका हालिया दौर में वहां से खंडन आ रहा है। शेख मुजीब ने भारत बांग्लादेश दोस्ती को विदेश नीति की आधारशिला घोषित किया था लेकिन भू-राजनीति में रिश्ते अप्रत्याशित तौर पर बदलते हैं। वहां भारत विरोधी हवा के बीच इस छोटे से हथियार खरीद को बड़ी गंभीरता से देखना होगा।
आज हालात यह हैं कि बांग्लादेश में विगत के संबंधों और सहायताओं, परंपराओं को ताक पर रख कर भारत विरोध की मुहिम जारी है। कुछ गुटों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि भारत बांग्लादेश में अशांति फैलाने के लिए एक खास राजनीतिक दल और कुछ गुटों को फंड कर रहा है। इस तरह की दुर्भावनाओं और अफवाहों का असर यह है कि भारत की सही सलाह भी बांग्लादेश के सैन्य सरकार को हस्तक्षेप लग रहा है। ममता अगर वहां की सैन्य शासन की सहमति से संयुक्त राष्ट्र से शांति सेना भेजने की बात करती हैं तो उसे गलत अर्थों में लिया जा रहा है अथवा भारत सरकार द्वारा हिंदू अल्पसंख्यकों के दमन के मुद्दे को भी जाती मामले में दखल माना जा रहा है। एक बड़ा गुट कुछ अंदरूनी तो कुछ बाहरी ताकतों के बल पर भारत विरोध को हवा देने में लगा है। वह बांग्लादेश में भारत विरोध की बात तो कर ही रहा है साथ में उसका मानना है कि बांग्लादेश को भारत के उन क्षेत्रों में खास तौर पर पूर्वोत्तर में जहां अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं, अतिवादी सक्रिय हैं वहां सक्रिय रूप उनकी हर प्रकार से मदद करनी चाहिए, ताकि ये गुट लंबे समय तक भारत के खिलाफ लड़ सकें उनकी लड़ाई कमजोर न पड़ने पाए। सभी तरह की मदद में क्या गोला बारूद, असलहे भी शामिल है, जिसकी खरीद वह भारत की बजाए पाकिस्तान जैसे देश से कर रहा है। बेशक उनकी इस नीति से भारत के पूर्वोत्तर में जहां वैसे ही अशांति मुश्किल से काबू में है, उपद्रव की आग भड़क सकती है। सैन्य स्तर पर भी वह मोर्चा कमजोर होगा जो चीन की चाहत है। सबको पता है कि दो सबसे बड़े रोहिंग्या आतंकवादी समूह- रोहिंग्या सॉलिडैरिटी ऑर्गनाइजेशन और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के प्रशिक्षण शिविर बांग्लादेश में चल रहे हैं और वे पूर्वोत्तर के लिये भी खतरा बनेंगे। मुश्किलें तो वे बांग्लादेश के लिये भी पैदा करेंगे मगर भारत विरोध के चक्कर में उसे कुछ सूझ नहीं रहा। बांग्लादेश में भारत विरोधी भावना और कुछ धड़ों की बांग्लादेश और भारत के बीच सभी समझौतों और संधियों पर पुनर्विचार की मांग स्वस्थ संकेत नहीं हैं। बेशक, दोनों देशों के बीच विश्वास का स्खलन हुआ है ऐसे में यदि अपने देश में भी यह प्रश्न उठने लगे है कि क्या बांग्लादेश में एक और मुक्ति अभियान का समय आ गया है? या फिर हिंदुओं की प्रताड़ना के बीच बांग्लादेश के विरुद्ध कठोर कदम उठाने की मांग की जा रही है तो बहुत अप्रत्याशित नहीं।
अपने मंसूबों में नाकाम रहने के बावजूद पाकिस्तान जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवादी वारदात में जुटा रहता है। चीन भी भारत को सीमा पर उलझाए रखने के लिए सीमा विवाद की वार्ता को पिछले पांच साल से लटकाए हुए है। चीन और पाकिस्तान के मंसूबे हो सकते हैं कि बांग्लादेश में मौजूद भारत-विरोधी ताकतों को खड़ाकर देश की एक और सीमा असुरक्षित कर दिया जाए। हालांकि यह बहुत आसान तो नहीं पर आंशिक तनाव भी कष्टकारी होगा। बांग्लादेश की सेना 145 देशों में 37वें पायदान पर है। भले ही उसके पास कुछ अच्छे हथियार, चीनी टैंक, युद्धपोत मौजूद हों, और खरीद ले हर साल तकरीबन चार बिलियन डॉलर अपनी सेना पर खर्च करता हो जो दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बाद तीसरा सबसे बड़ा बजट हो पर यह सब भारत की सैन्य शक्ति के आगे तुच्छ है। ऐसे में एक बात तो तय है कि बांग्लादेश भारत से सीधे सैन्य भिड़ंत कभी नहीं करेगा उसको हमारी ताकत का पूरा अहसास है। वह भारत से दस दिन भी मुश्किल से ही मुकाबला कर सकेगा। पर क्या हो कि भारत को तीन मोर्चों पर अटकाने के लिये चीन और पाकिस्तान जो सीमा विवादों के ज़रिये भारतीय पश्चिमी, उत्तरी और उत्तरपूर्वी सीमा को सदैव संवेदनशील स्थिति में बनाए रखने के प्रयास में लगे रहते हैं परोक्षत: उसके साथ आ जाएं?
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