105वें जन्म दिवस पर विशेष-बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया और ‘गुजराल डॉक्ट्राइन’
नि:संदेह विश्व इन दिनों युद्धों के ़खतरों से घिरा हुआ है। अमरीका और ईरान, चीन और ताईवान, इज़राइल और फिलिस्तीन, रूस और यूक्रेन इस तरह कई अन्य देश युद्ध में उलझे हैं। कुछ यही हाल भारत, पाकिस्तान व कई अन्य देशों का भी है। यूं लगता है कि सभी देशों की सीमाएं आग उगलने को बैठी हैं। निरन्तर ़खतरनाक होते जाते माहौल में आज एक बार फिर बहुत याद आते हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल और उनके नाम से जुड़ा शांति फार्मूला गुजराल डॉक्ट्राइन। हथियारों की दौड़ में आज विश्व के सभी देश उलझे हैं। अत्याधुनिक और भयानक अस्त्र-शस्त्र इकट्ठे किये जा रहे हैं। कोई भी देश बड़ा हो अथवा छोटा किसी की बात सुनने को तैयार नहीं। ऐसे में संसार का बचाव कैसे होगा।
पाकिस्तान ने भारत से स्नेह नहीं बढ़ाया और चीन से रिश्ते बनाने में जुटा रहा क्योंकि चीन का भारत से सीमा का विवाद चल रहा है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली बात सिद्ध करने में लगा है, पाकिस्तान परन्तु आज से कई वर्ष पूर्व ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्द्र कुमार गुजराल ने संसार में आने वाली इन मुसीबतों को भांप लिया था। दुनिया में निरंतर बढ़ रही कड़वाहट से पैदा हो रहे ़खतरों से छुटकारा पाने के उपाय के रूप में उनका एक दृष्टिकोण था, जिसे गुजराल डॉक्ट्राईन भी कहा जाता है। वह समझ रहे थे कि विश्व के सभी देशों में एक स्पर्धा जन्म ले रही है, उन्नति से आगे बढ़ने की नहीं, अपितु एक दूसरे को हानि पहुंचा कर आगे निकलने की। आज भी इस मार-काट से निकलने के लिये गुजराल साहिब का सिद्धांत बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है, अन्यथा दुनिया को इस सब की भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है और पड़ भी रही है।
स्व. इन्द्र कुमार गुजराल की सोच राजनीति से प्रेरित नहीं थी और न ही वह विश्व नेता बनने की ज़िद्द रखते थे। वे ईमानदारी से चाहते थे कि हर एक देश का दूसरे देश से प्यार हो, सीमाएं सुरक्षित रहें, आने-जाने के रास्ते सरल और सुगम बना दिये जाएं। किन्तु पूरा विश्व ही आज बारूद के ढेर पर बैठा है। तबाही विश्व के द्वार पर दस्तक दे रही है। कवि प्रदीप ने बहुत वर्ष पूर्व एक गीत लिखा था जिसके बोल थे—
ऐटम बमों के ज़ोर पे ऐंठी है यह दुनिया
बारूद के इक ढेर पे बैठी है यह दुनिया
हम समझते हैं कि एक रास्ता जो संसार को भय-मुक्त करने का उपाय है, और वह है गुजराल सिद्धान्त। संयुक्त राष्ट्र संघ को भी इस डॉक्ट्राईन को अपना कर संसार को बचाने का प्रयास करना चाहिए। गुजराल डाक्ट्राईन है क्या? बहुत सरल-सी बात है कि एक देश ही दूसरे देश की पीड़ा को समझे, उसे सहयोग दे, उसकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करे, आर्थिक उन्नति में सहयोग दे, नागरिकों में प्रेम बनाए रखने के बिन्दु खोजे,और वे सभी कार्य करे जिस से सभी देश खुशहाल हो सकें, घृणा रहित वातावरण बनाए रखने में एक-दूसरे का हाथ थामें।
ज़ाहिर है कि सभी देशाें को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना ही होगा। सभी देश आजकल आतंकवाद के मारक क्षेत्र में आ चुके हैं। मानव जीवन की तो जैसे कोई कीमत ही नहीं रह गई। अफ्रीका हो अथवा यूरोप, एशिया हो अथवा कोई अन्य क्षेत्र, सभी में से बारूद की गन्ध उठ रही है। लगता है, कहीं जर्मनी के पूर्व तानाशाह हिटलर की बात ही सच न हो जाए कि तीसरा विश्व युद्ध तेल के लिये लड़ा जाएगा। क्या तेल के कुएं पूरे संसार को निगल जाएंगे? अब तमाशायी बन कर इस मार-काट का तमाशा देखने का समय नहीं है। काश! दुनिया गुजराल साहिब सिद्धान्त पर संजीदगी से ध्यान देती तो आज जो आग और खून का शैतानी दृश्य देखने को मिल रहा है, वह नहीं मिलता। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। विश्व के नेता यदि अहंकार से हट कर गुजराल डॉक्ट्राईन पर गौर करें, अमल करें तो दुनिया को बर्बादी से बचा सकते हैं।
इन्द्र कुमार गुजराल का जन्म 4 दिसम्बर, 1919 को जेहलम (पाकिस्तान) के एक छोटे से गांव में श्री अवतार नारायण गुजराल और श्रीमती पुष्पा गुजराल के घर हुआ। श्री अवतार नारायण गुजराल न्याय-प्रक्रिया के सहारे देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को अंग्रेजी दमन चक्र से छुटकारा दिलाने का यत्न कर रहे थे किन्तु बाद में श्री गुजराल—आज़ादी के लिए प्रत्यक्ष संघर्ष कर रहे लोगों में शामिल हो गए। सन् 1929 में लाहौर में रावी नदी के किनारे कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें इन्द्र कुमार गुजराल 10 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ शामिल हुए। शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही वह स्वतंत्रता संग्राम के प्रति आकर्षित हो गए थे। उनका लड़कपन अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए गुज़रा। जीवन के आरंभिक काल से ही उनके मन और दिमाग पर शहीद-ए-आज़म स. भगत सिंह के विचारों का गहरा प्रभाव रहा।
श्री इन्द्र कुमार गुजराल का दिल्ली के उपमहापौर के पद से उठ कर देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना कोई साधारण बात नहीं। आज उनके जन्म दिवस पर हम हृदय से भारत मां के इस महान सपूत को याद करते हैं।