गतिरोध टूटना ज़रूरी है
संसद के शीतकालीन अधिवेशन के संबंध में यह आशंका बनी दिखाई देती थी कि यह अधिवेशन भी मात्र बहसबाज़ी एवं शोर-शराबे में ही खत्म हो जाएगा, परन्तु अब यह उम्मीद जागी है कि इसमें आवश्यक विधेयक पारित होने के साथ-साथ भिन्न-भिन्न विषयों पर गम्भीर चर्चा भी हो सकेगी, जो देश के लोगों को जागरूक करने में सहायक होगी। कांग्रेस ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बयानों एवं इशारों पर अडानी समूह के अमरीका वाले केस पर ही अधिक ज़ोर देने की बात की थी। इस मुद्दे को लेकर ही सदन की कार्रवाइयों का बहिष्कार किया जाता रहा था। हम सिर्फ इस एक मुद्दे पर ही लगातार ज़ोर दिए जाने को कांग्रेस की कोई बुद्धिमत्तापूर्ण एवं परिपक्व नीति नहीं समझते। आज भारत की हज़ारों ही कम्पनियां विदेशों में अपने कारोबार चला रही हैं। यदि एक बड़ी कम्पनी विवादों में आ गई है तो उसे लेकर अनावश्यक तूल देना एवं प्रधानमंत्री को ही लगातार निशाना बनाये जाना विपक्षी दलों की उचित एवं प्रभावशाली नीति नहीं मानी जा सकती। इस बात को अन्य पार्टियों ने भी महसूस किया, जिस कारण उन्होंने कांग्रेस को इस हठ से हटने के लिए एवं दूसरे अहम मुद्दों को भी उभारने के लिए प्रेरित किया।
आज देश के समक्ष अनेक ही गम्भीर मुद्दे खड़े हैं, जिन पर विस्तारपूर्वक विचार-चर्चा किया जाना ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश के शहर सम्भल में घटित हुए हिंसा के भयावह घटनाक्रम ने एक बार फिर सभी को यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि यदि धार्मिक स्थानों संबंधी सदियों पुराने मामलों को कुरेदा जाने लगा तो इससे देश और अधिक साम्प्रदायिक आग की लपटों में घिर जाएगा। इस मामले पर गम्भीर बहस होनी ज़रूरी है। भारतीय संविधान को बने 75 वर्ष हो गए हैं। इसे नए हालात में सार्थक एवं अर्थपूर्ण बनाये रखना बेहद ज़रूरी है। इस संबंध में भी मिलकर विचार करने की ज़रूरत है कि इसे एक आधुनिक संदर्भ में और बेहतर ढंग से कैसे लागू किया जा सकेगा। इस अहम पहलू पर प्रत्येक पक्ष से विचार किया जाना ज़रूरी है। पिछले महीनों में चीन के साथ भारत की लम्बी बातचीत के उपरांत जो समझौते हुए हैं, उनकी तह तक जाना एवं उन्हें सांसदों एवं पूरे देश द्वारा विस्तारपूर्वक समझना और सुना जाना भी ज़रूरी है, ताकि वर्ष 2020 में दोनों देशों के सैनिकों के मध्य गलवान घाटी में हुई रक्तिम झड़पों जैसी घटनाओं के प्रति सचेत हुआ जाए। इसी अक्तूबर मास में पूर्वी लद्दाख में दोनों ही देशों के मध्य सीमा पर सैनिकों की गश्त संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं।
आज देश के अधिकतर भागों में वायु प्रदूषण फैल चुका है, जिसने आम नागरिक के स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत प्रभाव डाला है। इसका किस तरह हल निकाला जाना है, यह मामला भी संसद में और सोच विचार की मांग करता है। विश्व के कई भागों में कड़ी लड़ाइयां चल रही हैं, उनके कारण तेल एवं गैस की कीमतों में लगातार बदलाव होता जा रहा है। इन दोनों पदार्थों की कीमतें बढ़ने से देश की आर्थिकता के बुरी तरह लड़खड़ाने की आशंका बनी हुई है। इस संबंध में बड़ी योजनाबंदी किये जाने की ज़रूरत है, जिसका संसद द्वारा देशवासियों के लिए विस्तारपूर्वक जानना बहुत ज़रूरी है। पड़ोसी बंगलादेश में जिस तरह हिन्दू अल्प-संख्यक संबंधी चिन्ताजनक हालात पैदा हो चुके हैं, उन्हें लेकर भी भारत के समक्ष बड़ी चुनौती पैदा हो चुकी है, जिस संबंधी बंगलादेश से प्रभावी ढंग से बातचीत किया जाना ज़रूरी है। सरकार इस बेहद गम्भीर मामले के प्रति क्या कदम उठा रही है, इस संबंध में भी उस से विस्तारपूर्वक उत्तर मांगा जाना ज़रूरी है। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक मामले ऐसे हैं, जो हमारे समाज के समक्ष बड़ी चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। यदि संसद में इन मुद्दों को उभारा एवं उन पर विचार न किया गया तो यह संसदीय प्रणाली के लिए अपमानजनक बात सिद्ध होगी। इसलिए यह अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है कि शीतकालीन के इस अधिवेशन को अधिक उत्पादक एवं उपयोगी बनाया जाए ताकि देश के नागरिकों को कोई ऐसी अच्छी दिशा मिल सके, जिस पर अमल करके वे देश के विकास में अधिक योगदान डालने के समर्थ हो सकें।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द